Abhishek Satya Vratam : प्रधानमंत्री जी, आपने 500, 1000 के नोट बंद करने के अपने फ़ैसले पर तालियाँ तो बजवा लीं लेकिन कुछ सवाल तो अब भी अनुत्तरित हैं ! जिनके घर में शादी है वे क्या करें? पैसे का इंतज़ाम कैसे होगा? इस सवाल पर आपके इकोनॉमिक अफ़ेयर्स सेक्रेटरी साहब बार-बार कन्नी काट जा रहे हैं। प्लीज़, थोड़ा उनसे मामले को समझिए और उन्हें कोई सॉलिड समाधान देकर ही प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने भेजिए।
मोदी जी, महँगाई बहुत ज्यादा है। जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई! सिर्फ ढाई लाख रुपए में बेटी की शादी नहीं हो पाती आजकल। सामान्य से सामान्य शादी में इससे दोगुने, तिगुने पैसे ख़र्च होते हैं और ख़ासकर सामान्य परिवारों में ये पैसे सालों में जुटाए गए होते हैं! जनता क्या अब इन पैसों का भी हिसाब दे? क्यों दे? यही नहीं ढाई लाख रुपए अगर कोई ग़रीब इंसान बदलवाने जाए तो क्या आपने इसके इंतज़ाम सुनिश्चित किए हैं कि वो बदल जाएँगे? नहीं ना? रोज़-रोज़ कोई लाइन में लगकर साढे चार हज़ार रुपए एक्सचेंज कराए या शादी का इंतज़ाम करे?
फ़ैसला अच्छा है इसमें कोई शक नहीं है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी की तकलीफों को इंसान सह सकता है और सह रहा है लेकिन शादी? क्या साल-छे महीने से तय एक जलसे और इज़्ज़त के मौक़े को एक आनन फ़ानन वाले फ़ैसले की बलि चढ़ा दे? आप जिन ग़रीबों की बात कर रहे हैं ना सबसे ज्यादा वही परेशान हैं! अमीर तो कुछ ना कुछ कर ही लेगा। थोड़ा सोचिए? ग़रीब पैसे का इंतज़ाम करे भी तो कैसे? भारी-भरकम शब्दों के जाल में मत उलझाएँ। तालियों के बीच गालियों को सुनने की कोशिश करेंगे तो तकलीफ़ समझ जाएँगे।
यही नहीं सिर्फ काग़ज़ी फ़ैसले मत करिए, उन पर कड़ाई से अमल भी कराएँ। आप मॉनिटर करें कि जो क़दम उठाए गए उसके हिसाब से काम हो रहा है या नहीं ! बुज़ुर्गों, मरीज़ों, महिलाओं को हो रही तकलीफ़ों को प्राथमिकता से सुनें और पैसों के लिए कड़ी धूप में ना खड़ा होना पड़े इसका बंदोबस्त करें। सिर्फ पुराने नोट चलने की समयसीमा बढ़ाने से कुछ नहीं होगा। सबके पास पुराने नोट नहीं हैं। कुछ ऐसा मेकैनिज्म बनाएँ कि नक़दी के हालात सामान्य होने तक अस्पताल और डॉक्टर मरीज़ों को बिल भरने के लिए मोहलत दें और जो अस्पताल ऐसा न करे उसके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए। लोगों और सिस्टम को सशक्त कीजिए ताकि वो इसकी शिकायत बेझिझक दर्ज करा सकें।
अगर फ़ैसला बड़ा लिया है तो उसके व्यापक असर को भी समझिए और उसके हिसाब से क़दम उठाने का मुकम्मल इंतज़ाम कीजिए। छुट्टे पैसों से सब जूझ रहे हैं। हो सके तो बुज़ुर्गों और महिलाओं के लिए शहरों में सरकारी बसों में मुफ़्त यात्रा का इंतज़ाम कीजिए। ढाई हज़ार रुपए की लिमिट से ट्रांसपोर्टर परेशान है, स्कूल बसें बंद हो रही हैं और बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, इनको किसी भी तरह राहत दीजिए।
छोटे-मोटे काम करके दूसरों के भरोसे गुज़ारा करने वाले परेशान हैं। उनकी रोटी की फ़िक्र कीजिए। मैंने ख़ुद अपनी मेड को उसकी पगार के चार हज़ार रुपए नहीं दिए हैं ! दें भी तो कैसे? सोचिए, ऐसे लोग कहाँ से कैश निकालें और बदलें? समस्या सिर्फ कैश निकालने और एक्सचेंज की नहीं है। पूरा मनी फ्लो रुक गया है ! और शहरों में हालात सबसे ज्यादा ख़राब हैं जहाँ पैसे के बिना ज़िंदगी ठहर जाती है।
आपके इस फ़ैसले के समर्थन में लोग हैं। सैकड़ों की क़तार में घंटों तक बैंक और ATM के बाहर खड़े रह रहे हैं लेकिन ऐसे लोगों के बारे में सोचिए जो दूसरों पर निर्भर हैं। उन्हें ना बैंक से मतलब है और ना ही ATM से। मैं लाइन में लगकर पैसे निकाल सकता हूँ, मुझे इससे ऐतराज़ नहीं है लेकिन दिहाड़ी कमाने वाले मज़दूरों के पास इतना वक्त नहीं है कि वो रोज़ बैंक और ATM के चक्कर लगाएं।
अपने अफ़सरों से कहिए थोड़ा दिमाग़ पर ज्यादा ज़ोर डालें। हालात अब बेक़ाबू हो रहे हैं। आपका ग़रीब परेशान है। एटीएम की टेक्नोलॉजी के अनुरूप नोट डिज़ाइन नहीं करने वालों की क्लास लीजिए। मामला गंभीर है और हालात बेहद नाज़ुक। जिन अधिकारियों ने उस डिज़ाइन को पास किया उन्हें ज़ोर से डाँटिए-डपटिए। आपके फ़ैसले के बड़े ग़ुब्बारे में पिन चुभोने वाले यही लोग हैं!
युवा पत्रकार अभिषेक सत्य व्रतम की एफबी वॉल से.