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साहित्य

‘गुनाहों का देवता’ अंग्रेजी में ‘चंदर एंड सुधा’

1949 में प्रकाशित ‘गुनाहों का देवता’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘चंदर एंड सुधा’ के नाम से आया है। अनुवाद पूनम सक्सेना ने किया है और पेंगुइन ने प्रकाशित किया है। मैंने अनुवाद अभी नहीं पढ़ा है पर उसकी तारीफ पढ़ी है। हालांकि मुझे अंग्रेजी का नाम ही नहीं जम रहा है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके सौ के करीब संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इससे इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगता है और ऐसे में इसके नाम का बहुत मतलब नहीं है। किताब अपने नाम से ज्यादा लेखक और इसकी बेहद रोमांटिक प्रेम कहानी के लिए पढ़ी जाएगी। इस उपन्यास की लोकप्रियता के मद्देनजर कहा जा सकता है कि अंग्रेजी अनुवाद काफी देर से आया है। ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो एक समय इसे पसंद करते थे पर अब उन्हें इसमें कुछ खास नहीं लगता। खुद धर्मवीर भारती ने उपन्यास के नए संस्करण के दो शब्द में लिखा है, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ? अधिक-से-अधिक मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसन्द किया है। मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस…।

<p>1949 में प्रकाशित ‘गुनाहों का देवता’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘चंदर एंड सुधा’ के नाम से आया है। अनुवाद पूनम सक्सेना ने किया है और पेंगुइन ने प्रकाशित किया है। मैंने अनुवाद अभी नहीं पढ़ा है पर उसकी तारीफ पढ़ी है। हालांकि मुझे अंग्रेजी का नाम ही नहीं जम रहा है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके सौ के करीब संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इससे इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगता है और ऐसे में इसके नाम का बहुत मतलब नहीं है। किताब अपने नाम से ज्यादा लेखक और इसकी बेहद रोमांटिक प्रेम कहानी के लिए पढ़ी जाएगी। इस उपन्यास की लोकप्रियता के मद्देनजर कहा जा सकता है कि अंग्रेजी अनुवाद काफी देर से आया है। ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो एक समय इसे पसंद करते थे पर अब उन्हें इसमें कुछ खास नहीं लगता। खुद धर्मवीर भारती ने उपन्यास के नए संस्करण के दो शब्द में लिखा है, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ? अधिक-से-अधिक मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसन्द किया है। मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस...।</p>

1949 में प्रकाशित ‘गुनाहों का देवता’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘चंदर एंड सुधा’ के नाम से आया है। अनुवाद पूनम सक्सेना ने किया है और पेंगुइन ने प्रकाशित किया है। मैंने अनुवाद अभी नहीं पढ़ा है पर उसकी तारीफ पढ़ी है। हालांकि मुझे अंग्रेजी का नाम ही नहीं जम रहा है। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके सौ के करीब संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इससे इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगता है और ऐसे में इसके नाम का बहुत मतलब नहीं है। किताब अपने नाम से ज्यादा लेखक और इसकी बेहद रोमांटिक प्रेम कहानी के लिए पढ़ी जाएगी। इस उपन्यास की लोकप्रियता के मद्देनजर कहा जा सकता है कि अंग्रेजी अनुवाद काफी देर से आया है। ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो एक समय इसे पसंद करते थे पर अब उन्हें इसमें कुछ खास नहीं लगता। खुद धर्मवीर भारती ने उपन्यास के नए संस्करण के दो शब्द में लिखा है, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ? अधिक-से-अधिक मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसन्द किया है। मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस…।

