भास्कर गुहा नियोगी-
पुलिस किसके लिए मौन है…. किसके हित में पुलिस खामोश है…
वाराणसी। नौ दिन चले अढ़ाई कोस कोई मुहावरा नहीं, पुलिस का रवैया है. महिला पत्रकार सुमन द्विवेदी के मामले में भी पुलिस की गति यही है. किसी घटना या मामले की गंभीरता को समझे बगैर पुलिस अधिकांश मामलों को चौकी-थाने में दफनाने की कोशिश करती है. जब मामला तूल पकड़ता है तो आनन-फानन में कोई पुरानी रिपोर्ट आगे बढ़ाकर सफाई पेश कर खुद को पाक-साफ साबित करती है.
सुमन द्विवेदी के मामले में बनारस की पुलिस साल भर पुराने विवेचना रिपोर्ट को दिखाकर क्या मौजूदा परिस्थिति से पल्ला झाड़ सकती है? जब कि हाल-फिलहाल भदैनी स्थित उनके आवास पर तथाकथित बाबा श्रवण दास तोड़फोड़ भी करवा रहा है और नया निर्माण भी.
क्या यथास्थिति के हालात में तोड़फोड़ और नया निर्माण जायज है या फिर तथाकथित बाबा के लिए के पास कोई अलग आदेश है जिसे अदालत ने दिया है?
आज जब इस प्रकरण ने जोर पकड़ा है तो क्या पुलिस ने मौके पर पहुंचकर हालात का जायजा लिया है?
जवाब है नहीं। तस्वीरें और वीडियो इस बात की गवाह हैं कि वहां अवैध निर्माण और तोड़फोड़ दोनों हो रहा है। सवाल यह है कि पुलिस ने इस पर क्या कार्रवाई की? जवाब तो ये देना था।
साल भर पहले 14 अप्रैल को जब महिला पत्रकार के घर पर दबंगों ने ताला बंद किया तो अस्सी पुलिस चौकी पहुंची। सुमन द्विवेदी का तत्कालीन चौकी इंचार्ज मुकेश तिवारी ने सहयोग करना तो दूर उल्टे उनसे बदसलूकी की थी। मौके पर दबंगों ने उनके साथ हाथापाई भी की। घटना की शिकायत के बाद थाना भेलुपूर में श्रवण दास और अन्य लोगों के खिलाफ 11 जून यानी 2 महीने बाद एफआईआर दर्ज किया गया।
इस दौरान पत्रकार सुमन द्विवेदी को ही बार-बार चौकी और थाने बुलाया जाता रहा। फिलहाल उनका कहना है मामला न्यायालय में है और घर पर तोड़फोड़ हो रही है, क्या पुलिस ने एक बार भी श्रवण दास को बुलाकर या मौके पर जाकर पूछा कि वो किसकी इजाजत या आदेश से ये सब कर रहा है? मुझे पता है पुलिस नहीं पूछेगी। घटना के वक्त भी मैंने भेलुपूर थाने और अस्सी चौकी पर घर के सारे कागजात दिखाए, इसके बावजूद मेरी नहीं सुनी गई। आज साल भर से मामला न्यायालय में है. मैंने सारे कागजात वहां जमा किए हुए हैं। फैसला वहां होगा, फिर फैसले से पहले मेरे घर पर तोड़फोड़, क्या ये साबित करने को काफी नहीं है कि किसकी नीयत में खोट है और किन सफेदपोशों के इशारे पर सब हो रहा है और किसके हित में पुलिस खामोश है?
बनारस से भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट.
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