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सुख-दुख

जोमैटो ने ‘शुद्ध शाकाहारी’ वाला फैसला वापस ले लिया, पढ़ें CEO दीपेंदर गोयल का पत्र

अमिताभ श्रीवास्तव-

“शुद्ध शाकाहारी “ वाला फैसला वापस ले लिया गया है। हरियाला दस्ता अब नहीं दिखेगा। सब डिलीवरी वाले पहले की तरह लाल जैकेट में ही दिखेंगे।

ज़ोमैटो की इस “शुद्धतावादी”, सरसरी तौर पर देखने में स्वागतयोग्य, साफ़-सुथरी कारोबारी मार्केटिंग जैसी लगती पहल से हमारे समाज में खाने-पीने से जुड़ी सदियों पुरानी छुआछूत के ही और मज़बूत होने का ख़तरा है।

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तरह-तरह के सवाल उठ सकते हैं। सवाल उठेगा कि खाना डिलीवरी करने वाला भी “ शुद्ध शाकाहारी “ होगा या नहीं? क्यों नहीं होगा? अगर नहीं हुआ तब क्या होगा? कोई मुसलमान हुआ तब क्या होगा? सवर्ण हिंदू नहीं हुआ तब क्या होगा? और “शुद्ध शाकाहारी” रेस्टोरेंट का मालिक कोई सवर्ण शाकाहारी हिंदू न होकर कोई मुसलमान या दलित हुआ तब क्या होगा? ये सब कौन चेक करेगा, तय करेगा?

मौजूदा माहौ़ल में, जब समाज को हर छोटे-बड़े मामले में ध्रुवीकरण की तरफ सुनियोजित तरीके से धकेला जा रहा है, इससे बहुत से विवाद पैदा हो सकते हैं, झगड़े हो सकते हैं, ऑर्डर रद्द हो सकते हैं, डिलीवरी करने वालों के साथ अभद्रता का ख़तरा भी हो सकता है। यह भी एक क़िस्म की कट्टरता को बढ़ावा दे सकता है।

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