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वेब-सिनेमा

मैं आजकल ‘उर्तुगुल ग़ाज़ी’ वेब सीरीज देख रहा हूँ

Yashwant Singh : आजकल उर्तुगुल ग़ाज़ी वेब सीरीज देख रहा हूँ। 52 लाख किलोमीटर भूभाग वाले उस्मानी साम्राज्य उर्फ ऑटोमन एम्पायर की नींव कैसे पड़ी, इस पर बेस्ड मध्यकालीन सुपर पावर तुर्की के तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं पर केंद्रित ड्रामा सीरियल है। पाकिस्तान टीवी ने शानदार डबिंग की है। पर अभी दो सीजन ही डब किए हैं। मैं पीटीवी द्वारा डब पार्ट देखने के बाद नेटफ्लिक्स पर ओरिजिनल तुर्की भाषा वाला देख रहा हूँ, अंग्रेजी सब टाइटिल्स की मदद से।

152 पार्ट देख चुका हूं अब तक। इस्लाम का शासन यूरोप एशिया अफ्रीका में फैलने से पहले तुर्की में कैसे हालात थे, कैसे खुद को एक कबीले ने मजबूत कर कई साम्राज्यों को अपने अधीन किया, ये कहानी है। इस सीरीज को देखते हुए कल रात सोच रहा था कि मनुष्य ने कितनी लड़ाइयां लड़ने कितनी मुश्किल सहने के बाद आज यहां तक की यात्रा की है। युद्ध तो अब भी जारी है, धार्मिक और आर्थिक विस्तार के लिए, पर फॉर्मेट्स बदल गए हैं। उर्तुगुल ग़ाज़ी देखते हुए उत्सुकतावश बहुत सारे आर्टकिल / किताबें भी पढ़ता रहा उस दौर से सम्बंधित।

मुस्लिमों में खासकर इस सीरीज के प्रति बहुत क्रेज है। इस सीरीज पर बहुत कुछ अलग अलग एंगल से लिखा जा सकता है। कोई इसे तुर्की स्टाइल इस्लाम के प्रचार के लिए प्रोपेगैंडा कह सकता है तो कोई मनुष्य की जिजीविषा के वैश्विक दस्तावेज का एक पन्ना। इसे न्याय सच्चाई के लिए इस्लाम के परचम तले जंग कह सकता है तो कोई मध्यकाल की राजनीति समाज समझने की खिड़की बता सकता है। इतिहास का विद्यार्थी रहा मैं उदात्त भाव से देख रहा इस सीरीज को इसलिए इसे एक साथ कई कई भाव से महसूस कर रहा। देखते हुए लगता है कि सच में हम सब कठपुतलियां हैं, गुलाम हैं, जिन्हें अपना अपना काम करते हुए जीने मरने के लिए धरती पर भेजा गया है।

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भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेरों कमेंट्स कुछ यूं हैं-

Nadim S. Akhter
हम तो सीजन -4 का 28वां एपिसोड, volume 119 देख रहे हैं। दो और एपिसोड बाद सीज़न 4 खत्म। अब अरतुरुल के बेटे उस्मान ग़ाज़ी बड़ा होने वाला है पांचवें सीजन में। पूरी सिरीज़ लाजवाब है।

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Deepak Kabir
ji nahin, usman bachcha hi rahega 12-13 saal ka.I hv finished all 448 episodes .😊

पूनम
मैं भी देख रही हूँ सर लेकिन यूट्यूब पर। एक शानदार फिक्शन है लेकिन देखकर समझ आता है कि गैरमुस्लिम खासकर क्रिश्चियन कन्ट्रीज ने इसे क्यों बैन किया हुआ है? इसके अलावा यदि इस्लाम वही है जो इस सीरियल सीरीज में दिखाया गया है तो फिर इस्लाम इतना बदनाम क्यों है आज के दौर में, यह सवाल भी कम बड़ा नही है। खैर, कुल मिलाकर फ़िक्शन के तौर पर एक लाजवाब सीरिज है यह।😊

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Kaushal Kishore
बीबीसी पर इस सीरीज को लेकर एक लंबा लेख है, लेकिन अच्छी जानकारी देता है… शीर्षक है- एर्तरुल: तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन का इस्लामिक राष्ट्रवाद कैसे फैलाया जा रहा है?

