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सुख-दुख

वेब सिरीज ‘तांडव’ में कहानी के नाम पर कचरा परोसा गया है!

Samar Anarya-

तांडव मेरे जीवन में देखी सबसे घटिया फ़िल्म/सीरीज़ है- आलू चाट से भी घटिया! सोच क्या रहे थे सब? जेएनयू को बीएनयू और वसंत कुंज को महंत कुंज कर देने से कहानी बन जाती है?

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ये आईटी सेल के ट्विटर के जवाब में बनाए टूटर से भी ज़्यादा पैदल है! पूरी सीरीज़ में सिर्फ़ एक सेविंग ग्रेस है- जब सना मीर शिवा से कहती है कि उसे कुछ बताना है- और मेरे भीतर- के बाद बहुत अंधेरे हैं बोलती है- तुम्हारा बच्चा पल रहा है नहीं!

Abhishek Srivastava-

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अगर आप सिनेमा/वेब सीरीज़ के अध्येता/अभ्यासी/दर्शक हैं, तो -Taandav इस बात का सबक है कि कैसी कहानी नहीं लिखनी चाहिए और नहीं देखी जानी चाहिए। बेहद घटिया स्क्रिप्ट/स्क्रीनप्ले के साथ निर्देशन। केवल बड़े-बड़े अभिनेताओं से फिल्म नहीं बनती। कहानी बुनियादी चीज है। तांडव में कहानी के नाम पर कचरा परोसा गया है। न कल्पनाशीलता, न कथा में प्रवाह।

सबसे बुरी फिल्मों को भी एक सांस में देख जाने वाले मेरे जैसे दर्शक को अगर पहले एपिसोड में ही आधे रास्ते ऊब होने लगे, तो समझिए कि अमेज़न प्राइम के संसाधनों और मंच का इन लोगों ने कैसी बेरहमी से दुरुपयोग किया होगा। चौथे एपिसोड के बाद मैं झेल नहीं सका इस तांडव को। बस, डिम्पल कपाड़िया और गौहर खान ने यहाँ तक टिकाए रखा।

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लगता है अब बंबई जाना ही पड़ेगा!

अविनाश पांडेय समर और अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.

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