पेट्रोलियम मंत्रालय हो या वित्त मंत्रालय और या फिर टेलीकॉम मंत्रालय। हो सकता है अन्य मंत्रालय भी। ये वो जगह हैं जहां जासूसी का जाल बिछाया गया। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जब करवट ली, तो एक-एक कर तार खुलने शुरू हुए और देखते ही देखते 12 लोगों को धर दबोचा। कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। जासूसी कांड के इस जाल में अभी कई दिग्गज फंसने वाले हैं। अब पता चला है कि आम बजट के दस्तावेज भी लीक हो चुके हैं। जासूसी कांड में एक दिग्गज पत्रकार शांतनु सैकिया के शामिल होने का खुलासा हो चुका है।
सूत्रों के मुताबिक इस जासूसी के पर्दे में कई पत्रकार, बिचौलिये, लॉबिस्ट, बाहुबलि और ढेर सारा पैसा लगा है. इन लोगों के काम करने का तरीका गजब है. कॉर्पोरेट कंपनियां अपने मिडिल मैन यानि बिचौलियों के माध्यम से मंत्रालय के अधिकारियों के आगे चारा डालती हैं. जो अधिकारी रिश्वतखोर निकला, वो सरकार के लिये कम, कॉर्पोरेट कंपनी के लिये ज्यादा काम करने लगता है. पत्रकारों की भूमिका भी इस जासूसी में महत्वपूर्ण होती है. कुछ पत्रकारों ने एनर्जी कंसल्टेंसी फर्म खोली हैं. इस बिजनेस में फायदा भी बड़ा है. एक तरफ कॉर्पोरेट क्लाइंट जहां से पैसा आता है तो दूसरी तरफ मंत्रालय, जहां वो पैठ बना चुके हैं. वो पत्रकार जो सालों से इन मंत्रालयों में अपने संपर्क सूत्र बना चुके हैं, वो पेट्रोलियम मंत्रालय बीट को वर्षों से संभालते आये हैं, अब खुद के पोर्टल खोल चला रहे हैं. पोर्टल से कोई कमाई नहीं हो रही है, लेकिन उसके बावजूद उनके पास अथाह पैसा है. यह पैसा वो कमा रहे हैं अधिकारियों और कॉर्पोरेट दिग्गजों के बीच में खड़े होकर. ये न्यूज पोर्टल दिखावे के लिये चलाते हैं. ये वो पत्रकार हैं, जो सिर्फ इसलिये न्यूज पोर्टल चला रहे हैं, ताकि उन्हें मंत्रालय में घुसने दिया जाये. चूंकि ये मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं, इसलिये इनके पास मंत्रालयों में प्रवेश का पास भी होता है. ये वो पत्रकार हैं, जो प्रेस कार्ड पाने के बाद सिर्फ दिखावे के लिये न्यूज पोर्टल चला रहे हैं. इन न्यूज पोर्टलों पर प्रेस रिलीज के अलावा कुछ नहीं छपता. रीडरशिप भी ज्यादा नहीं है. ये पत्रकार मंत्रालयों के अधिकारियों को अपने जाल में फंसा कर महत्वपूर्ण दस्तावेज हासिल करते और उन्हें कॉर्पोरेट कंपनी तक पहुंचा देते.