अंग्रेजी अखबार भी खबर की जगह लोरी छापते हैं!

Sanjaya Kumar Singh : कानपुर में पकड़े गए 92 करोड़ रुपए के पुराने नोट वाली खबर का फॉलो अप आज हिन्दुस्तान टाइम्स में भी छपा है। मैं अंग्रेजी अखबारों को हिन्दी वालों के मुकाबले थोड़ा गंभीर मानता हूं और दिल्ली में टाइम्स ऑफ इंडिया के मुकाबले हिन्दुस्तान टाइम्स को। पर ये भी सरकार के भोंपू का ही काम करते हैं।

रिजर्व बैंक के आंकड़े दे रहे गवाही, कालाधन रखना अब ज्यादा आसान हुआ!

Anil Singh : 2000 के नोट 1000 पर भारी, कालाधन रखना आसान! आम धारणा है कि बड़े नोटों में कालाधन रखा जाता है। मोदी सरकार ने इसी तर्क के दम पर 1000 और 500 के पुराने नोट खत्म किए थे। अब रिजर्व बैंक का आंकड़ा कहता है कि मार्च 2017 तक सिस्टम में 2000 रुपए के नोटों में रखे धन की मात्रा 6,57,100 करोड़ रुपए है, जबकि नोटबंदी से पहले 1000 रुपए के नोटों में रखे धन की मात्रा इससे 24,500 करोड़ रुपए कम 6,32,600 करोड़ रुपए थी।

85 से 95 परसेंट कमीशन पर अब भी बदले जा रहे हैं पुराने नोट!

Yashwant Singh : 2019 के लोकसभा चुनाव में मीडिया पर जितना पैसा बरसने वाला है, उतना कभी न बरसा होगा… कई लाख करोड़ का बजट है भाई…. मोदी सरकार भला कैसे न लौटेगी… और हां, नोट अब भी बदले जा रहे हैं.. 85 परसेंट से लेकर 95 परसेंट के रेट पर… यानि पुराना नोट लाओ और उसका पंद्रह से पांच परसेंट तक नया ले जाओ…. लाखों करोड़ रुपये का गड़बड़झाला है ये नोटबंदी… उपर से कहते हैं कि न खाउंगा न खाने दूंगा…

बैंक ट्रांजैक्शन चार्ज के खिलाफ 6 अप्रैल को बैंक से कोई ट्रांजैक्शन न करें

कृपया सपोर्ट करें… बैंक ट्रांजैक्शन चार्ज के खिलाफ आवाज उठायें… 06 अप्रैल 2017 को कृपया बैंक से कोई ट्रांजेक्शन ना करें ताकि बैंक को पब्लिक का पावर पता चल सके. इस विरोध के कारण शायद बैंक चार्जेज हटा भी दें जो बैंकों ने अभी अभी नया लगाया है. अगर आज हम लोग एक साथ नहीं आये तो आने वाले दिनों में बैंक नए चार्जेज लगाने से नहीं डरेगी. पैसा अपना है तो फिर पैसा लेते वक़्त हम किस बात का चार्ज दें?

नोटबंदी के साइड इफेक्ट : असंगठित क्षेत्र के मजदूर नगदी के अभाव में न गांव में काम पाएंगे, न शहर में पनाह

-अभय नेमा
इंदौर। नोटबंदी पर प्रधानमंत्री ने खुद जनता से 50 दिन की मोहलत मांगी है लेकिन आरबीआई दिन रात भी नोट छपाई करवाए तो भी अर्थतंत्र में करेंसी की कमी पूरी होने में छह से आठ महीने लग सकते हैं। ऐसे में भवन निर्माण, कृषि समेत इनसे जुड़े काम धंधे और व्यापार व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित होंगे और खास तौर पर असंगठित क्षेत्रो में काम कर रहे मजदूर अपनी रोजी रोटी से हाथ धो बैठेंगे। ये ही लोग काम की तलाश में गांव ले शहर आते हैं लेकिन नकद के अभाव में न तो इनके पास गांवों में काम होगा न ही शहरों में इन्हें पनाह मिलेगी।