Shambhunath Shukla : नौकरी छोड़े भी चार साल हो चुके और अमर उजाला में मेरा कुल कार्यकाल भी मात्र दस वर्ष का रहा पर फिर भी उसके मालिक की स्मृति मात्र से आँखें छलक आती हैं। दिवंगत श्री अतुल माहेश्वरी को गए छह वर्ष हो चुके मगर आज भी लगता है कि अचानक या तो वे मेरे केबिन में आ जाएंगे अथवा उनका फोन आ जाएगा अरे शुक्ला जी जरा आप यह पता कर लेते तो बेहतर रहता। इतनी विनम्रता और संकोच शायद ही किसी मालिक में रहा होगा।
साल 2002 की अगस्त में मैने अमर उजाला ज्वाइन किया था और 2011 की तीन जनवरी को वे नहीं रहे पर इतने ही वर्षों में उन्होंने ऐसी अमिट छाप छोड़ी जो दुर्लभ थी। वे अपना बुरा चाहने वालों का भी भला चाहते थे। स्वयं का नुकसान उठाकर दूसरों का भला करने में भरोसा करते थे और अपने कर्मचारियों को अपना सहकर्मी समझते थे। संपादकीय विभाग के लिए वे एक पत्रकार पहले थे मालिक बाद में। हारी-बीमारी में मदद करने के लिए उनका हाथ सदैव खुला रहता और अपना दिया पैसा वापस लेने में वे उतना ही संकोच करते। ऐसे अमर उजाला के स्मृतिशेष मालिक को कोटिश: प्रणाम।
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला के इस एफबी पोस्ट पर आए सैकड़ों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…
Vivek Shukla : मेरा अतुल जी से परिचय भाई Hari Joshi जी ने 1988 में करवाया। मैं सन्डे मैगज़ीन के लिए लिखने लगा। फिर एक दिन उन्होंने मुझे मेरठ बुलाया। कहा, आप दिल्ली से खेल और बिज़नेस पर लिखो। 1989 में लोक सभा चुनाव, फिर खाड़ी युद्ध और उसके बाद भी अमर उजाला से दैनिक हिन्दुस्तान में रहते हुए जुड़ा रहा। कई बार उनसे बंगाली मार्किट में मिला भी। बेहतरीन इन्सान थे वे। पर बाद में अमर उजाला में भी कुछ मित्रों को हटाया गया तो लगा क़ि बदलने लगा है अमर उजाला।
Lalit Chaturvedi : शत शत नमन। शुक्ला सर पत्रकारिता के इस असाधारण व्यक्तित्व की असामयिक मौत प्राकृतिक तो नहीं थी। यह बात दबी जबान से आप सभी जानते हैं। आश्चर्य है कि 6 वर्ष बाद भी परिवार या वाह्य आवरण में इस प्रश्न को किसी ने नहीं छेड़ा। सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब इस तथ्य की निष्पक्ष जाँच होगी तथा सच सामने होगा। हां, अतुल भाई साहब के जाने से कुछ लोग आज अरबों में जरूर खेल रहे हैं। उन्हें सजा दिलाना जरूरी है।
Surendra Mohan Sharma : दस ग्यारह वर्ष की उम्र में अतुल और राजुल के साथ बचपन में खेलने का मौका मिलता था जब वे अपने पिता श्री मुरारीलाल माहेश्वरी जी के साथ होलीगेट मथुरा पर रहते थे। उनके पिता और मेरे पिता का अच्छा दोस्ताना था उस समय। असमय ही चले गए अतुल। नमन।
Harendra Narayan : बहुत सच्चे इंसान. भोपाल में पत्रकारिता के बाजारवाद पर खुद का लिखा पेपर पढा था। आज भी याद है। मुझे बुलाया था। समय ऐसा बदला फिर उनसे मिलना ना हुआ। अब न वो रहे, न मैं पत्रकारिता में! ऐसे इंसान को श्रद्धासुमन।
Mukesh Shriram : अतुलजी को सादर नमन…आज के सभी मीडिया मालिकों को अतुलजी जैसा मन और समर्पण मिले। कोटिशः धन्यवाद…
राकेश कुमार मिश्रा : स्व. डोरी लाल अग्रवाल जी मुरारी माहेश्वरी जी से विनम्रता सीखी है अगली पीढ़ियों ने। क्या ग़ज़ब लोग थे ये।
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