पंडित कृष्ण भानु-
शिमला के एक और पत्रकार मित्र चले गए। ‘कोरोनाकाल’ के बाद कई पत्रकार दोस्त अचानक चल निकले हैं। कई बारी-बारी, लेकिन कुछ बिना बारी भी। आज खुशीराम शर्माजी भी छोड़कर निकल लिए, उस दुनिया में जिसकी कल्पना सब करते हैं लेकिन देखी किसी ने नहीं।
खुशी राम शर्मा पत्रकारिता में मुझसे सीनियर रहे और आयु में भी बड़े थे। दिलेर थे, मृदुभाषी थे, विनम्र थे, हंसमुख थे और सुख दुख में सदा साथ खड़े रहते थे। पत्रकारिता में इस तरह के लोग कम ही देखे गए हैं।
आज जो पत्रकार हिमाचल प्रदेश में कार्यरत हैं, वे खुशीराम शर्मा जी को ठीक से नहीं जानते होंगे। वे उस युग के पत्रकार थे, जिस युग में आमजनों को खालिस पत्रकारिता मिलती थी। जब पत्रकारिता दूषित होने लगी तो चुपचाप छोड़कर प्रिंटिंग प्रेस खोल लिया था।
दिल्ली में नवभारत टाइम्स में काम करने के बाद गृह नगर शिमला लौट आए और दैनिक वीर प्रताप में कई वर्षों तक साफ सुथरी पत्रकारिता की अलख जगाते रहे। मैं 1981 में शिमला पहुंचा तो शर्माजी वीर प्रताप में ही थे। हम दोनों ने एकसाथ वीर प्रताप में काम किया। हमारे रिश्ते सदा मित्रवत ही रहे।
यह जो फोटो आप देख रहे हैं, यह करीब पांच वर्ष पुराना है। 75 की उम्र में भी तब बिलकुल स्वस्थ थे। दो वर्ष पहले अचानक लीवर में समस्या उत्पन्न हुई जो काबू में न आ सकी। कभी सिगरेट नहीं पी और न शराब छुई। अन्य कोई व्यसन भी नहीं था फिर भी लीवर दगा दे गया।
दो वर्ष तक उनके दोनों पुत्रों, कमल शर्मा और जयदेव शर्मा ने शिमला से लेकर चंडीगढ़ तक के बड़े अस्पतालों में गहन चिकित्सा कराई लेकिन अंततः नियति से पराजित होना पड़ा। विनम्र श्रद्धांजलि!
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