शशिकांत सिंह-
(पार्ट-1) जो अमर उजाला कभी अपने कर्मचारियों को उनका हक देने में अव्वल माना जाता था, आज वो ही संस्थान कर्मचारियों के साथ धोखाधड़ी की सारी हदें पार करने को उतारू है। मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतनमान मांगने वाले कर्मचारियों को तबादलों और अन्य तरह से प्रताड़ित करने के बावजूद भी इस संस्थान को मजीठिया वेजबोर्ड से बचने का कोई उपाय ना मिला तो इसने अपनी पॉकेट यूनियन के साथ मिलकर एक नया कांड कर डाला है।
अमर उजाला प्रबंधन ने मजीठिया वेजबोर्ड के नाम पर अपनी पॉकेट यूनियन के साथ मिल बैठ कर एक अवैध समझौता तैयार करवाया है। इस फर्जी समझौते के आधार पर करीब सौ पन्नों की बुकलेट बनाकर श्रम अधिकारियों के समक्ष पेश किया जा रहा है और न्यायालयों में भी पेश करने की तैयारी है, जो कि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना है।
अमर उजाला और इस तथाकथित पॉकेट यूनियन के बीच 22.11.2021 को हुए इस तथाकथित समझौते को 1 अप्रैल 2021 से लागू होने का दावा किया जा रहा है। यानि जो वेतनमान 11.11.2011 को दिया जाना था, उसे इस तथाकथित समझौते के तहत करीब दस साल बाद देने का झूठा दावा किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि इस संस्थान के प्रबंधकों ने 11.11.2011 को भारत सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 के फैसले के तहत संवैधानिक घोषित किए गए जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को सिरे से खारिज करते हुए अपना ही कोई प्रबंधक जनित वेजबोर्ड बना कर करीब 100 पेज की इस बुकलेट के जरिये पेश किया है, मानो अब अमर उजाला प्रबंधन को संसद और माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार करने की शक्तियां हासिल हो गई हों। ऐसा शायद इस्ट इंडिया कंपनी के राज में भी नहीं हुआ होगा, जो अमर उजाला प्रबंधन ने कर दिखाया है। पर कंपनियों के बदल देने से सच का चेहरा नहीं बदलता। सच हमेशा अपने मूल चेहरे के साथ जिंदा रहा है और रहेगा, यही सच है।
इस समझौते में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सरेआम धज्जियां उड़ा दी गई हैं। हालांकि यह भी तय है कि यह समझौता किसी भी अदालत में टिक नहीं पाएगा, मगर इस नीचता के पीछे एक पूंजीवादी सोच रखने वाले मालिक और जी हजूरी करने वाले चापलूस प्रबंधकों की देश के कानून और कैबिनेट के फैसले को ना मानने की हठधर्मिता साफ झलक रही है। साथ ही पैसे और ताकत के दम पर कर्मचारियों के हकों को पैरों तले रौंदने की व्यवस्था साफ दिखाई दे रही है। अपने लिखे इस समझौते में लाखों का वेतन तय करने वाले मैनेजर व मोटी रकम पर पलने वाले सलाहकार शायद यह बात भूल बैठे हैं कि इस देश में संविधान और कानून का राज चलता है। देश की अदालतों में भले ही देर है, मगर अंधेर कतई नहीं है और मजीठिया वेतमान को लेकर अब तक कई अदालतों के फैसेले इस ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रबंधन भले ही जितने चाहे ओछे हथकंडे अपना ले, कर्मचारियों के संशोधित वेतनमान और बकाया एरियर को किसी भी कीमत पर दबाया नहीं जा सकता।
वैसे यह गौर करने वाली बात है कि यह समझौता सुप्रीम कोर्ट के 7 फरवरी 2014 और 19 जून 2017 के आदेशों के आगे कहीं भी टिक नहीं सकता। फिर भी अमर उजाला उसे यह दर्शाते हुए लागू करने की बात कर रहा है कि यह समझौता मजीठिया वेजबोर्ड से बेहतर वेतन कर्मचारियों को देगा, जोकि सरासर झूठ और मक्कारी के अलावा कुछ और नहीं है। इस समझौते को वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 और मजीठिया वेजबोर्ड के क्लॉज 20जे की परिधि में रखा गया है, जबकि सभी को मालूम है कि यह विकल्प 11 से 30 नवंबर 2011 के बीच (नोटिफिकेशन के तीन सप्ताह के अंदर) लिया जा सकता था और वो भी उन्हीं कर्मियों पर लागू होता जो वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 16 के अनुसार मजीठिया वेतनमान से अधिक वेतन पा रहे होते। माननीय सुप्रीम कोर्ट के 19 जून, 2017 के जजमेंट में यह बात साफ है कि कोई भी अंडरटेकिंग या समझौता जो मजीठिया वेजबोर्ड के तहत तय वेतनमान और भत्तों से कम पर किया गया है, वो वैध नहीं माना जाएगा।
इतना ही नहीं, 24 अक्टूबर 2008 की अधिसूचना के अनुसार 30 प्रतिशत अंतरिम दर से भुगतान भी कर्मचारियों के संशोधित वेतनमान में शामिल है और अब तो कोर्ट और केंद्र सरकार के ताजा फैसले के तहत मणिसाना वेजबोर्ड को भी रिनोटिफाई कर दिया गया है। लिहाजा पुराने कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड के तहत जो नया वेतनमान बनेगा, उसमें मणिसाना वेजबोर्ड के तहत बेसिक, डीए और 30 फीसदी अंतरिम राहत को जोड़ना ही होगा। ऐसे में अमर उजाला प्रबंधन की यह करतूत भले ही उन कर्मचारियों को खूंटे से बांध सकती है, जो मजबूरी में परिवार का पेट पालने को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की हिम्मत नहीं रखते, मगर यह बात भी प्रबंधन और उसके तथाकथित सलाहकारों को पता होगी कि भले ही कर्मचारी आज अपना मुंह नहीं खोल रहे, मगर वे कभी भी अपना हक रिकवरी के जरिये कोर्ट में जाकर हासिल कर सकते हैं और उन्हें कानूनी हक को लेने से कोई भी तकत या नियम नहीं रोक सकता।
अमर उजाला प्रबंधन और जेबी मीडियाकर्मी यूनियन के बीच हुए समझौते के सभी कागजात देखें
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