शशिकांत सिंह-
(पार्ट-5) चल रहे केसों को वापस लेना : अमर उजाला ने समझौते में अपनी असल नीयत जाहिर करते हुए यह भी लिखा है कि जो भी केस चल रहे हैं उन्हें इस समझौते के तहत अदालतों से खत्म करने के लिए कहा जाएगा। ऐसा कानूनन संभव नहीं है, क्योंकि एक तो यह समझौता श्रमजीवी पत्रकार अधिनायम, 1955 की धारा 13 और 16 के अलावा माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 और 19.06.2017 के फैसेलों के खिलाफ संस्थान के कर्मचारियों को डरा धमका कर बनाई गई पॉकेट यूनियन के जरिये अवैध तरीके से किया गया है। वहीं कोर्ट में पहले से जो केस चल रहे हैं, उसमें मौजूद कर्मचारी इस यूनियन के सदस्य नहीं हैं।
इस समझौते के तहत यह भी दावा किया जा रहा है कि इसके चलते कोई भी कर्मचारी वेतनमान के विवाद को कोर्ट में नहीं ले जा सकेगा, जो हर कर्मचारी का वैधानिक अधिकार है। वहीं यह समझौता वैधानिक है ही नहीं।
ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट के 19 जून 2017 के फैसले के अनुसार कर्मचारी और प्रबंधक के बीच बिना किसी दबाव के हुआ समझौता सिर्फ और सिर्फ अधिकतम लाभ की स्थिति में ही वैध माना जाएगा और मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों का अक्षरश: पालन करना सभी समाचार पत्र के लिए अनिवार्य है।
ऐसे में यदि कोई भी साथी सुप्रीम कोर्ट या अन्य किसी कोर्ट की शरण में जाता है तो अमर उजाला का यह समझौता टिक नहीं पाएगा। इसके जरिए भले ही कोर्ट या श्रम अथारिटी को कुछ समय के लिए उलझाया जा सकता है, मगर सही मायने में इस समझौते की कोई वैधानिक वैधता नहीं है, क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 07 फरवरी, 2014 के फैसले में साफ आदेश दे दिए थे कि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के तहत प्रबंधन को 01 अप्रैल 2015 से नया वेतनमान लागू करने के अलावा बकाया एरियर एक साल में चार किश्तों में देना था। ऐसे में प्रबंधन मजीठिया के तहत वेतनमान और एरियर देने से किसी भी हालत में नहीं बच सकता, चाहे वह जो भी हथकंडे अपना ले।
(समाप्त)
शशिकांत
उपाध्यक्ष न्यूजपेपर इम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया।
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