मध्य प्रदेश के एक अखबार के महा सम्पादक की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है. वजह है – इनकी रसिकमिजाजी और गत विधानसभा चुनाव में की गयी वसूली। दोनों मामलों की जांच चल रही है। सूत्र बताते हैं – एक माह के अंदर इनकी विदाई हो जाएगी. रंगीनमिजाजी व नेताओं से वसूली के लिए माध्यम बने इनके दो बेहद करीबी छर्रों की भी जांच जारी है.
दोनों मामलों की शिकायत करीब 08 माह पहले इसी संस्थान के वरिष्ठ लोगों ने ऊपर की थी. इसके बाद इनसे कुछ सबूत उपलब्ध कराने को कहा गया। शिकायत के तीन माह बाद कुछ सबूत व परिस्थितिजन्य साक्ष्य शिकायतकर्ताओं ने मुहैया कराये। मामले को गंभीरता से लेते हुए जिम्मेदारों ने बाकायदा दो वरिष्ठ लोगों की टीम बनायीं।
बताया जाता है कि टीम ने शिकायतकर्ताओं से तीन दौर में बात की। साथ ही संस्थान की दो महिलाओं से बात की, जो नौकरी की खातिर और आगे बढ़ने की चाहत में यौन शोषण की शिकार हुईं। टीम ने इन तीन लोगों द्वारा डेढ़ -दो साल के अंदर राजधानी व प्रदेश के अन्य स्थानों पर खरीदी गयी प्रॉपर्टी की जांच की है.
दोनों मामलों में जांच टीम को चौंकाने वाले तथ्य व सबूत मिले हैं। सूत्र बताते हैं कि महा सम्पादक के भोपाल में ३ बीएचके के दो फ्लैट्स, दो प्लॉट्स व एक 10 से 12 लाख का फोर व्हीलर जांच के दायरे में है। वहीं, इनके दो छर्रों के भोपाल, इंदौर व ग्वालियर में 3 बीएचके के3-3 फ्लैट्स व डेढ़-डेढ़ हजार फ़ीट के दो- दो प्लॉट्स जांच टीम को मिले हैं।
गज़ब यह है कि सिर्फ एक एक फ्लैट्स के लिए बैंक से होम लोन लिया गया है. शेष नकदी में लिए गए। जांच टीम ने जब इनसे इस प्रॉपर्टी के बारे पड़ताल की तो इन्होने बताया कि ये प्रॉपर्टी पुस्तैनी खेती की जमीन बेचने के बाद ली है। इसके बाद जांच टीम ने दो लोगों को उनके पैतृक स्थान भेजा तो पता चला कि एक के पास तो कभी खेती की जमीन थी ही नहीं। दूसरे के पास नाममात्र की खेती है. परिवार बड़ी मुश्किल से जीवनयापन कर रहा है। लगभग यही स्थति महा सम्पादक के पैतृक स्थान पर मिली।
मध्य प्रदेश के पत्रकार गोपाल बाजपेई की एफबी वॉल से.
Prem Mishra
October 27, 2019 at 10:02 am
वाजपेई जी आपने इतनी हिम्मत दिखाई काबिले तारीफ है. लेकिन जिनेश जैन एंड कंपनी इतनी मजबूत है की उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. शैलेंद्र तिवारी ने जिनेश जैन की कोई कमजोर नब्ज पकड़ ली है जिसके बूते वह नंगा नाच कर रहे हैं. भोपाल इंदौर ग्वालियर जबलपुर होशंगाबाद हर जगह छर्रे बैठे हुए हैं. कोई भी जांच हो यह बाहर निकल ही जाएंगे. फिर भी आपका अभियान रंग जरूर लाएगा. सबसे ज्यादा बदहाल स्थिति जबलपुर स्टेशन की है. यहां पर पत्रिका लगभग डूबने की कगार पर है.