Roopesh Kumar
मैं दूसरे सीजन की 16वीं सीरीज देख रहा हूँ। लॉक डाउन में अच्छा समय कटा।

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Mohammad Maruf Khan Journalist
हम लोगों ने तो इस रमज़ान में ही देखा था। एक काई कबीले की कहानी का विस्तार है।

Ved Ratna Shukla
आपने स्पष्ट कोई निष्कर्ष नहीं बताया.

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Yashwant Singh
कई बार धारा के साथ तैरने में मजा आता है, बजाय किनारे बैठ पानी की गहराई और धारा की गति नाप कर नतीजा निकालने के 🙂

Ajitesh Narayan Singh
खैर, सिरीज़ की 98% कहानी फिक्शन है और आजतक कुस्तुनतूनिया पर कब्जा करने वाले सुल्तान मेहमत के पिता एर्तूग्रुल के नाम के अलावा और कुछ भी नहीं पता है. प्रोडक्शन टीम ने भी कहा है कि इसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है.

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Yashwant Singh
जी। पर इसी बहाने उस दौर के तुर्की के इतिहास को पढ़ने जानने की उत्सुकता पैदा होती है।

Md Umar Ashraf
मेहमत के अब्बा का नाम मुराद था जनाब

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Saleem Saifi
सास बहू वाले सीरियलों के बीच इस सीरियल ने जो कामयाबी हासिल की है उसके पीछे उसके निर्माण की क़्वालिटी, लेखन,डायलॉग,प्रस्तुतिकरण और अभिनय व संगीत सब मे सामंजस्य बैठाने के पीछे की कड़ी मेहनत ये बताती है कि आज भी इतिहास मानवीय पहलुओं की रक्षा करने से ही स्वर्णिम होता है।

Yashwant Singh वाकई! सीरीज में जो दरवेश हैं, वो काफी कुछ हर धर्म के उदात्त चेता आध्यात्मिक गुरु जैसे ही हैं। अन्याय शोषण के खिलाफ, न्याय मनुष्यता के पक्ष में!

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Pankaj Bali
गेम्स ऑफ थ्रोन्स ,इनसानी ज़िन्दगी का काफी विस्तृत फलसफा बयाँ करती है । हालाकि वो फिक्शन है लेकिन मानव व्यवहार और इतिहासिक विकास को जानने के बारे काफी अच्छी समझ विकसित करती है

Yashwant Singh
अगली बारी उसी की है पंकज भाई।

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Vikash Rishi
मैं हिंदी में पहले सीरीज के 23 एपिसोड देख चुका हूँ। दूसरे वाले की डब्बिंग पसंद नहीं आई तो इंतज़ार कर रहा हूँ।

Yashwant Singh
हां। हर दो तीन दिन में ptv एक नया एपिसोड डब कर अपलोड कर देता है।

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Vikash Rishi
दूसरे वाले में प्रोडक्ट हाउस ने पाकिस्तानी पंजाबी वॉइस ओवर एक्टर्स से काम करवाया है। उनकी भाषा शो में फिट नहीं बैठती। बाक़ी अब तो यूट्यूब पर भी हिंदी उर्दू वाले एपिसोड्स उपलब्ध हैं।

Robby Sharma
इतिहास is nothing else but आर्थिक विकास.

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Shams Ur Rehman Alavi
Third season se asli interest, maza shuroo hota hai

Yashwant Singh
बहुत टाइम किल होता है देखने में लेकिन नशा ऐसा कि पार्ट दर पार्ट देखते जाओ! शाम से सुबह हो जाती है 🙂

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Md Umar Ashraf
साहब, मुझे 2nd सीज़न सबसे अधिक पसंद आया।

Zubair Ahsan Zuberi
Dekhte rahiye. 5 Season hain iss series k

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Shubham Pandey
क्या वास्तविकता से परे है यह सीरीज ?? या सच्चाई दिखाया गया है?

