Satyavrat Mishra : बिहार के बच्चों के साथ हुए यौन उत्पीड़न की जांच में सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट को पढ़कर मन में गुस्से और घृणा के भाव एक साथ आते हैं। ऐसा तब है कि सीबीआई ने इस मामले में काफी बचते-बचाते काम किया है। मतलब इस रिपोर्ट में एक भी नेता का नाम नहीं है, जबकि मुजफ्फरपुर की बच्चियों ने “तोंद वाले अंकल” और “नेताजी” का नाम लिया था।
सीबीआई ने अपनी नीतीश सरकार की पूरी कलाई खोलकर रख दी है। जांच एजेंसी ने 71 अधिकारियों पर कार्रवाई की सिफारिश की है, जिसमें 25 डीएम शामिल हैं। मतलब, क्या डीएम, क्या चपरासी और क्या तथाकथित समाजसेवी, जिसे भी मौका मिला उसने इन मासूमों के जिस्मों को नोंचा।
सीबीआई की इस रिपोर्ट में बिहार के 16 शेल्टर होम में दरिंदगी के नंगे नाच की पूरी कहानी मिलती है। पटना, गया, भागलपुर, मुंगेर, मोतिहारी, भभुआ, अररिया और मधेपुरा के कई पुराने जिलाधिकारियों को इस दरिंदगी का दोषी पाया है। राज्य सरकार से इन अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग भी की है। अब ये अधिकारी बड़े पोस्ट पर पहुंच गए हैं। कई तो केंद्र और राज्य की डबल इंजन की सरकारों में मंत्रियों से भी ज्यादा रसूख रखते हैं।
ये बात हम भी जानते हैं कि इनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला। न तो नीतीश सरकार और न ही मोदी सरकार में दम है कि वे अपने लाडलों से पंगा ले। ये रिपोर्ट भी देश के दूसरे भयानक घृणा से बजबजाते मामलों की बाकी रिपोर्ट की तरह किसी तहखाने में ठूस दी जाएगी, ताकि किसी दिन शॉर्ट सर्किट की आग में खाक हो सके।
ये अधिकारी बड़े पदों और मोटी सैलरी पर रिटायर होंगे और किसी कमीशन के अध्यक्ष, सरकार के सलाहकार या देश के राजदूत बन भारत का नाम ऊंचा करेंगे। बच्चों का क्या है, एक दो वर्ष बाद किसी नाली में लाश बहती मिलेगी और ब्रीफ में खबर बनेगी: फलां नाले से मिली एक बच्चे की लाश। हम-आप उसे अनदेखा कर अपने-अपने काम पर निकल जाएंगे।
पत्रकार सत्यव्रत मिश्रा की एफबी वॉल से.