आसाराम प्रकरण पर आधारित कोर्टरूम ड्रामा फ़िल्म है ‘एक बन्दा काफी है’!

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विजय सिंह ठकुराय-

कल जी5 पर आसाराम प्रकरण पर आधारित एक कोर्टरूम ड्रामा फ़िल्म – एक बन्दा काफी है – देखी। मुख्य भूमिका में मौजूद मनोज बाजपेयी के अभिनय के बारे में कुछ कहना तो सूरज को दिया दिखाने के समान है। फ़िल्म के अंत में मनोज बाजपेयी की क्लोजिंग स्पीच एक मोनोलोग है, जो बड़ा शानदार और फ़िल्म की जान है।

मनोज अपनी जिरह के अंत में कहते हैं —

एक दिन अपनी मुक्ति के लिए तप करते रावण को देख माता पार्वती भोलेनाथ से बोलीं कि – हे प्रिये, रावण तो आपका सबसे बड़ा भक्त है। आप इसके पापों को क्षमा कर मुक्ति क्यों नहीं दे देते?

तो महादेव मुस्कुराए, और बोले – हे पार्वती, पाप भी कई प्रकार के होते हैं। एक तो सामान्य पाप, एक अतिपाप जिसकी दोषसिद्धि भी पश्चाताप से संभव है, और तीसरा होता है महापाप – जिसका दोष निवारण कभी संभव नहीं।

तो पार्वती अचरज से बोलीं – हे प्रभु, रावण ने एक स्त्री का अपहरण ही तो किया था। यह ज्यादा से ज्यादा अतिपाप की श्रेणी में आएगा। इसे महापाप कहने का क्या औचित्य है?

तो फिर महादेव फिर मुस्कुराए और बोले – अगर इसने यह पाप रावण रहते हुए किया होता तो कोई बात न होती। पर इसने तो साधु का वेश बनाया, समस्त सनातन को कलंकित किया, भावी पीढ़ियों को साधुत्व के प्रति सशंकित किया – हे पार्वती, इसीलिए इसका पाप महापाप है और अक्षम्य भी।

फ़िल्म ख़तम होने के बाद इस पर सोचता रहा। विगत समय में न जाने कितने मामले देखे, जिसमें महिलाएं अपने शिक्षक, गुरु, या माँ-बाप की अनुपस्थिति में नियुक्त किये गए अभिवावक के द्वारा ही शोषित हुईं। मुझे लगता है कि जिन बच्चों के घर का माहौल खराब हो, घर में या तो पुरुषों (बाप-भाई) का अभाव हो, या परिवार के पुरुषों का व्यवहार खराब हो, वे महिलाएं बाहरी मर्दों, खासतौर पर उम्र में बेहद बड़े मर्दों, जैसे कि शिक्षक, गुरु या संत में सुरक्षाबोध ढूंढ कर उनके प्रति बहुत जल्दी आकर्षित हो जाती हैं और अंत में हमेशा नहीं तो कई बार छली जाती हैं।

यह भी क्या विडंबना है कि माँ-बाप किसी को पितातुल्य का दर्जा देकर, भरोसा करके, अपनी बच्चियां सौंप दें और कोई उनका ही विश्वास तोड़ दें। यह भी क्या दुर्भाग्य है कि कोई महिला किसी शिक्षक अथवा साधु में पितातुल्य विश्वास ढूंढे और वही गुरु उनकी देह पर वासना के नाखून गड़ा दे।

दुनिया में चाहें कुछ भी कीजे, पर गुरू, शिक्षक और साधु के रूप में किसी का भरोसा न तोड़िये।

एक गुरु अथवा साधु के रूप में किया गया विश्वास का घात अनंत जन्मों के पुण्य को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।

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