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अमर उजाला ने तस्वीर समेत छापा मृत व्यवसायी का बयान

आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन मृत व्यक्ति बयान दे सकता है और वो छप भी सकता है। लेकिन कोई साधारण अख़बार और पत्रकार ऐसा नहीं कर सकता। ऐसा करने के लिए कुछ खास होना चाहिए और वो खास बात अमर उजाला और उसके पत्रकारों में है।
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आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन मृत व्यक्ति बयान दे सकता है और वो छप भी सकता है। लेकिन कोई साधारण अख़बार और पत्रकार ऐसा नहीं कर सकता। ऐसा करने के लिए कुछ खास होना चाहिए और वो खास बात अमर उजाला और उसके पत्रकारों में है।
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अमर उजाला, नोएडा ने 29 अगस्त के एडिशन में पृष्ठ पांच पर ‘ऐसे तो कंगाल हो जाएगा ऊर्जा निगम’ हेडिंग से खबर प्रकाशित की है। जिसमें एक उद्यमी घनश्याम गोयल की फोटो वर्जन के साथ प्रकाशित की गई है। गौरतलब है कि घनश्याम गोयल की मौत 15 दिनों पहले हो चुकी है। मृतक के जानने वालों का कहना है कि अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित अखबार द्वारा किसी मृत व्यक्ति की फोटो और वर्जन छापना गलत है। यह तो हद दर्जे की लापरवाही है।

नोएडा के चीफ रिपोर्टर एसएस अवस्थी का कहना है कि ये फोटो, फोटोग्राफर भव्य नरेश और रिपोर्टर अनुराग त्रिपाठी की जानकारी में होगी उन्हे इसकी जानकारी नहीं है। पाठकों और मीडियाकर्मियों के बीच ये मामला काफी चर्चा का विषय बना हुआ है।

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एक पाठक द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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0 Comments

  1. R K Singh

    August 29, 2014 at 4:05 pm

    महोदय, प्रेस क्लब की मॅनेज्मेंट कमिटी ने अभी एक बड़ा न्यूस्लेटर निकाला है जो कुछ नही है बस एक ये पॉवेर में जो लोग हैं सेल्फ़ प्रोजेक्षन के लिए एक मध्यम है. जहाँ एक तरफ प्रेस क्लब के बुरे हाल जग ज़ाहिर है, क़र्ज़ में डूबा क्लब बड़ी मुश्किल से उभर रहा है, उधर क्लब मॅनेज्मेंट मेंबर्ज़ का मेहनत से कमाया पैसा अपने स्वार्थ के लिए उड़ा रहे हैं. क्या ज़रूरत है प्रेस क्लब को एक न्यूज़ लेटर की? कोई अंदर जाए तो पता चलता है – चारों तरफ गंदगी रहती है, बुरी बदबू आ रही होती है जगह-जगह टूटी फूटी कुर्सिया उनके गद्दे मैल से चिप-चिप करते हैं. टाय्लेट ढूँढने के ज़रूरत नही पढ़ती – एक नरक जसी लगती है टूटी जमी रहती है. बाकी संस्थाओं की तरह इनका भी ऑडिट होना चाहिए. किस लिए लड़ते हैं ये लोग चुनाव? कोई जन सेवा भाव से? नही! कोई पोलिटिकल एक्सपीरियेन्स के लिए? नही! शराब बिक्री का अँधा पैसा आता है, कोम्पनियाँ बढ़-चढ़ के कमिशन्स देती हैं – कोई हिसाब नही. 80 फीसदी पत्रकार जो 10000 रु से कम तनख़ाह पाते हैं – उनके लिए प्रेस क्लब एक दूसरी दुनिया है जो उनके लिए नही है. क्या वजह है इतनी कोम्पनियाँ स्कीम देती हैं फिर भी ये इतना महनगा है – भ्रष्टाचार!

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