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सुख-दुख

साथियों और समाज को जोड़ने वाला एक पुल ढह गया!

बारिश की बूँदों के बीच प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, दिल्ली के सभागार में वैभव वर्धन दुबे से जुड़ी स्मृतियों के बादल भी 9 अक्टूबर की दुपहर उमड़ते-घुमड़ते रहे. कुछ ने इन स्मृतियों को साझा करने की हिम्मत जुटाई, कुछ ने आँखों की पोर तक अटके आंसुओं के ज़रिए इसे अभिव्यक्त किया. यादों का दौर आगे बढ़ा तो भावुक सभागार में कई-कई मौक़ों पर तमाम नम आँखों ने बस एक ही सवाल किया-वैभव, आख़िर इतनी जल्दी भी क्या थी? किसी ने कैंसर जैसी बीमारी से जंग की अपील की, किसी ने परमात्मा से दुआ की, किसी ने अपने दिवंगत साथी से शिकायतें की तो कुछ बस खामोशी से पुरानी यादों में खोए रहे. खचाखच भरे सभागार में सब अपने-अपने हिस्से के वैभव को ढूँढते रहे, उससे बतियाते रहे, उसकी यादें साझा करते रहे. क़रीब सौ से ज़्यादा लोगों के इस जमघट में हर कोई अकेला था और अपने एकांत में कुछ पल वैभव के साथ बिताने की बेचैनी महसूस कर रहा था.

9 अक्टूबर 2022, वरिष्ठ पत्रकार वैभव वर्धन दुबे की स्मृति में एक सभा दिल्ली प्रेस क्लब में संपन्न हुई. चौबीस घटों से हो रही लगातार बारिश के बीच भी बारह बजते-बजते ग़ाज़ीपुर से लेकर भोपाल तक और लखनऊ से लेकर देहरादून तक से आए साथियों से सभागार भर गया. कार्यक्रम की शुरुआत वैभव वर्धन दुबे को पुष्पांजलि से हुई और उसके बाद जीवन और आध्यात्म के संगीत के बीच वैभव वर्धन की एक तस्वीर साकार होती चली गई. वो तस्वीर जो इस नश्वर शरीर के बाद उनके चाहने वालों की स्मृतियों में क़ैद है और रहेगी. एबीपी, टीवी-9, नेटवर्क 18, जी न्यूज़, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़, न्यूज़ नेशन,न्यूज़ 24, आजतक, भारत 24, न्यूज़ इंडिया तमाम न्यूज़ चैनलों और प्रिंट मीडिया के साथियों ने वैभव को याद किया. गायक आशिक कुमार और तबला वादक मुस्तफ़ा हुसैन ने निर्गुण गीतों के सुरों से सांसारिक दुनिया के जीवों को पारलौकिक एहसास कराया.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का संदेश अजय मिश्रा ने सुनाया. उन्होंने कहा कि वैभव वर्धन दुबे उनके लिए एक मित्र की तरह थे और इस संकट की घड़ी में परिवार के साथ हैं. दिव्य प्रेम सेवा मिशन के साथ वैभव का लंबा जुड़ाव रहा. दिव्य सेवा प्रेम मिशन से जुड़े आशीष गौतम, डॉ नितिन और तमाम साथियों ने कहा कि वो हमेशा संस्था की बेहतरी के लिए सोचते रहे. इसके साथ ही किसान संगठनों के साथ भी वैभव वर्धन का संवाद रहा. कामेश्वर सिंह ने कहा कि वो जब भी मऊ या ग़ाज़ीपुर में हुआ करते, वैभव स्थानीय लोगों के साथ मीटिंग अरेंज करने से लेकर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहा करते. वरिष्ठ पत्रकार और कवि प्रताप सोमवंशी ने कहा- वो हमेशा लोगों के लिए सोचते रहे, आख़िरी दिनों में भी उन्हें लोगों को जोड़ने की ही चिंता रही.

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इस श्रद्धांजलि सभा का संचालन बीबीसी से जुड़ी शेफाली चतुर्वेदी ने किया. वो माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के दिनों की यादों के फूलों को निरंतर एक धागे में पिरोती रहीं और एक आत्मीय भावुकता से सभागार को भिगोतीं रहीं. रजनीकांत सिंह ने लोगों को जुटाने की भरपूर कोशिश की लेकिन जब वैभव वर्धन से जुड़ी यादें शेयर करने की बात आई तो हाथ जोड़ लिए. उन्होंने कहा कि इन भावुक पलों में कुछ कह पाना मुमकिन नहीं है. मैंने जिस रूप में वैभव को समेट रखा है, माइक हाथ में लिया तो ख़ुद ही बिखर जाऊँगा. प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने वैभव वर्धन की स्मृति में इस आयोजन में हर तरह से मदद की और साथियों और परिवार के साथ संवेदना व्यक्त की. श्यामलाल यादव, रजनीकांत सिंह, अखिल शर्मा, राजेश शुक्ला, मलय बनर्जी, सुनील गुप्ता, शेफाली चतुर्वेदी एवं तमाम साथियों के लिए ये चंद घंटे बेहद भावुक कर देने वाले रहे. वैभव वर्धन दुबे ने अपने अल्हड़ अंदाज में फेवीकाल के जोड़ वाले रिश्ते बनाए थे.

इंडिया न्यूज़ और आज तक से वैभव वर्धन दुबे का लंबा साथ रहा. इन दोनों ही संस्थानों में वैभव को बेहद क़रीब से देखने-समझने वाले संपादक राणा यशवंत ने कहा कि वो एक बेहद अच्छा प्रोफ़ेशनल होने के साथ बेहद अच्छा इंसान भी था. ये संयोग बेहद कम लोगों में ही मुमकिन होता है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कई नए प्रयोगों की शुरुआत के उस्ताद थे वैभव. पत्रकार राम कौशिक ने कहा कि हमें ये सोचना चाहिए कि परिवार को कैसे मज़बूती दी जाए. उदय प्रताप सिंह, आँचल आनंद, अनुभा और कई साथियों ने इंडिया न्यूज़ के दिनों की यादें साझा कीं.

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वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी अनिल पांडेय ने कहा वैभव वाक़ई वैभवशाली व्यक्तित्व के धनी थे. पशुपति शर्मा ने कहा कि वैभव समाज में हर तरह की खाइयों को पाटने वाले पुल की तरह थे, जो आज टूट गया है. माखन लाल के दिनों की साथी स्मिता दयाल ने कहा कि कैंसर जैसी बीमारी परिवार को भावनात्मक रूप से भी तोड़ती है और आर्थिक तौर पर भी कई चुनौतियाँ सामने लाती हैं. प्रतीक त्रिवेदी, सचिन सिंह, रवि दुबे, ऋषिकेश,अखिल शर्मा, गोविंदा तिवारी, गजेंद्र समेत कई पत्रकार साथियों ने ग़ाज़ीपुर से दिल्ली तक की यादों को समेटने की कोशिश की. मलय बनर्जी, नीरज कुमार पांडेय, स्मिता अग्रवाल, विनोद गुप्ता, समीर तिवारी, अमित भाटी, यतेन्द्र शर्मा, आशीष तिवारी, सुनील गुप्ता,राजेश कुमार सिंह, भूपेश अग्रवाल, प्रशांत सिंह, अरुण प्रकाश, अंकिता, संजय शर्मा, विनय, महेंद्र सिंह परिहार समेत कई साथियों ने स्मृति पुस्तिका में अपने भाव दर्ज किए.

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