Azher Imam Alig
history original hai but ab series hai phir thora masla dal dia jata hai na bhai

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Yashwant Singh
उस दौर के ज्ञात अज्ञात इतिहास को वास्तविकता और कल्पनाशीलता के आधार पर पिक्चराइज किया गया है। काई कबीला, सुलेमान शाह, उर्तुगुल ग़ाज़ी, उस्मान, मंगोल, सलजोक… सब सच हैं। पर जितनी बारीकी से चित्रण किया गया है उससे समझ आता है कि काफी कल्पनाशीलता और रचनाधर्मिता का इस्तेमाल किया गया है, इतिहास को सम्पूर्णता में पेश करने के लिए। बताया जाता है कि तुर्की का ये स्टेट फंडेड वेब सीरीज है, इसलिए इसे प्रोपेगेंडा भी कहा जाता है। पर हर फिल्म सीरियल कोई न कोई msg ही देता है। ये देखने वाले के दिमागी स्तर पर डिपेंड करता है कि वह क्या कंसीव करता है।

Surendra Singh ये भी एक पक्ष है, इसे भी पढ़िए… किसी ताबिश ने लिखा है… जानिए एर्तरुल गाज़ी वेब सीरीज का इस्लामिक इतिहास… एर्तरुल ग़ाज़ी, तुर्की की एक टीवी/वेब सिरीज़ है.. 2014 में शुरू हुवे इस वेब सिरीज़ के 400 से अधिक एपिसोड आ चुके हैं.. तुर्की में ये सिरीज़ बहुत ही ज़्यादा हिट हुई और लोग दीवाने हो गए इसके.. ये सीरियल पूरी तरह से तुर्की गवर्नमेंट की देखरेख में बना.. सरकार ने इसके लिए मोटी रकम दी.. राष्ट्रपति एर्दोआन का परिवार अक्सर इस सीरियल के सेट पर जाता था और कलाकारों के साथ समय बिताता था.. इसे पूरी तरह से तुर्की राष्ट्रपति के सरकारी संरक्षण में एक विशेष रणनीति के तहत बनाया गया है

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एर्तरुल तुर्की की ओस्मानिया (उस्मानिया) सल्तनत की नींव रखने वाले ओस्मान (उस्मान) प्रथम के पिता थे.. एर्तरुल के बारे में ऐतिहासिक जानकारी नगण्य है.. पुरातत्व वालों को एर्तरुल समय का एक सिक्का मिला था जिस पर उनका नाम लिखा था.. एर्तरुल के बारे में अगर पूरे इतिहास की बात करें तो बस इतनी ही जानकारी अब तक मिली है जो पांच या छः पन्नो में समा जाय.. इतनी कम और नगण्य ऐतिहासिक जानकारी को लेकर तुर्की के सैंतीस साल के डायरेक्टर और लेखक “मेहमत बोज़दा” ने चार सौ से अधिक एपिसोड बना डाले

इसलिए जहां तक इसकी कहानी के ऐतिहासिक होने का प्रश्न है तो ये पूरी तरह से काल्पनिक है.. मगर लेखक ने तेरहवीं सदी के तुर्की के समकालीन बड़ी बड़ी हस्तियों को अपनी कहानी में ऐसे जोड़ा है जिसकी वजह से ये काल्पनिक होते हुवे भी सत्य लगती है.. इस सीरियल के ज़्यादातर चरित्र इतिहास से जुड़े हैं और उनके बारे में अच्छा ख़ासा इतिहास उपलब्ध है, सिवाए इसके मूल चरित्र एर्तरुल को छोड़कर

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जैसे सूफ़ी विचारधारा की एक तरह से नींव रखने वाले “इब्न अरबी”.. वो उसी दौर में थे जब एर्तरुल थे मगर इसका कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है कि इब्ने अरबी से एर्तरुल की कोई भी मुलाक़ात हुई थी कभी.. मगर अगर आप ये सीरियल देखेंगे तो आपको इब्ने अरबी का बहुत ही बड़ा रोल और एर्तरुल को एर्तरुल बनाने में उनका बड़ा ही योगदान दिखाया जाएगा

दरअसल एर्तरुल ग़ाज़ी पूरी तरह से तुर्की राष्ट्रपति एर्दोआन की बड़ी सोची समझी साज़िश का नतीजा है.. तुर्क और अरब के बीच मे चली आ रही बड़े पुराने राजनैतिक मतभेद को नज़र में रखते हुवे इसका निर्माण किया गया है.. उस दौर को महिमामंडित करने की कोशिश की गई है जब इस्लाम की “ख़िलाफ़त” तुर्कों के हाथ मे आयी थी.. इब्ने अरबी के ज़रिए एर्तरुल को ऐसा दिखाया गया है जैसे वो “अल्लाह” द्वारा चुने गए कोई ग़ाज़ी थे और जिनको ये वरदान मिला था कि इस्लाम के ख़लीफ़ा की बागडोर उनका बेटा उस्मान संभालेगा और वो अल्लाह द्वारा चुना हुवा ख़लीफ़ा बनेगा.. ये सब मनगढ़ंत बातें हैं.. उस्मानिया सल्तनत को “अल्लाह” द्वारा चुनी सल्तनत बताने के लिए

