परसों पूरे देश में राष्ट्रीय शोक था। संयोग से परसों ही साहित्य के राष्ट्रीय धरोहर नामवर सिंह जी का जन्मदिन भी था। राजकमल प्रकाशन द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में डॉ नामवर सिंह के जन्मदिन को डॉ कलाम के शोक से बड़ा साबित करते हुए एक रंगीन और तरल-गरल पार्टी रख दिया गया। कई पहुंचे, क्या पत्रकार एवं क्या साहित्यकार। शायद नामवर जी नहीं पहुंचे या पहुंचे भी हों तो थोड़े समय के लिए ही पहुचे हों।
रात चढ़ी और दारु का दौर चला तो सबसे पहले लुढके लोकतंत्र के चौथे खम्भे के सबसे निष्पक्ष पहरेदार। इसी क्रम में शराब का नशा अब शवाब बनकर आँखों में तैरा फिर जुबान पर आ गया। बात बढ़ी तो आगे तक गयी और साहित्य एवं पत्रकारिता की परतों पर धूल जमाने वाले लोग नशे में खुरचने लगे साहित्य और पत्रकारिता की परतों को। जनसत्ता के एक सम्पादक जो अब विदा होने वाले हैं, ने यह गिनाना शुरू किया कि वे अबतक किसके-किसके साथ रातें बिता चुके हैं। अपनी रातों के साहित्यिक हमबिस्तर साथियों के क्रम में साहित्य जमात की कई महिलाओं का नाम भी लिया गया।
वैसे महिलाओं का नाम लेना यहाँ उचित नही है। साहित्य जगत के मिसाइलमैन के जन्मदिन में प्रायोजित पार्टी अंत तक शराब के नशे और शवाब की चर्चा के बीच वो पार्टी सम्पादक जी के पिटाई के बीच शोक में ही बदल गयी। हालांकि जनसत्ता के इतिहास में ये पहला मौका होगा जब कोई सम्पादक अपने विदाई से तीन दिन पहले इस तरह पिटा होगा। हालांकि एक सवाल मेरे मन में है कि ये सम्पादक जी क्या वाकई इतनी महिलाओं के साथ सोये भी होंगे या सिर्फ बहबही में झूठ बोल रहे थे? वो महिलायें स्पष्ट कर सकती हैं।
शिवानन्द द्विवेदी सहर के एफबी वाल से
उपरोक्त स्टेटस पर जनसत्ता के संपादक ओम थानवी की टिप्पणी पढ़ें:
Comments on “सम्पादकजी क्या वाकई इतनी महिलाओं के साथ सोए भी होंगे या सिर्फ बहबही में झूठ बोले!”
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बहुत अच्छा हुआ.. ऐसा संपादक पिटने के ही काबिल है.. पूरी जिंदगी मालिकों की चाटुकारिता करनेवाला दारू के नशे में अपनी औकात पर आ ही गया..
chhi, ghin k yogy hain ye kalmuhe.