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सियासत

बजट से डर नहीं लगता साहब, उसकी मार से डर लगता है!

बजट आनेवाला है। सरकार कमर कस रही है। वित्त मंत्री व्यस्त हैं। अफसर पस्त हैं। और बाजार ध्वस्त। ज्वेलर निराश हैं। गोल्ड ही नहीं डायमंड और सिल्वरवाले भी परेशान है। बाजार से ग्राहक गायब है। सेल गिर गई है। उधार आ नहीं रहा है। नया माल बिक नहीं रहा है। कारीगर भी गांव निकल गए हैं। आगे क्या होगा, कुछ भी तय नहीं है। नोटबंदी ने मार डाला। सरकार के तेवर डरा रहे हैं। ज्वेलर घर से निकलकर बाजार आता है। बाजार से निकल कर घर जाता है। आता – जाता तो वह पहले भी था, लेकिन पहले उम्मीद के साथ आता था। और खुश होकर घर लौटता था। लेकिन अब परेशानी लेकर बाजार में आता है और खाली जेब वापस जाता है।

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बजट आनेवाला है। सरकार कमर कस रही है। वित्त मंत्री व्यस्त हैं। अफसर पस्त हैं। और बाजार ध्वस्त। ज्वेलर निराश हैं। गोल्ड ही नहीं डायमंड और सिल्वरवाले भी परेशान है। बाजार से ग्राहक गायब है। सेल गिर गई है। उधार आ नहीं रहा है। नया माल बिक नहीं रहा है। कारीगर भी गांव निकल गए हैं। आगे क्या होगा, कुछ भी तय नहीं है। नोटबंदी ने मार डाला। सरकार के तेवर डरा रहे हैं। ज्वेलर घर से निकलकर बाजार आता है। बाजार से निकल कर घर जाता है। आता – जाता तो वह पहले भी था, लेकिन पहले उम्मीद के साथ आता था। और खुश होकर घर लौटता था। लेकिन अब परेशानी लेकर बाजार में आता है और खाली जेब वापस जाता है।

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मोदी जी की नोटबंदी भले ही दुनिया भर में उम्मीद जगा रही हो, लेकिन ज्वेलरी बाजार में हताशा के हालात हैं। खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं और माहौल में कहीं भी नरमी के संकेत नहीं दिख रहे हैं। हर किसी की हालत खराब है और खासकर ज्वेलरों की हालत का अंदाज तो सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि जयपुर से लेकर जबलपुर और रायपुर से लेकर राजकोट तक के सारे ज्वेलर चुप्पी साधे हैं। दिल्ली में भी हालत खराब है और केरल भी कमजोर पड़ता जा रहा है।

ज्वेलरी ही नहीं, देश के किसी भी बाजार में कहीं भी कोई धंधा ही नहीं है। ऐसे में, अगले महीने की पहली तारीख, यानी 1 फरवरी को देश का बजट आ रहा है। पहले बजट उम्मीद जगाता था। लेकिन अब बजट की बात से ही डर लगने लगा है। ‘दबंग’ फिल्म के विख्यात डायलॉग की तर्ज पर कहें, तो ‘बजट से डर नहीं लगता साहब, बजट की मार से डर लगता है।’ दरअसल, ज्वेलरी बाजार के लिए हर बार का बजट राहत के बजाय सेहत खराब करनेवाले प्रावधान लेकर आता है।

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इस बार क्या होगा, कोई नहीं जानता। लेकिन जिस तरह की खबरें आ रही हैं, वे डरा रही हैं। क्योंकि ये खबरें देश की सरकार द्वारा ज्वेलरों के साथ पहले किए गए व्यवहार के मुताबिक ही आ रही हैं। ज्वेलर इसीलिए डर रहे हैं। लेकिन बजट तो बजट है। उसे तो आना ही है। हर साल आता है। इस बार भी आएगा जरूर। जब आएगा, तो बाजार के लिए कोई नई खबर भी लाएगा। लेकिन निश्चित रूप से उम्मीद यही है कि यह खबर खुश करनेवाली नहीं होगी। वित्त मंत्री के पिटारे से आज तक जो कुछ निकलता रहा है, उसमें ज्वेलरी बाजार के लिए चौंकानेवाली खबर जरूर होती है, खुश करनेवाली नहीं।