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एर्तरुल ग़ाज़ी में तुर्की का अपना “गढ़ा” हुवा इस्लाम दिखाया गया है.. जो सूफ़ी और अन्य पंथों को मिलाकर बना था.. इस इस्लाम का अरब के इस्लाम से दूर दूर तक कोई नाता नहीं था.. मगर तुर्की और ईरान से फैला इस्लाम का ये “कोमल” रूप सारी दुनिया पर छा गया था.. इब्ने अरबी से शुरू होकर “रूमी” तक जाता हुवा सूफ़ी पंथ का ये इस्लाम दुनिया में आज इस्लाम का एक अलग चेहरा बनाता है.. और इसी इस्लाम को भुनाने की राष्ट्रपति एर्दोआन और उनकी टीम ने पूरी कोशिश की है.. ये इस्लाम इनके घर की खेती थी और पूरी तरह से इनके अपने यहां ये गढ़ा हुवा मज़हब था.. जो था तो इस्लाम नहीं मगर इसे इन्होंने इस्लाम बना लिया था

ज्ञात हो कि इब्ने अरबी ही वो पहले सूफ़ी थे जिन्होंने “वहदतुल वजूद” यानि “कण कण में ईश्वर है” की विचारधारा को अपनाया था.. ये विचारधारा इस्लाम की नहीं थी, ये भारत से गयी थी.. मगर इब्ने अरबी ने इस विचारधारा को अपना कर इसे इस्लाम मे शामिल कर लिया था.. इसके लिए उनका विरोध भी ख़ूब हुवा था.. क्यूंकि सिर्फ़ इसी विचारधारा को अगर आप गहराई से समझेंगे तो पाएंगे कि इसी एक विचारधारा से अरब के मूल इस्लाम की सम्पूर्ण विचारधारा धराशायी हो जाएगी.. इस विचारधारा का इस्लाम से कोई लेना देना ही नहीं है और ये पूरी तरह से इस्लाम की विचारधारा के विपरीत है.. और इसी सिलसिले में आगे “रूमी” आये जिन्होंने इब्ने अरबी से दो हाथ और आगे जाते हुवे कई ऐसी विचारधाराओं को सूफ़ी पंथ में सम्मिलित कर लिया जो इस्लाम के बिल्कुल विपरीत थीं.. जैसे पुनर्जन्म और ऐसी कई चीजें जिनका सिमेटिक धर्म, यानि यहूदी, ईसाईयत और इस्लाम से कोई लेना देना ही नहीं था.. इन विचारधारों को अगर आप इस्लाम से जोड़ते हैं तो अरब के इस्लाम का मूल ही धराशायी हो जाएगा और इस्लाम कि सारी किताबें, क़ुरान से लेकर हदीसें, सब बेमानी हो जायेंगी

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तो तुर्की का ये अपना इस्लाम था जो उन्होंने अरब के इस्लाम के समानांतर खड़ा कर दिया था.. और ये बहुत ज़्यादा लोकप्रिय भी हो गया.. लोकप्रियता इसकी इतनी ज़्यादा हो गयी कि अरब वाले भी इसे न मानते हुवे भी इसको लेकर हमेशा खामोश रहे क्यूंकि जो कुछ भी चल रहा था उसका नाम तो “इस्लाम” ही था.. भले वो इस्लाम नहीं था मगर लोग उसे इस्लाम समझ के हाथों हाथ ले रहे थे

इस प्रतिस्पर्धा और राजनैतिक चाल को आप ऐसे समझ सकते हैं कि ज़ाकिर नायक ने एर्तरुल ग़ाज़ी सीरियल को “हराम” बताया है और लोगों से इसे न देखने की अपील की है.. सऊदी अरब और यूएई ने इसे अपने यहां प्रतिबंधित कर दिया है.. और इस सीरियल के जवाब में सऊदी ने कई मिलियन डॉलर के ख़र्च पर एक नया सीरियल “मालिक-ए-नार” बनवाया है, इसके दस एपिसोड अभी तक आ चुके हैं.. जिसमें तुर्कों को विलेन की तरह पेश किया जा रहा है.. ज़ाकिर नायक सऊदी के वहाबी इस्लाम को मानता है और उसके लिए एर्तरुल कहीं से कहीं तक वहाबी इस्लाम के ढाँचे में फ़िट नहीं बैठेगा

