सुनील सिंह-
चंदौली जिले में लोक निर्माण विभाग में एक बड़ा ही दिलचस्प खेल सामने आया है. जनपद में सड़क निर्माण कार्यों के लिये निकाले जा रहे टेंडर के प्रत्येक काम में केवल दो कंपनियां ही तकनीकी तौर पर अर्ह पाई जा रही हैं. तीसरी कंपनी या तो टेंडर नहीं डालती है या फिर अर्ह नहीं पाई जाती है. कुछ ठेकों में ऐसा हो तो इत्तेफाक माना जा सकता है, लेकिन अधिकांश ठेकों में यही हो रहा है. आश्चर्यजनक रूप से किसी भी काम में केवल दो कंपनियां ही अर्ह पायी जाती हैं, तीसरी या चौथी नहीं. जिन कामों में ज्यादा टेंडर पड़ जाते हैं विभाग उस टेंडर को या तो निरस्त कर देता है या लटका देता है. आखिर क्यों हो रहा है ऐसा ?
दरअसल, उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग हर रोज भ्रष्टाचार की नई इबारत लिख रहा है. मुख्यमंत्री जितनी पारदर्शिता से काम करने का आदेश देते हैं, यह विभाग उतना ही भ्रष्टाचार बढ़ाता जाता है. हेरफेर के जरिये केवल अपने लोगों को फायदा पहुंचाने का जरिया बन गया है यह विभाग. लोक निर्माण विभाग के ठेकों में पारदर्शिता एवं कामों में गुणवत्ता लाने के लिये सरकार ने टेंडर व्यवस्था को ऑनलाइन किया है ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सके, लेकिन विभाग अपनों को फायदा पहुंचाने में इस ऑनलाइन व्यवस्था का भी तोड़ निकाल लिया है. अब ऑनलाइन टेंडर डाले नहीं जाते हैं, मैनेज किये जाते हैं.
उत्तर प्रदेश के सारे जिलों में यही खेल चल रहा है. विधायक और नेता अपने चहेतों को ठेके दिलाने के लिये टेंडर मैनेज कराते हैं. वह ठेकेदार कतई टेंडर नहीं पा सकता, जिसकी सेटिंग विधायकों या नेताओं से नहीं होती है. लोक निर्माण विभाग के अधिकारी भी इस खेल में पूरी तरह शामिल रहते हैं, क्योंकि कमीशन का एक हिस्सा उनके पास भी आता है. आरोप है कि टेंडर मैनेज कराने के खेल में पांच फीसदी कमीशन स्थानीय विधायकों को मिलता है. ठेकेदार को टेंडर मूल्य का कुल साढ़े तेरह फीसदी कमीशन काम के लिये खर्च करना पड़ता है. पूरे प्रदेश में लोक निर्माण विभाग में चल रहे ठेकों में यही खेल चल रहा है.
कमीशन में सबका हिस्सा बंधा हुआ है. ऊपर से लेकर नीचे तक. चंदौली जनपद के एक उदाहरण से ठेके के मैनेजमेंट का खेल समझते हैं. चंदौली जनपद में 7 अक्टूबर 2023 को कुल 65 कामों के लिये ई निविदा आमंत्रित की गई थी. 21 अक्टूबर को तकनीकी निविदा खोली गई, और 25 अक्टूबर को परीक्षण के उपरांत आश्चर्यजनक रूप से 63 कामों के लिये केवल दो-दो फर्में ही अर्हं पाई गईं. किसी भी काम में तीसरी फर्म ऐसी नहीं मिली, जो उक्त काम के लिये तकनीकी तौर पर अर्ह हों. 2 कामों पर केवल एक-एक फर्म अर्ह पाये गये. सबसे दिलचस्प बात यह है कि ज्यादातर ठेकों में दो सेम कंपनियां अर्ह पाई गईं.
यह इसलिये संभव हो पाया कि टेंडर को मैनेज करने के बाद निविदा डाली गई थी. अगर इन ठेकों की जांच कराई जाये तो कई गड़बडि़यां सामने आयेंगी. आरोप है कि ज्यादातर ठेकों में जो दो कंपनियां अर्ह पाई गई हैं, उनकी प्रतिभूति यानी 10 फीसदी गारंटी रकम एक ही खाते से दी गई है. क्या यह संभव है कि लोक निर्माण विभाग पांच दर्जन से ज्यादा कामों में ई निविदा आमंत्रित करे और दो से ज्यादा ठेकेदार अर्ह ही ना पाये जायें? परंतु लोक निर्माण विभाग में यह संभव है. अगर किसी ने मैनेज टेंडर से अलग टेंडर डाल दिया तो वह तकनीकी बिड में ही बाहर कर दी जाती हैं.
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