Ranvijay Singh : जो मैंने देखा- (1) मैं लखनऊ में एक संस्थान में इंटर्न था. मेरे सामने एक बुजुर्ग कर्मचारी बेहोश हो गए. मतलब उनकी उम्र हो चली थी और काफी दिनों से बीमार भी थे. इसके बावजूद काम का दबाव और अन्य वजहों से लगातार ऑफिस आ रहे थे. इस लिए शायद उस रोज बेहोश हो गए. वो कुर्सी पर बैठे थे और वहीं गिर पड़े.
न्यूज रूम में मौजूद लोग उस ओर दौड़े. उन्हें उठाया और कुर्सी पर बिठा दिया गया. उनकी आंख नहीं खुल पा रही थी. फिर भी उन्हें पानी पिलाने की कोशिश जारी थी. खैर, एक नौजवान को अपनी जिम्मेदारी याद आई. या शायद रोज खुन खच्चर की खबरें लिखने पढ़ने के बावजूद भी वो अपनी संवेदना बचाए हुए था. वो उस बुजुर्ग इंसान को तुरंत अस्पताल ले गया. ऑफिस का और कोई उसके साथ न गया. सब अखबार निकालने में व्यस्त थे. किसी की जान से ज्यादा जरूरी अखबार है. ये शर्मनाक बात मैंने उस रोज जानी.
जो मैंने देखा- (2) मैं लखनऊ में ही एक संस्थान में बैठा था. इसी बीच एक कर्मचारी के माता जी की मौत की खबर आती है. वो बहुत ही भावुक है. आंखों में आंसू लिए. सब उसे सांत्वना देते हैं और फिर वो अपनी मां का अंतिम संस्कार करने चला जाता है. 2 दिन बीते होंगे और उस इंसान के पास कॉल जाने लगती है. क्यों, क्योंकि अखबार निकालना जरूरी है और आदमी की कमी है.
जो मैंने देखा- (3) ये वाक्या अलग है. इस लिए कि ये मैं कहीं इंटरव्यू देने गया था. एक नामचीन अखबार है अमर उजाला. उसका टेस्ट दिया. टेस्ट क्लियर करने के बाद मुझे ब्रूटा टेस्ट के लिए भेजा गया था. ये टेस्ट आपकी मानसिक स्थिति को जांचने का एक तरीका होता है. डॉक्टर ब्रूटा इसे लेते हैं तो इसे ब्रूटा टेस्ट ही कहा जाता है. वहां एक सवाल था, जो इस इंडस्ट्री के बारे में बताता है. सवाल कुछ ऐसा था- अगर आप किसी संस्थान में मैनेजर की पोस्ट पर हों. इस संस्थान में आप एक वक्त में एक आदमी को ही छुट्टी दे सकते हैं.
एक शख्स ने अपनी बेटी की शादी के लिए पहले ही छुट्टी ले रखी है. लेकिन उस आदमी के जाने के दिन ही एक दूसरे कर्मचारी को तार मिलता है कि उसकी मां का देहांत हो गया है. अब आप किसे छुट्टी देंगे? ये अजीब सा सवाल भले ही आपकी मैनेजमेंट की क्षमता को जांच रहा हो, लेकिन असल में तो ये बहूदा सा सवाल है. खैर, मैंने जो जवाब दिया शायद उसके वजह से ही मेरा वहां नहीं हुआ. जवाब था- ‘तार अभी बंद हो चला है. इसलिए तार नहीं आ सकता.’
छत्तीसगढ़ में पत्रिका की रिपोर्टर रेणु अवस्थी की सुसाइड की खबर नहीं लगी. आगे भी किसी रेणु की खबर नहीं लगेगी. क्योंकि आपकी अहमियत नहीं है. यहां मोदी और तैमूर की टट्टी लग सकती है, लेकिन आपकी मौत की खबर नहीं लग सकती. लगेगी भी तब जब आप उस लायक हों. मने उस लायक, जिस लायक सिर्फ 100 में से 1 कोई होता है. इस फील्ड की यही सच्चाई है.
आप लाख कर लें, लेकिन जब आप पर आएगी तो अकेले हो जाएंगे. इस लिए अपने व्यक्तिगत संबंध बनाएं. जितना हो सके उन लोगों से मिलें जो आपसे दिल से जुड़ रहे हैं. प्रोफेशनलिज्म जरूरी है, लेकिन उसे खुद पर हावी न होने दें. सरल रहें, मस्त रहें और संवेदना को जिलाए रहें. क्योंकि यही मर गई तो जीना कैसा.
आजतक न्यूज चैनल में कार्यरत पत्रकार रणविजय सिंह की फेसबुक वॉल से.
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Dhirendra Mishra
July 6, 2018 at 12:56 am
Good
100percent
Sandeep jyada jaruri
Khushi ko kinda rakhne ke lite rista Banstead rakhen.