Sanjaya Kumar Singh-
संस्थान को सील और मंत्री को बंद करके ‘जांच’ करेंगे तो काम कैसे होगा? न्यूजक्लिक मामले में यह जानने की जरूरत है कि सरकार के लिए मीडिया भी एक उद्योग है और इस बात का ख्याल रखा गया है कि यह विदेशी नियंत्रण में न हो तथा सरकार के लिए उसे संभालना मुश्किल न हो जाये। फिर भी न्यूजक्लिक पर हवा-हवाई आरोप दो साल पुराना है। उसे नियंत्रित करने की कोशिश में ‘जांच’ चल रही है, गिरफ्तारी पर स्टे था तो उसे बेअसर करने के लिए लगभग उन्हीं आरोपों पर यूएपीए का मामला बना लिया गया और इस आड़ में एफआईआर की कॉपी भी नहीं दी गई।
अदालत के आदेश पर जब कॉपी दी गई तो एफआईआर से ही साफ है कि मामले में दम नहीं है। अव्वल तो मामले बनते ही नहीं हैं और बना भी दिये जाएं तो यूएपीपीए जैसा नहीं है। वैसे भी, कोई भारतीय संस्थान जो नियमानुसार चल रहा है, विदेशी कंपनी से देश विरोधी काम करने का ठेका नहीं लेगा और लेगा भी तो अपने अंशकालिक कर्मचारियों से खुलेआम बिना बताये नहीं करवायेगा और करवायेगा तो उसका पता चलना इतना मुश्किल नहीं होगा जितना सरकार बताना चाह रही है।
मीडिया में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की इजाजत पहले से ही नहीं थी। कारण बताने की जरूरत नहीं है, कोई भी समझ सकता है। उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के भिन्न क्षेत्रों में जब एफडीआई आने लगा तो भारतीय मीडिया भी प्रभावित हुआ। सरकार ने प्रिंट में 26 प्रतिशत और टीवी में 49 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी और यह 1991 की बात है। इसी से भारतीय मीडिया में सरकारी दूरदर्शन के अलावा दूसरे संस्थानों का विकास हो पाया।
पूरी कहानी लंबी है लेकिन मोटे तौर पर आगे चलकर डिजिटल मीडिया में सरकार ने एफडीआई की सीमा को बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया। डिजिटल इंडिया में डिजिटल मीडिया की कल्पना आप कर सकते हैं। हालांकि बींच में इंडिया को जिस तेजी से भारत किया गया उससे भी पता चलता है कि यहां सब कुछ कितना ढीला-ढाला और डरा-डराया हुआ है। पर वह अलग मुद्दा है। तथ्य यह है कि 2019 में सरकार ने डिजिटल मीडिया में अधिकतम सीमा 26 प्रतिशत तय कर दी। इस तरह, पहले जो 100 प्रतिशत था वह अब लगभग एक चौथाई यानी 26 रह गया। इस तरह देश में डिजिटल मीडिया का विकास होना था, उसके लिए पैसे चाहिये थे तो प्रतिबंध है। सरकार के अपने कारण हैं। अभी वह मुद्दा नहीं है।
मुद्दा यह है कि मीडिया उद्योग की बात करूं तो जो विदेशी निवेश आया उससे चलने वाला एक संस्थान सील कर दिया गया है। कारण आप मानें या नहीं मानें बहुत ही लचर और फूहड़ है। इससे दुनिया भर में और देश के भावी उद्यमियों को क्या संदेश जाएगा। और कोई कारोबार करने की हिम्मत कर पायेगा? कहने की जरूरत नहीं है इस देश में अच्छा कमाने वालों को पुलिस के साथ गुंडों को भी हिस्सा देना होता है। बहुत लोगों को यह सब पसंद नहीं है या नहीं कर पाते हैं उसका नुकसान उठाते हैं, मारे जाते हैं। उदाहरणों की कमी नहीं है। कांग्रेस ने 70 साल कुछ नहीं किया तो संघ परिवार ने जो किया वह सामने है। हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट अडानी का मामला देश में निवेश के लिहाज से गंभीर है लेकिन सरकार की प्राथमिकता कुछ और है।
बात सिर्फ मीडिया पर नियंत्रण की नहीं है। अदालतों पर नियंत्रण और दबाव की कोशिश के मामले और उदाहरण सार्वजनिक हैं। फैसलों से भी आशंका होती है पर वह मेरा विषय नहीं है और ऐसे में दिल्ली सरकारी की शराब नीति या दूसरे मामले में मंत्रियों की गिरफ्तारी और ‘जांच’ चलते रहने से काम कैसे होगा? खास कर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार या सरकारी एजेंसी से जो सवाल पूछे हैं उसके आलोक में। जिस ढंग से काम रोका गया है या रोकने की कोशिश की गई है उससे साफ है कि मकसद क्या है। जो नहीं समझते हैं उन्हें बता दूं कि एक मकसद विपक्ष को अच्छा काम करने का श्रेय नहीं लेने देना है और दूसरा अगर आरोप सही है तो भी विपक्ष को चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं जुटाने देना है और आर्थिक रूप से इतना कमजोर कर देना है कि मुकाबला ही नहीं रहे।
सरकार ने अगर अच्छे काम किये होते, पारदर्शिता रहती तो इसके पक्ष में बात की जा सकती थी। कहा जा सकता था कि इधर बुरी है तो क्या हुआ उधर तो अच्छी है। पर ऐसा कुछ नहीं है। और एक निहायत अक्षम, अयोग्य व मनमानी सरकार दूसरों को भी काम नहीं करने दे रही है और बदनाम करने की हर सभंव कोशिश कर रही है। इसमें गैरकानूनी और अनैतिक होना शामिल है। दूसरी ओर, अपने पक्ष में सत्ता के साथ-साथ कानून का भी उपयोग-दुरुपयोग खुलकर किया जा रहा है। स्वतंत्र मीडिया यह सब बताता तो उसे नियंत्रण में रखने की हर संभव कोशिश की जा रही है। इसका असर भी उसके काम पर पड़ेगा। सील करके ‘जांच’ करना तो हद है। प्रेस कांफ्रेंस नहीं करना और आरटीआई कानून को कमजोर करना दूसरे उदाहरण हैं। कुल मिलाकर, डिजिटल इंडिया का प्रचार और मोबाइल लैपटॉप जब्ती का कोई कानून नहीं होना। पहले मनमानी आम आदमी, गरीब कमजोर से होती थी अब पत्रकारों से भी होती है। आप इसे विकास मानना चाहें तो स्वतंत्र हैं। मानिये।