अजीत त्रिपाठी-
इसे कहते हैं विशुद्ध थेथरई। मतलब पेट के बल पड़ा यू ट्यूब चैनल मुनाफा कूटे और आप घर में टकसाल बना लें। किसकी वजह से? पच्चीस हजार महीने पर काम करने वाले की मेहनत से।
उसी पच्चीस हजार प्रति माह में लिखने वाला बोलना भी जानता हो, कैमरा भी जानता हो, एडिटिंग भी कर ले, रिपोर्टिंग भी कर ले, मतलब काम करने वाला इंसान न हुआ झालमूड़ी हो गया, थोड़ा मूंगफली, थोड़ी लइया, थोड़ी नमकीन, थोड़ा प्याज।
हद्दई देखिए… वो घंटे न देखे, टाइम न देखे, समय न देखे,जरूरत पड़े तो रात भर काम करे और सुबह देर तक सोने की आदत न हो।
अरे सर! सुनिए न ! जिसे आप जुनून का नाम दे रहे हैं उसे शोषण कहते हैं,जो बरसो बरस तक न्यूजचैनल में आपने किया।
फिल्म सिटी से निकलिए कभी देखिए उस गंदुमी धूल धूसरित इमारत को, आज की तारीख में आपका बोया बीज दुर्भाग्य का हरा भरा दरख्त हो गया है। उस संस्थान में नौकरी करने जाने वाला आदमी सोच के ही जाता है कि यहां इनक्रीमेंट नहीं होता, तनख्वाह कम मिलती है। उसी के देखा देखी बहुत सारे संस्थानों ने शोषण को उत्साह और जुनून का नाम दे दिया।
सच्चाई ये है कि ये सोच ही शोषणमूलक है। और आप इसके सदैव से कर्ता धर्ता रहे हैं ।
Comments on “अजीत अंजुम को ऐसे कर्मचारी चाहिए जो काम के घंटे न गिने!”
अजित अंजुम को ब्लू टिक मिल गयी क्या?
ये अजित अंजुम के नाम से शायद फ़र्ज़ी पोस्ट है ।भड़ास के लोग crosscheck करे लें।
जी भाई मिल गया. बस अभी उन्हें ट्विटर पर नहीं मिला.