Kashyap Kishor Mishra : डीयर मोटा भाई, इस चुनाव के लिए हमने यह सब किया…
धारा 370 / 35A, राम मंदिर, POK में घुस के 22 मारे, हाउडी मोदी, टिक टाक / नौटंकी स्टार को टिकट और इस्तेमाल, जुमले पे जुमला, परिधान पे परिधान, इटली की राजमाता को टारगेट, राहुल कहाँ हैं?, चिदंबरम को जेल, सावरकर को भारत-रत्न, नाथूराम को ट्विटर पर एक नंबर पर ट्रेंड, जवाहिर लाल नेहरू हमें काम नहीं करने दे रहे, कांग्रेस के जमाने में भारत चूँ चूँ का मुरब्बा था…, अब भारत सुपरस्टार पावर है, सावरकर के तेज के सामने गांधी दब जाते थे, गौमाता, गौमूत्र और गोबर।
यार! इतना करने पर भी नतीजा यह रहा? पता करो, इतने के बाद भी जनता पर पिनक क्यों नहीं चढ़ रही। क्या इससे बेहतर ब्रांड अभलेभल है? वरना नाम बताने की बजाय बस जपने को रह जायेगा “नमो नमो !”
Soumitra Roy : अमित शाह की 4 रणनीतियों को महाराष्ट्र और हरियाणा के वोटरों ने ठेंगा दिखा दिया है। चुनाव से पहले विरोधी खेमे में तोड़-फोड़। सतारा में बीजेपी ने एनसीपी के उदयनराजे भोंसले को तोड़ा। शिवाजी के वंशज भोंसले को मराठों ने चुनाव में चित कर दिया। शरद पवार को मनी लॉन्ड्रिंग में फंसाना। 79 साल के पवार राजनीति में शाह के बाप हैं।
बीजेपी को सोचना होगा कि भारत-पाकिस्तान, 370, हिन्दू-मुसलमान और नेहरू-गांधी करने के लिए केंद्र में मोदी हैं। कम से कम राज्यों में तो जमीनी मुद्दों की बात हो। हर बीमारी के लिए एक ही दवा नहीं होती। अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग भी नहीं चली है। हरियाणा में जाटों के वोट बीजेपी के खिलाफ गए, जबकि गैर जाटों के वोट बंट गए। फिर कौन कहता है कि मंदी और बेरोज़गारी दोनों राज्यों के चुनाव में मुद्दा नहीं था?
Yusuf Kirmani : हरियाणा और महाराष्ट्र ने धारा 370…एनआरसी और फर्जी राष्ट्रवाद को कूड़ेदान में फेंक दिया है…. महाराष्ट्र में बेशक भाजपा की सरकार आ जाए लेकिन वहां उसकी सीटें कम रहेंगी। कांग्रेस और एनसीपी पहले के मुकाबले ज्यादा बेहतर ढंग से उभरकर आ रही हैं। हरियाणा में सारे नतीजे शाम तक साफ हो जायेंगे लेकिन यह तय है कि भाजपा 70 पार नहीं कर पाई है, जैसा खुद बीजेपी और गोदी मीडिया के चैनलों ने अपने एग्जिट पोल में दिखाया था। हरियाणा में भाजपा का सत्ता में फिर से लौटना मुश्किल हो रहा है।
अगर आप मेरी चुनाव पर पिछली पोस्ट को देखेंगे तो पायेंगे कि उसमें हरियाणा को लेकर संकेत दिए गए थे।….मैंने उसमें बताया था कि किस तरह कांग्रेस ने भाजपा की बिछाई राष्ट्रवाद की पिच पर नहीं खेला और स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से रखा। किस तरह देश के गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री की रैलियों में लोग नहीं आ रहे थे और अगर हरियाणा पुलिस के जवान सादा वर्दियों में जाकर उनकी रैलियों में नहीं बैठते तो भाजपा की भद्द और भी पिटती।
इस चुनाव में भाजपा की मीडिया मार्केटिंग, खुद मीडिया का एकतरफा भाजपा के पक्ष में झुकाव, बड़े उद्योगपतियों का इस चुनाव में पैसे का खेल इन सभी फैक्टर की पोल खुल गई है। कांग्रेस के लिए भी एक सबक है कि बिना मेहनत किए जनता ने उसे फिर से महत्व दिया है। अगर कांग्रेस एक साल पहले हरियाणा में तैयारी करती तो शायद नतीजे और भी स्पष्ट होते।
हरियाणा ने हमेशा उस राजनीतिक लकीर को काटा है, जिसे उस समय की सत्तारूढ़ पार्टियां खींचती रही हैं। ताऊ देवीलाल का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। जिसने पूरे भारत की किसानों की राजनीति पलट दी थी। जब राजीव गांधी को उनके तमाम लोग अकेला छोड़ गए थे और राजीव को कुछ समझ नहीं आ रहा था तो हरियाणा उनके साथ खड़ा हुआ। हरियाणा से ही राजीव गांधी के समय में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी।….हरियाणा के जाट उतने भोले नहीं हैं, जितना उन्हें बताया जाता है। वह परिवर्तन करते रहते हैं। भाजपा ने जिस तरह उन्हें जेब में डाल लिया था, उसे जाट ने झटका दे दिया है।
भाजपा के पास अभी भी मौका है वह धारा 370, पाकिस्तान, एनआरसी की तोतारटंत और फर्जी राष्ट्रवाद के खोल से बाहर निकले….जनता की परेशानियों को समझे औऱ दूर करे….पेट में रोटी न हो, दुकान में ग्राहक न हो तो राष्ट्रवाद से पेट नहीं भरता साहब….
सौजन्य : फेसबुक