सौमित्र रॉय-
ये जो 550 करोड़ की काली कमाई से भरी अलमारी आप देख रहे हैं, इसके पीछे का पूरा सच सामने नहीं आ रहा है।
ये नरेंद्र मोदी के कैशलेस इकॉनमी के जुमले का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
ये कोविड काल में रेमडेसीवीर, फ़ेवीपीरवीर जैसी दवाओं की कालाबाज़ारी और लोगों की ज़िंदगी से खेलने की कहानी है।
इन फालतू की दवाओं को बिकवाने में भारत सरकार के ICMR, स्वास्थ्य मंत्रालय और प्राइवेट अस्पतालों की मिलीभगत की यह एक छोटी सी कहानी है।
यही हेटेरो फार्मा कंपनी रूस के साथ मिलकर स्पुतनिक टीका भी बनाकर 1200 रुपये में प्राइवेट अस्पतालों को बेच रही थी और इसके लिए दरवाज़े भी मोदी ने ही खोले थे।
नोटबन्दी के वक़्त मोदी ने दावा किया था कि इससे देश में काला धन खत्म हो जाएगा। हुआ क्या?
सोचिए, कोविड काल में अगर एक अकेले फार्मा कंपनी ने 550 करोड़ का काला धन बटोरा तो अस्पतालों ने कितना कमाया होगा?