नवरात्र में मोदी जी 10 करोड़ रुपए का मिनरल पी गए… क्या यह घोटाला नहीं है?

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Anil Singh : घोटाले की जुबान बंद तो बोलेगा कौन! मोदी सरकार का बड़ा दावा है कि अब तक उस पर भ्रष्टाचार का संगीन आरोप नहीं लगा है। लेकिन कौन खोजकर निकालेगा आपके भ्रष्टाचार! लोकपाल की नियुक्ति आपने अभी तक होने नहीं दी। सीएजी पहले रक्षा सचिव रह चुके हैं और संघी विचारधारा के करीबी बताए जाते हैं। सीवीसी का मामला भी इधर-उधर में लटका रहा।

मीडिया को आपने ज़रखरीद गुलाम बना लिया है। जो घोटाले सामने आते हैं, उन्हें आप मानने को तैयार नहीं। बलात्कारियों तक को मोदी सरकार लंबे समय तक मंत्री बनाए रही तो भ्रष्टाचार की बात कैसे सुन सकती है। व्यापम या चावल घोटाले को वह कुछ मानती ही नहीं। प्रधानमंत्री पर लगे आरोपों पर वो जुबान नहीं खोलती। आखिर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान तो सांकेतिक ही था। अगर निष्पक्ष जांच हो जाए तो मोदी की नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था को कम से कम 1.6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। रामदेव को आपकी सरकारों ने कितने हज़ार करोड़ की सब्सिडी दी है? परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से अडानी या अम्बानी का कितना कल्याण आपने किया है? अपने प्रचार पर 1100 करोड़ रुपए और केवल नवरात्र में मोदी जी 10 करोड़ रुपए का मिनरल पी गए! क्या यह सब घोटाला नहीं? यह तो वही बात हुई कि सारे थाने बंद कर दो और कह दो कि सारा अपराध खत्म हो गया है।

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आठ करोड़ रोजगार, निकले शाह की जुबान से! अवधी में एक शब्द है नंगा। हो सकता है भोजपुरी में भी हो। लेकिन इसका अर्थ हिंदी के निर्वस्त्र होने का नहीं है। इसका अर्थ उजड्ड होने के करीब है। कहा जाता है कि नंगों के मुंह नहीं लगना चाहिए। उसी तर्ज में अब कहना पड़ेगा कि झूठों के मुंह नहीं लगना चाहिए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि मोदी सरकार ने तीन साल में आठ करोड़ रोज़गार पैदा किए हैं और उसी सांस में कहते हैं कि देश में रोज़गार का सही आंकड़ा निकालने का अभी कोई तरीका नहीं है। मान्यवर, फिर कैसे आपने आठ करोड़ का आंकड़ा दे दिया। वो भी तब, जब केंद्रीय श्रम मंत्रालय से जुड़ा लेबर ब्यूरो आठ प्रमुख उद्योगों में लगातार रोज़गार घटने के आंकड़े दे रहा है और आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ अकेली नोटबंदी से दो करोड़ रोज़गार खत्म होने की बात कहता रहा है। कमाल तो यह है कि प्रेस काफ्रेंस में किसी चैनल या अखबार के पत्रकार ने शाह की इस कलाबाज़ी पर सवाल तक नहीं उठाया।

मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार और अर्थकाम डाट काम के संस्थापक अनिल सिंह की एफबी वॉल से.



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