-श्रीप्रकाश दीक्षित-
राज्यपालों और शाही राजभवनों से मुक्ति का वक्त… महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी द्वारा ताना मारते हुए मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी पर ना तो कांग्रेस और ना शरद पवार को घड़ियाली आँसू बहाने का हक़ है.राज्यपाल पद का जो अवमूल्यन हुआ और प्रतिष्ठा और गरिमा गिरी है उसके लिए कांग्रेस ही ज्यादा जिम्मेदार है.
रोमेश भंडारी, नारायणदत्त तिवारी और रामनरेश यादव जैसे दर्जनों पूर्व बदनाम राज्यपाल उसी की देन हैं. भारतीय जनता पार्टी तो बस पार्टी विथ डिफरेंस का जुमला त्याग पूरी निष्ठा से कांग्रेस के नक्शेकदम पर चल रही है. तभी ये राजसी राजभवन केंद्र मे सत्तारूढ़ पार्टी के चुके हुए नेताओं और पालतू नौकरशाहों के पुनर्वास का अड्डा बने हुए हैं.
केंद्र में सरकार बदलते ही राज्यपालों को ताश के पत्तों की मानिंद फेंटा जाता है और बूढ़े,थके-हारे और कई बार तो चलने-फिरने में लाचार नेताओं की ताजपोशी कर दी जाती है.
मजे की बात यह की उनके लिए प्रदेशों में दो राजभवन होते हैं. एक राजधानी में तो दूसरा पचमढ़ी और नैनीताल जैसे हिल स्टेशन पर.
कोश्यारीजी के आचरण पर अख़बारों की चिता जायज है. अब समय आ गया है जब देश को शाही राजभवनों और राज्यपालों से मुक्ति दिलाई जाए. राज्यपाल का प्रेस अधिकारी रहते मैंने इस संस्था को नजदीक से देखा है.
महामहिमों के पास शपथ दिलाने और विश्वविद्यालयों के कुलपति चयन के अलावा धेले भर काम नहीं होता है. अलबत्ता केंद्र और राज्य में अलग अलग पार्टी की सरकार हो तो व्यस्तता बढ़ जाती है और तमाशा होता है. वैसे राज्यपाल ना हो तो भी फर्क नहीं पड़ता.
मध्यप्रदेश में दो ढाई साल से अक्सर दीगर राज्य के राज्यपाल के पास प्रभार रहता है. पहले गुजरात के कोहली तो अब यूपी की आनंदी बेन कार्यवाहक राज्यपाल हैं. कार्यवाहक के बिना भी काम चल सकता है क्योंकि शपथ तो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी दिलाते रहे हैं!