इस उपन्यास के बारे में प्रेमचंद गांधी ने लिखा है, “जब यह उपन्यास प्रकाशित हुआ तब पूरे देश में आदर्शवाद की जबर्दस्त धूम थी। छठे दशक की किसी भी कला संस्कृति की विधा को ले लीजिए हर तरफ आदर्शवाद ही दिखाई देता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग तुरंत बाद के इस परिदृश्‍य में एक अजीब किस्म का जोश और जुनून था जिसमें बहुत कम लोग थे जो अंग्रेजों से मुक्ति के मोहभंग को यथार्थ में चित्रित कर रहे थे। नेहरूयुगीन आशावाद का एक जोम था, जिसमें पूरा देश बह रहा था। धर्मवीर भारती भी उस परिदृश्‍य के ही एक पात्र और कलाकार थे। वे उससे अलग कैसे रह सकते थे? आजादी के बाद के इस कालखण्ड में जो महत्वपूर्ण किताबें सामने आईं उनमें से अधिकांश में आत्मबलिदान को लेकर एक विचित्र किस्म का व्यामोह था। हर कोई कुरबान होना चाहता था, लेकिन किसी को पता नहीं था कि किस पर कुर्बान होना है। कोई अपनी कला पर कुर्बान था तो कोई अपनी प्रेमिका पर और बाकी सब किसी ना किसी मकसद को लेकर। बलिदानी होने की कामना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन दिक्कत तब होती है जब आपके सामने कोई ठोस आदर्श नहीं हो। यह उपन्यास उसी दौर की कथा है जिसमें आदर्श का कोई एक स्वरूप नहीं था और सच्चाई यह भी है कि यथार्थ में आदर्श का कोई एक मानक और ठोस रूप हो भी नहीं सकता। और प्रेम में तो आदर्श वक्त के साथ बहुत तेजी से बदलते रहते हैं। इसलिए भारती जी के युवावस्था में लिखे इस उपन्यास में एक यूटोपियाई प्रेम है। दो युवा दिलों के बीच पनपने वाला अव्यक्त किस्म का प्रेम, जिसे दोनों जानते तो हैं, पर अनजान भी बने रहते हैं और एक दूसरे को बस किसी प्रकार सुखी देखना चाहते हैं। जिसे अंग्रेजी में प्लेटोनिक लव कहते हैं, जिसमें दैहिक संबंध के बिना अपने प्रेम का चरम रूप दो प्रेमी दिखाना चाहते हैं। चंदर और सुधा ऐसे ही प्रेमी हैं।” 

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अनुराग यायावर ने लिखा है, “इस कहानी का ठिकाना अंग्रेज ज़माने का इलाहाबाद रहा है। कहानी के तीन मुख्य पात्र हैं : चन्दर , सुधा और पम्मी। पूरी कहानी मुख्यतः इन्ही पात्रों के इर्दगिर्द घूमती रहती है। चन्दर सुधा के पिता यानि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के प्रिय छात्रों में है और प्रोफेसर भी उसे पुत्र तुल्य मानते हैं। इसी वजह से चन्दर का सुधा के यहाँ बिना किसी रोकटोक के आना जाना लगा रहता है। धीरे धीरे सुधा कब दिल दे बैठती है यह दोनों को पता नहीं चलता। लेकिन यह कोई सामान्य प्रेम नहीं था। यह भक्ति पर आधारित प्रेम था। चन्दर सुधा का देवता था और सुधा ने हमेशा एक भक्त की तरह ही उसे सम्मान दिया था। यह ‘विराटा की पद्मिनी’ के कुंजरसिंह और पद्मिनी की सदृश प्रेम था। चन्दर पूरे समय आदर्शवादी बना रहा। उसे सदैव यह लगता था कि जिन प्रोफेसर ने उसे इतना प्यार दिया, अपने बेटे की तरह रखा उन्हीं की बेटी से अगर वह प्यार कर बैठता है तो उन पर क्या गुजरेगी। इसी उधेड़बुन में वह कभी तैयार नहीं हो पाता है। चन्दर के माध्यम से भारती जी ने एक मध्यम वर्ग के नौजवान की मानसिक स्थिति का वर्णन किया है जिसमें उसे सामाजिक और पारिवारिक अपेक्षाओं के आगे अपनी इच्छाओं की बलि देनी पड़ती है। साथ ही साथ प्रचलित मार्ग पर ही चलना पड़ता है, नए मार्ग पर चलने पर मानहानि का डर भी सताता रहता है। चन्दर हमेशा पसोपेश में रहता है कि क्या करना उचित रहेगा। चन्दर समाज के हर एक बंधन से बंधा था जो कि हमेशा उसे अपने मन की करने से रोक देते थे।”

लेखक धर्मवीर भारती के निधन के 18 साल बाद आज से 66 साल पहले लिखे गए इस उपन्यास को अंग्रेजी का आज का पाठक कैसे देखता है यह जानना दिलचस्प होगा। खासकर प्यार में नैतिकता और लव जेहाद के आलोक में। फिलहाल तो मैं यह जानना चाहता हूं कि इस उपन्यास का अंग्रेजी का नाम ‘गुनाहों का देवता’ के करीब या इससे मिलता-जुलता नाम क्या हो सकता था। सुझावों का स्वागत है।

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संजय कुमार सिंह के एफबी वाल से

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