राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान, नई दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रिंट मीडिया) के चयन में बेईमानी की आशंका बढने लगी है। परिणाम अभी घोषित नहीं हुआ है पर यहां के निदेशक प्रो. जयंत दास ने अपने चहेते विभागीय उम्मीवार को पहले तो साक्षात्कार के लिए अर्ह अभ्यर्थियों की सूची में प्रथम स्थान पर जगह दी और साक्षात्कार में सिलेक्शन कमेटी पर दबाव डालकर उसी को चयनित भी करा लिया है।
विभागीय सूत्रों की मानें तो चयनित अभ्यर्थी को पहले ही साक्षात्कार के लिए अर्ह उम्मीदवारों को सर्वाधिक योग्य दर्शाया गया। यह सूची संस्थान की वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी गयी है। चहेते उम्मीदवार के प्रमाणपत्रों को अधिक अंक प्रदान किये गये और साक्षात्कार के लिए योग्य अभ्यर्थियों की सूची में सर्वाधिक अंक प्रदान किये गये। 25 जून 2015 को आयोजित साक्षात्कार में निदेशक ने सिलेक्शन कमेटी पर अन्य उम्मीदवारों को अंग्रेजी में कमजोर दर्शाकर अपने चेले को चयनित करा दिया।
इसको लेकर अभ्यर्थियों में खासा रोष भी देखा गया। समझा जा रहा है कि अघोषित रूप से चयनित अभ्यर्थी के निदेशक से पुराने संबंध हैं। अपने संबंध को मधुर करने के लिए सदस्यों पर दबाव डालकर यह चयन कराया गया है। ये लोग पूर्व निदेशक के समय में संस्थान में आरटीआई कानून का इस्तेमाल कर यहां की विकास की प्रक्रिया को निरंतर प्रभावित करते रहे। चयन में क्षेत्रवाद का भी हवाला दिया जा रहा हैं। विषेश बात यह है कि चयन प्रक्रिया में यूजीसी द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए घोषित स्नातकोत्तर में 55 प्रतिशत के अंकों के अनिवार्य मानक को भी ताक पर रख दिया गया हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि अघोषित चयनित अभ्यर्थी ने संस्थान से बिना अनुमति के पीएचडी की है। इसके अतिरिक्त उसका संबंध ओबीसी श्रेणी से भी नहीं है। ऐसे में निदेशक ने मनमाने तरीके से यह नियुक्ति कराकर भारत सरकार एवं केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय की साख को धक्का पहुंचाया है।