यशवंत सिंह-
ये कोलाज बनाकर भक्त लोग इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं कि देखो क्या से क्या हो गये देखते देखते… लेकिन असल में ये तस्वीरें इन दोनों पत्रकारों की जीवटता का प्रतीक हैं।
ये लोग अपने बेहतरीन काम के लिए राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हुए, पुरस्कार पाये लेकिन घमंड में अपना असली काम बंद नहीं किया। अपनी ज़मीन नहीं भूले। एक्स वाई जेड टाइप गार्डों से घिर कर vvip पत्रकार नहीं बने। कारों के क़ाफ़िले से सजकर एलीट नहीं बने। सत्ता की भाषा बोलना स्वीकार नहीं किया। इसीलिए ये भक्तों की आँखों की किरकिरी हैं।
दक्षिणपंथी सत्ता इन दोनों को फूटी आँख नहीं देखना चाहता लेकिन फिर भी ये डटे हैं। खूब ज़ोर लगा कर भी इनका सूरज अस्त नहीं करा पा रहा कोई। तभी इन्हें ट्रोल कर डिमोरलाइज किया जा रहा है। बेहद प्रतिकूल माहौल के बावजूद ये जीवट डटे हुए हैं। इन्हें कोई संस्थान रखे ना रखे, ये थक हार कर बैठ जाने वालों में से नहीं हैं। ये निर्भय, निडर और बेबाक़ हैं। ये ख़ुद में संस्थान हैं।
सत्ता की चमचई कर भक्त पत्रकार बनने में बहुत फ़ायदे हैं। सिर्फ़ पत्रकार बने रहकर काम कर पाना इन दिनों का सबसे मुश्किल काम है। मैं इन दोनों से कभी नहीं मिला हूँ। इन दोनों की आलोचना में भड़ास पर खूब लिखा छपा है। पर मैं निजी तौर पर इन दोनों का प्रशंसक हूँ। ख़ासकर इस मुश्किल दौर में जब मगरुर सत्ताओं ने मीडिया नाम की संस्थाओं को ही ख़त्म कर दिया है, ख़रीद लिया है, डरा दिया है, ये दोनों ज़मीन पर अपने पाँव को मज़बूती से टिका कर पत्रकारिता की सुलगती चिनगारी को हवा दे रखी है।
इन्हें तुम ख़त्म कभी नहीं कर सकते। ये वो छुईमुई नहीं जो तुम्हारी उँगली दिखाने से डर कर मुरझा जायें! ये तनिक भी पापी रहे होते तो मोदीज एजेंसीज इन्हें नाप चुकी होतीं। ये नामवर लोग हैं जिन्हें जानबूझकर बदनाम बहुत किया गया है, किया जा रहा है। मेरा सैल्यूट रहेगा बरखा और राजदीप को!