Rahul Pandey : मैं कभी जनसत्ता में नहीं छपा। बल्कि शायद मैं कहीं नहीं छपा। तो अगर कोई ये सोचे कि आेम जी का मेरा परिचय कुछ छपने छपाने को लेकर हुआ तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी। मुरादाबाद में एक दिन मैने ओम जी की वॉल पर कुछ सीक्योरिटी ब्रीचेस देखे तो बेलौस उन्हें मैसेज कर दिया। तुरंत उनका जवाब भी आया, चीजें शायद ठीक की गईं या नहीं, याद नहीं, लेकिन हमारी डिजिटल दोस्ती तो ठीक ठाक शुरू हो गई।
बाद में नोएडा आया तो एक बार प्रदीप के साथ उनके दफ्तर में मिला। चारों तरफ ढेर सारी किताबें और उनके बीच अपना फोन (शायद ब्लैकबेरी) लिए ओम जी। ठीक से याद नहीं, लेकिन शायद जो बातचीत हुई, वो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ही हुई। मुझे ये देख सुखद लगा कि जनसत्ता (जिसे मेरी या मेरी से कम उम्र के लोग बूढ़ों का अखबार मानते हैं) में एक चपल युवक बैठा है, जिसकी दिलचस्पी गैजेट्स में है। अपने धंधे से मजबूर मैं जब किसी को गैजेट्स यूज करते देखता हूं तो कहीं न कहीं एक खुशी सी होती है।
तीसरी बार मैं उनसे मिला उनके घर। अपने आलसीपने से मजबूर हमेशा की तरह लेट। ओम जी को खाने के बाद या पहले कुछ जरूरी दवाइयां लेनी थीं, मैं फोन पर कह रहा था कि आप खा लीजिए, लेकिन ओम जी कुछ और ही ठानकर बैठे थे। बोले- आप आइये तभी कुछ होगा। मैं पहुंचा, जहां ओम जी प्रेमलता जी की बनाई राजस्थानी परोठियों के साथ इंतजार कर रहे थे। मैनें पहली बार वैसी परोठियां खाईं। दोनों ने ही जबरदस्ती पानीबाबा के घर से आईं बेहद मीठी रसगुल्लियां (एकाध राज खुलने भी चाहिए) भी खाईं। घर परिवार, यार दोस्तों की ढेर सारी बातें हुईं और हमने जमकर पंचायत भी की। दिल्ली के बियाबान में कहां मिलते हैं ऐसे सिर से सिर जोड़कर बात करने वाले दोस्त? बेलौस दोस्त!
ओम जी के बारे में मुझे कई बार कई लोगों ने कई बातें बताईं, जिनपर मैनें अक्सर कान नहीं दिया और दिया भी तो सीधे ओम जी से बोला। ऐसा ही एक वाकया याद आता है। ओम जी शिमला में छुट्टियां मना रहे थे (दरअसल फोटो डालकर हमें जला रहे थे), आइसा के किसी साथी ने फेसबुक पर कुछ शिकायत की। शायद फोटो ठीक से न लगने की शिकायत थी। मैनें वो शिकायत ओम जी से साझा की। उन्होंने तीन दिन से अखबार नहीं देखा था। वहीं से उन्होंने तीन दिनों की समीक्षा मंगाई और मुझे बताया कि आइसा की तस्वीरें उसके ठीक एक दिन पहले फ्रंट पेज पर चार कॉलम में लगी थीं। मैनें अपने साथी से ये सूचना शेयर की तो उनकी नाराजगी तुरंत झाग हो गई।
वैसे ओम जी जनसत्ता से ही रिटायर हुए हैं, इसका असर ओम जी पर जरूर पड़ रहा होगा, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ओम जी रिटायर हुए हैं। ओम जी की युवा चपलता उन्हें रिटायर होने भी नहीं देगी। कहना तो बहुत चाहता हूं लेकिन फिलहाल इतना ही।
थ्री चियर्स फॉर Om Thanvi।
युवा पत्रकार और हरिभूमि डाट काम के प्रभारी राहुल पांडेय के फेसबुक वॉल से.
sameer
August 2, 2015 at 2:10 pm
यही युवा चपलता उन्हें इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में जूते खाने पर भी मजबूर करती है जो नामवर सिंह के एक कार्यक्रम में सभी देख चुके हैं।