वीरेंद्र यादव-
आज समाचारपत्र में जब ‘पद्मश्री’ सम्मान से विभूषित हिंदी लेखक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का यह बयान पढ़ा कि ‘मैं हमेशा तटस्थ लेखक रहा’ तो याद आए कवि रामधारी सिंह दिनकर जिन्होंने लिखा था ‘जो तटस्थ हैं , समय लिखेगा उनका भी अपराध’.

तिवारी जी की तटस्थता के बारे में इस आत्मस्वीकृति का मैं साक्षी हूँ. याद है कि जब 2015 में भारत के लेखकों ने एम एम कलबुर्गी की हत्या को लेकर साहित्य अकादमी की ‘तटस्थता’ के विरुद्ध अवार्ड वापसी अभियान किया था, तब विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ही साहित्यअकादमी के अध्यक्ष थे.
16 नवंबर 2015 के दिन नई दिल्ली में मंडी हाउस से साहित्य अकादमी तक जुलूस निकालने के बाद लेखकों ने साहित्य अकादमी के लान में एक विरोध सभा का आयोजन किया था.लेखक अपना विरोध पत्र साहित्य अकादमी के अध्यक्ष को सौपना चाहते थे, लेकिन साहित्य अकादमी के गेट पर ताला जड़ा हुआ था.
लेखकों की मांग के बावजूद गेट का ताला नहीं खोला गया. लेखकों के प्रबल विरोध को देखते हुए तिवारी जी ने अपनी ‘तटस्थता’ का निर्वाह तालाबंद चैनल गेट के भीतर से ही विरोध पत्र लेकर किया था. प्रदर्शनकारी लेखकों के विरोध में नरेंद्र कोहली, मालिनी अवस्थी और कमलकिशोर गोयनका वहाँ उसी समय उग्र नारेबाजी व भाषण करते हुए प्रदर्शनकारी लेखकों का विरोध कर रहे थे.
इस तटस्थता के पुरस्कार स्वरुप नरेंद्र कोहली व मालिनी अवस्थी पहले ही पद्मश्री से सम्मानित किए जा चुके हैं. इस बार ‘तटस्थता’ का पुरस्कार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को मिला है. सचमुच बकौल दिनकर ‘जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध.’
दया शंकर राय-
क्या कोई लेखक एक लेखक की हत्या से भी तटस्थ रह सकता है तिवारी जी..? जरा याद कर लीजिए जब एम एम कलबुर्गी की हत्या के खिलाफ बहुत से लेखक पुरस्कार लौटा रहे थे तो आप क्या कर कर रहे थे..! अस्सी पार की उम्र वैसे भी पश्चाताप की उम्र होती है..!