Anil Singh : 2000 के नोट 1000 पर भारी, कालाधन रखना आसान! आम धारणा है कि बड़े नोटों में कालाधन रखा जाता है। मोदी सरकार ने इसी तर्क के दम पर 1000 और 500 के पुराने नोट खत्म किए थे। अब रिजर्व बैंक का आंकड़ा कहता है कि मार्च 2017 तक सिस्टम में 2000 रुपए के नोटों में रखे धन की मात्रा 6,57,100 करोड़ रुपए है, जबकि नोटबंदी से पहले 1000 रुपए के नोटों में रखे धन की मात्रा इससे 24,500 करोड़ रुपए कम 6,32,600 करोड़ रुपए थी।
यानि, रिजर्व बैंक ने सालाना रिपोर्ट के आंकड़े पेश किए हैं इससे साफ पता चलता है कि पहले सिस्टम में 1000 के नोट में जितना धन था, वह अब 2000 के नोट में रखे धन से 24,500 करोड़ रुपए कम है। तो, कालाधन खत्म हुआ या कालाधन रखने की सहूलियत बढ़ गई?
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नोटबंदी के ज़रिए कालेधन को खत्म करने का नहीं, बल्कि अपनों के कालेधन को सफेद करने का सरंजाम-इंतजाम किया गया था। सच एक दिन सामने आ ही जाएगा। ठीक जीएसटी लागू के 48 घंटे पहले जिन एक लाख शेल कंपनियों का रजिस्ट्रेशन खत्म किया गया है, उनके ज़रिए नोटबंदी के दौरान कई लाख करोड़ सफेद कराए गए हैं। मुश्किल यह है कि डी-रजिस्टर हो जाने के बाद इन एक लाख कंपनियों का कोई ट्रेस नहीं छोड़ा है मोदी एंड जेटली कंपनी ने। लेकिन सच एक न एक दिन सामने आ ही जाएगा। हो सकता है सुप्रीम कोर्ट के जरिए या सीएजी की किसी रिपोर्ट में।
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आईटीआर रिटर्न पर किसको उल्लू बना रहे हैं जेटली जी! वित्त मंत्री अरुण जेटली का दावा है कि नोटबंदी का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि देश में वित्त वर्ष 2016-17 के लिए भरे गए इनकम टैक्स ई-रिटर्न की संख्या 25% बढ़ गई है। आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 के लिए कुल दाखिल आईटीआर 2.83 करोड़ रहे हैं। यह संख्या ठीक पिछले वित्त वर्ष 2015-16 के लिए 2.27 करोड़ थी। इस तरह यह 24.7% की वृद्धि है। अच्छी बात है। लेकिन गौर करने की बात है कि इससे पहले वित्त वर्ष 2014-15 के लिए यह संख्या 2.07 करोड़ थी। अगले साल 2015-16 में यह 9.7% बढ़कर 2.27 करोड़ हो गई। वहीं, पिछले साल 2013-14 से 8.7% कम (2.25 करोड़ से घटकर 2.07 करोड़) थी। आईटीआर दाखिल करनेवालों की संख्या वित्त वर्ष 2010-11 के लिए 90.50 लाख, 2011-12 के लिए 1.64 करोड़ और 2012-13 के लिए 2.15 करोड़ रही थी। इस तरह वित्त वर्ष 2010-11 से लेकर वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान आईटीआर दाखिल करनेवालों की संख्या क्रमशः 82.22%, 31.10% और 4.65% बढ़ी थी। अतः जेटली महाशय! वित्त मंत्री के रूप में आप किसी कॉरपोरेट घराने की वकालत नहीं कर रहे, बल्कि देश का गुरुतर दायित्व संभाल रहे हैं। इसलिए झूठ बोलने की कला यहां काम नहीं आएगी। जवाब दीजिए कि वित्त वर्ष 2010-11 और 2011-12 में कोई नोटबंदी नहीं हुई थी, फिर भी क्यों आईटीआर भरनेवालों की संख्या 82 और 31 प्रतिशत बढ़ गई? इसलिए नो उल्लू बनाइंग…
कुल दाखिल आईटीआर रिटर्न की संख्या
वित्त वर्ष : संख्या (लाख में) : पिछले साल से अंतर (%)
2016-17 : 283 : +24.67
2015-16 : 227 : +9.66
2014-15 : 207 : (-)8.69
2013-14 : 225 : +4.65
2012-13 : 215 : +31.10
2011-12 : 164 : +82.22
2010-11 : 90.5 : +78.39
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वित्त मंत्रालय = भारत = भारतीय नागरिक! गुरुवार को इकनॉमिस्ट इंडिया समिट में एक पत्रकार ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से पूछा कि क्या ऐसा नहीं है कि नोटबंदी वित्त मंत्रालय के लिए अच्छी थी, लेकिन भारतीय नागरिकों के लिए नहीं, जिन्हें जान से लेकर नौकरी तक से हाथ घोना पड़ा और मुश्किलें झेलनी पड़ीं। इस पर जेटली का जवाब था, “मैं मानता हूं कि जो भारत के लिए अच्छा है, वही भारतीय नागरिकों के लिए अच्छा है।” धन्य हैं जेटली जी, जो आपने ज्ञान दिया कि सरकार और देश एक ही होता है। यही तर्क अंग्रेज बहादुर भी दिया करते थे। अच्छा है कि आम भारतीय अब भी सरकार को सरकार और अपने को प्रजा मानता है। वरना, जिस दिन वो इस मुल्क से सचमुच खुद को जोड़कर देखने लगेगा, उस दिन से आप जैसी सरकारों का तंबू-कनात उखड़ जाएगा, जिस तरह अंग्रेज़ों की सरकार का उखड़ा था। तब तक अंग्रेज़ों के बनाए औपनिवेशिक शासन तंत्र और कानून की सुरक्षा में बैठकर मौज करते रहिए, वित्त मंत्रालय के हित को भारत का हित बताते रहिए और विदेशी व बड़ी पूंजी का हित साधते रहिए।
मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक मामलों के जानकार अनिल सिंह की एफबी वॉल से. अनिल सिंह अर्थकाम डाट काम नामक चर्चित आर्थिक पोर्टल के संस्थापक और संपादक भी हैं.
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