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सुख-दुख

आनंद स्वरूप वर्मा जी अस्सी साल के हो गए!

दयाशंकर राय-

पिछले चार दशक से कारपोरेट मीडिया के बरक्स वैकल्पिक पत्रकारिता के लिए गंभीरता से प्रयासरत प्रतिरोध की धारा के ख्यातिलब्ध पत्रकार और लेखक-अनुवादक भाई Anand Swaroop Verma जी कल अस्सी साल के हो गए।

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हम जैसे बहुतों को पत्रकारिता में रास्ता दिखाने वाले दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, भूटान सहित दक्षिण एशियाई देशों की राजनीति, साहित्य और संस्कृति के विशेषज्ञ लेखक आनंद स्वरूप वर्मा जी 80 साल के भले ही हो गए हों पर आज भी उनसे बातचीत में कहीं से नहीं लगता कि उम्र का उनके ऊपर कोई असर है।

फोन पर जब भी बात होती है मुझे उनकी आवाज़ में वही 30-35 साल पहले वाली खनक आज भी सुनाई पड़ती है। समकालीन तीसरी दुनिया के प्रकाशन के स्थगन को लेकर वे भी चिंतित लगते हैं और हम सब भी। पर उसके विधिवत शुरू होने का कोई मुकम्मल रास्ता अब भी नहीं निकल पा रहा।

दो साल पहले कोरोना की चपेट में आने के बाद वे सेहत की कुछ समस्याओं से जूझ रहे थे पर उनकी सृजनात्मक सक्रियता इस बीच भी जारी है। कुछ समय पहले बातचीत में उन्होंने कहा भी कि दया शंकर जी अगर कोई गंभीर स्वास्थ्य गत मामला नहीं होता तो मैं अभी बड़े आराम से 20 साल सक्रिय रह सकता हूँ।

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दिल से हम सब भी यही चाहते हैं आनंद भाई कि आप एक सृजनशील जीवन का शतक लगाएं और आज की दमनकारी और फ़ासीवादी सत्ता से लड़ाई में हम सबको आपका मार्गदर्शक साथ मिले। बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं हमारी।


नंदलाल सिंह-

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Anand Swaroop Verma जी मतलब एक युग! कल उनका हैप्पी बर्थडे था! आज हमने उनके साथ 1984 गोरखपुर समकालीन तीसरी दुनिया को याद करते मनाया!

आनंद भैया ने उसी समय अख़बारों के स्थानीय संस्करण के दूरगामी परिणाम से आगाह किया था!कि कैसे हम एक दूसरे से अलग -थलग पड़ जायेंगे!

और आज तो अख़बार, इलेक्ट्रोनिक मिडिया सत्ता के जूते चमका रहे हैँ!

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बातें हुई असगर जी से Vishnu Nagar जी तक!कल ही उन्होंने अख़बारों के चीड़फाड़ से संबंधित लेख लिखा था!हमने गलती से उनसे मैसेंजर पर फोन नंबर और घर का पता माँग लिया था!अन्नुतरित रहा संदेश!मुझे खुद पर गुस्सा आया!प्रकाशक को वह लेख उनके नाम के साथ भेजा हूँ कि पुस्तक के अन्त में वह लगा दें!

पत्रकारिता पर आनंद भइया की एक बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक आयी है!कह रहे थे हम भेज देंगे!हमें कहना चाहिए था अमेजॉन लिंक दे दीजिये पर हम मौन रहे… क्यों…?

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बातें हुईं फ़िल्म, लेखन व जिंदगी की!बातें हुईं अध्यात्म की कि मूल है डिसिप्लिन.. पूजा पाठ का अध्यात्म से कोइ संबंध नहीं!जो जितना अधिक होश में है, संवेदनशील है वह उतना अधिक आध्यात्मिक है!

आनंद भैया की रचनात्मक ऊर्जा से उम्र भी पनाह मांगती है!शरीर की घट -बढ़ चन्द्रमा की तरह है!
कि भैया प्रणाम, फिर मिलते हैँ!

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मुंबई 12.55, दिन, गोरेगाँव (पश्चिम )


आनंद स्वरूप वर्मा-

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आज मैं 80 का हो गया। मैं इस समय मुंबई में अपने बेटे के पास आया हूं । मलाड में । कल जन्मदिन की पूर्व संध्या पर बहुत पुराने दोस्त असगर (वजाहत) से मुलाकात हुई। वह इन दिनों अस्थाई तौर पर मुंबई में ही रह रहे हैं। मिलने आए।

कुछ घंटे साथ रहे और हम लोग ढेर सारी पुरानी यादों में खो गए। हमने उस एडवेंचर को भी याद किया जब 1969 के आखिरी दिनों में असगर की रहनुमाई में हम (मैं, मंगलेश डबराल और त्रिनेत्र जोशी) महरौली के जंगलनुमा इलाके में किसी आदिम ठीये की तलाश में भटकते रहे।

उन दिनों दिल्ली की आबादी तकरीबन 30 लाख थी और एम्स के आगे सन्नाटा हुआ करता था। एम्स से महरौली तक हम तांगे से गए थे। अब सब कुछ बदल गया है। पुराने दोस्तों में से भी ज्यादातर चले गए…असगर से कई मुद्दों पर बात हुई…गांधी और गोडसे फ़िल्म पर भी।

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