कुछ समय पहले बदमाशों ने, न सुहाने वाले एक आलोचक – जो टीवी पर भी बेबाक रहते हैं – के बारे में अफवाह उड़ाई कि उनकी पत्नी भाग गई हैं। अफवाह ऐसी कि कोई उनसे पुष्टि भी करना चाहे तो कैसे करे लेकिन कल मेरे बारे में उन लोगों ने थोड़ी रियायत बरती, सो मित्रों ने मुझे फोन कर बता भी दिया। उन कुछ के श्रीमुख से देशद्रोही, गद्दार, विदेशी एजेंट आदि जुमले तो रोज सुनते हैं; सो इसमें भी हैरानी नहीं हुई कि अब वे शराबी-कबाबी-व्यभिचारी कहें; कौन जाने कल बलात्कारी-हत्यारा या तस्कर भी कहने लगें। ऐसे गलीज तत्त्वों से कोई गिला नहीं।
जहाँ उनकी ‘प्रतिभा’ की कद्र है, लोग उनकी बात सुनेंगे। यह बुद्धि का नहीं, गंदी मानसिकता का साझा है। हैरानी है तो इस बात पर कि जिनको यह तक मालूम नहीं कि नामवरजी अपने जन्मदिन के आयोजन में आए या नहीं (वैसे वे नहीं आए थे), उन्हें क्या पता कि पौने दस बजे तक मैं भी वहां नहीं पहुंचा था, क्योंकि फोकस टीवी पर एक चर्चा के लिए गया था! जब पहुंचा तो लोग जा रहे थे। अब्दुल बिस्मिल्लाह, पंकज बिष्ट, विष्णु नागर और पंकज सिंह बैठे थे। पंकज सिंह की किसी गलतबयानी पर (वे सात बजे से वहीं थे) मैंने उन्हें झिड़क दिया तो वे भड़क गए। आइआइसी की गरिमा के खिलाफ उनके मुंह से गाली और धमकी के शब्द भी झड़े तो उन्हें लोग कमरे से बाहर ले गए, बाद में घर भी छोड़ आए।
मैं और डॉ बिस्मिल्लाह पीछे इस बरताव पर अफसोस और इसकी वजह समझने की कोशिश करते रहे। मैंने दो ही बातें पंकजजी को कही थीं – एक तो यह गाली की भाषा कवि को शोभा नहीं देती (आयोजन में महिलाएं भी मौजूद थीं), दूसरी यह कि आप (और अन्य दो साहित्यकार) रुकें तो मैं रास्ते में घर छोड़ दूंगा (इसका आग्रह मुझसे किया गया था)।
इस प्रसंग मात्र से अपनी छिछली प्रतिभा में पूरी कल्पना झोंक कर किस्से-कहानियों सा दुष्प्रचार मुख्यतः किसने और क्यों किया, मैं उनके नाम जानता हूँ: ये ‘प्रतिभाएं’ हैं कल्बे कबीर उर्फ कृष्ण कल्पित, जिन्हें दूरदर्शन में रिश्वत लेते सीबीआइ ने पकड़ा और बरसों मुअत्तल रहे, तब मेरी मदद चाही, जो मैं न कर सका; शिवानंद द्विवेदी सहर, जिनकी ‘रचनाएं’ जनसत्ता से नामंजूर होती रहीं और जिन्हें मैंने ब्लॉक भी किया; अंबरीश कुमार, जिनका तबादला कर दिल्ली से रुखसत किया था।
अफवाहें उड़ाने वालों को शायद पता नहीं कि आइआइसी में हर कक्ष में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जो आवाज भी रेकार्ड करते हैं! करो बंधु, तुम्हें यही शोभा देता है। देख लेंगे कि तुम्हारे दुष्प्रचार में ताकत है या हमारे सच में। पर जरा बताओ, उन बेचारे कवि महाशय की पत्नी को इसमें क्यों घसीट रहे हो? उनके दोस्त हो या दुश्मन?
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के एफबी वाल से
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