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वैसे भी ज्वेलरी बाजार पर सरकार की कोई मेहरबानी कभी रही नहीं। बीते कुछ समय की सरकार की कोशिशों पर नजर डालें, तो गोल्ड का इंपोर्ट रोकने, उस पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने, फिर गोल्ड की खरीद पर पैन कार्ड अनिवार्य करने और हॉलमार्किंग से लेकर कई तरह के छोटे छोटे नियम, कानून और कायदे ज्वेलरी बाजार को डराते रहे हैं। अब बजट आ रहा है, तो फिर से नई किस्म का डर सताने लगा है। राम जाने, क्या होगा।    

सवाल ज्वेलरी बाजार का ही नहीं है। इससे जुड़े हर धंधे की हालत खराब है। देश भर में ज्वेलरी मशीनरी का धंधा ठप है, तो ज्वेलरी पेकेजिंग इंडस्ट्री भी साल भर से झटके झेल रही है। डायमंड बाजार तो पहले से ही मौत के मुंह में समाता जा रहा है। जब गोल्ड ही नहीं बिक रहा तो, डायमंड क्या लोहे में जड़ेंगे। सो, डायमंडवाले भी रो रहे हैं। बीते साल भर में डायमंड बाजार को इतिहास का सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। सूरत, मुंबई और देश भर के अन्य बाजारों में डायमंड व्यापारी सरकार की कारवाई से परेशान है। नोटबंदी के बाद से जीना मुहाल है। देश में लोकल लेवल पर डायमंड का ज्यादातर धंधा कैश में चलता है। अब आगे व्यापार कैसे करेंगे, यह चिंता की बात है। ज्वेलरी बाजार से जुड़े कैश से सबसे बड़े धंधे, सट्टा व्यवसाय की तो हालत और ज्यादा खराब है। सारे लोग हाथ पर हाथ धरे बैंठे हैं।

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सट्टा बाजार वैसे भी कभी नरम तो कभी गरम चलता रहा है। लेकिन साल भर से तो सांसत में था ही, अब सरकार की नोटबंदी के बाद उसे बहुत जोर का फटका लगा है। इसी में फंसे, मुंबई में जवेरी बाजार के एक नामी युवा राजस्थानी ज्वेलर को सट्टेबाजी में हाल ही में ऐसा झटका लगा कि उसे दादी – नानी सब याद आ गई। मामला 40 करोड़ के पार का था। सो, खबर है कि राजकोट से लेकर दुबई तक के सारे तार जीवंत हो गए। हर तरफ से बदबाव आया तो, आखिर कुछ तो ले – देकर सेटल कर दिया, और बहुत कुछ अब भी बाकी है। जो, दिए बिना छुटकारा नहीं मिलनेवाला। पैसा तो गया ही, अच्छा खासा नाम था, वह भी खराब हुआ सो अगल। सट्टेबाजी में ऐसा ही होता है। आता है, तो एक साथ आता है, और जाता है, तो पुराना कमाया हुआ भी निकाल कर ले जाता है।

गोल्ड बिजनेस पर लगाम कसकर दूसरे देशों से हमारे यहां गोल्ड का इंपोर्ट कम करने की सरकार की कोशिश से धंधा चौपट हो रहा है। दिसंबर में खत्म हुए इस वित्तीय वर्ष के तीसरे क्वार्टर ने गोल्ड बिजनेस की कमर तोड़कर रख दी है। हमारे देश में अक्टूबर नवंबर और दिसंबर गोल्ड की बिक्री के हिसाब से सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इन तीनों महीनों में देश फेस्टिवल मूड में होता है। रमजान से लेकर ईद और नवरात्रि से लेकर दीपावली व क्रिसमस आदि सभी इसी दौरान आते हैं।

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इन दिनों लोग खूब ज्वेलरी खरीदते हैं। लेकिन इस साल बाजार में गोल्ड की सेल में जो कमी आई है, वह नोटबंदी का असर है। बाजार की हालत हालत खराब है और उसे सरकार का डर भी है। लेकिन मोदी सरकार के मायने में नोटबंदी का बाद देश में बहुत कुछ अच्छा होगा। क्योंकि अब जो भी होगा, पारदर्शी होगा। फिर भी व्यापारी समाज में बजट का डर लगातार बढ़ रहा है। पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झोली में कई जादू है। देखते हैं, इस बार के बजट में उनकी सरकार क्या खेल दिखाती है।

(लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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