Abhishek Srivastava : ‘उत्सव के नाम पर उपद्रव नहीं होना चाहिए’ – बतौर भावी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह पहला निर्देश प्रशासन के लिए आया है। रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘रक्तचरित्र-1’ का आखिरी सीक्वेंस याद करिए जब मुख्यमंत्री बनने के बाद रवि ने सभी बाहुबलियों को अपने घर खाने पर बुलाकर ज्ञान दिया था कि जंगल का राजा केवल एक होता है और राजा चूंकि वो है, इसलिए बाकी जानवर अब हुंकारना बंद कर दें। इस हिसाब से सोचिए तो उम्मीद बनती है कि अगला निर्देश मुख्यमंत्री पद पर शपथ ग्रहण के बाद उन लोगों के लिए आएगा जो प्रशासन को अपनी जेब में रखने का शौक पालते हैं यानी गुंडे, बदमाश और माफिया।
उत्तर प्रदेश नाम के जंगल में अब पशुता केंद्रीकृत होगी। इससे आम आदमी को थो़ड़ा राहत बेशक़ मिलेगी। गुजरात के सूरत में कुछ साल रहकर आया मेरा साला कल बता रहा था कि वहां अपराध, छिनैती, गुंडई बिलकुल गायब है और जनता चैन से रहती है। अपने काम से काम रखती है। यूपी की राजनीतिक सत्ता में धर्म और बाहुबल का यह विलय यूपी को गुजरात बनाएगा। यह एक भी मुसलमान को टिकट दिए बगैर केवल हिंदू वोटों से बहुमत की सरकार बनाने का स्वाभाविक विस्तार है। योगी अगर कुछ न करें, तो भी उनका नाम और चेहरा काफ़ी होगा। अनुशासन के मामले में लखनऊ का सचिवालय अब गोरखनाथ मठ की फ्रेंचाइज़ी बन जाएगा।
योगी एक साथ तीन चीज़ों की नुमाइंदगी करेंगे- राज्य के राजपूत-भूमिहार नेतृत्व बहुल धार्मिक मठों की; मज़बूत स्टेट की; और वर्ण व्यवस्था के मुताबिक रक्षक-धर्म की (आंतरिक और बाहरी खतरों से)। सवाल है कि विरोधी दल इस स्थिति से कैसे निपटेंगे? अगर जनता को ताकतवर स्टेट, योद्धा जाति से आने वाला सिपहसालार और धार्मिक मठों का रहनुमा तीनों चीज़ें एक पैकेज डील में मिल रही हैं, तो जनता स्टेट को कमज़ोर करने वालों को चारा क्यों डालेगी? कांग्रेस, सपा, बसपा, वाम, लिबरल, नागरिक समाज, एनजीओ, समाजवादी- किसी के पास इस फॉर्मूले की काट हो तो बताए।
तेजतर्रार पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.