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इमरान खान जब तुर्की गए तब एर्दोआन ने उनसे “एर्तरुल” सीरियल का ज़िक्र किया और उन्हें बताया कि किस तरह से ये उनके यहां ब्लॉक बस्टर सीरियल बन गया.. इमरान ने कहा कि वो इसे पाकिस्तान में उर्दू में डब करा के पाकिस्तान टीवी पर प्रसारित करने चाहेंगे.. उन्हें इजाज़त मिली और फिर पाकिस्तान टीवी ने इसे डब करके प्रसारित करने शुरू किया.. आज पाकिस्तान में इस सीरियल की लोकप्रियता का ये हाल है जैसा कभी भारत मे रामायण का था.. लोग दीवाने हैं और सारे साउथ एशिया में उर्दू समझने वालों में इसकी दीवानगी बढ़ती ही जा रही है

तुर्की के राष्ट्रपति का ये प्रयोग बहुत हद तक कामयाब हो रहा है.. क्यूंकि सूफ़ी के तड़के के साथ जिहाद और खून खराबा परोस के एर्दोआन अपने जिदाही मंसूबे पर कामयाब होने की कोशश कर रहे हैं.. वो इस वक़्त तुर्की समेत समूचे साउथ एशिया के मुस्लिम नौजावनों को जिहाद के लिए उकसाने की कोशिश पर आमादा हैं और जाने कितने इस सीरियल से आकर्षित हो कर उस राह पर चलने का मन बना भी चुके हैं.. सुफ़िस्म इस में जो दिखाया जा रहा है, वो बस जाल है.. इसका मुख्य उद्देश्य और मूल “जिहाद” परोसना है सुफ़िस्म की आड़ ले कर

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इसलिए इमरान खान भी राष्ट्रपति एर्दोआन के साथ मिलकर इस जिहादी मुहीम में कूद पड़े हैं और उन्होंने बाक़ायदा twitter पर लोगों को सन्देश दिया कि लोग इस सीरियल को देखें और इस्लाम के इतिहास को जानें.. जबकि ये सरासर झूठ है.. ये कोई इतिहास नहीं बल्कि पूरी तरह से एक काल्पनिक गाथा है.. मगर ये इमरान खान समेत एर्दोआन के मंसूबे को आगे बढाता है. इसलिए इसका इन्हें भरपूर समर्थन है.. ध्यान रखिये जब कोई राजनैतिक व्यक्ति आपसे कुछ देखने या अनुसरण करने को बोले तो उसे बड़े ध्यान से समझने की कोशिश कीजिये.. क्यूंकि राजनैतिक व्यक्ति का एजेंडा गूढ़ और दूरगामी होता है

तो अगर आप ये सोचते हैं कि एर्तरुल ग़ाज़ी इस्लाम धर्म का कोई सीरियल है तो आप ग़लत हैं.. ये तुर्की के अपने बनाये इस्लाम का प्रचार है जिसे एर्दोआन सारे विश्व मे आने नाम से लेकर चलना चाहते हैं और इस्लाम के नए ख़लीफ़ा बनना चाहते हैं.. इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसका लेखन और निर्देशन कमाल का है.. और इसे हर किसी को देखना चाहिए.. मगर ये सोचकर कि मात्र एक दिमाग़ी उपज है राष्ट्रपति एर्दोआन और उनकी टीम की.. आप उस दौर में नहीं हैं और न ही अब आपको उस दौर में वापस जाना है

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एर्तरुल को अगर आप उर्दू में देखना चाहते हैं तो youtube पर TRT Ertagrul by PTV के चैनल पर जाईये.. ये सबसे अच्छा अनुवाद और डबिंग है.. और अभी तक इसके 58 एपिसोड ये चैनल रिलीज़ कर चुका है.. हफ़्ते में पांच दिन, बुधवार से लेकर रविवार तक रोज़ रात 9:30 पर यहाँ एक एपिसोड रिलीज़ होता है.

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