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सियासत

राजनीतिक दलों के खाते में पड़े काले धन का क्या कर रहे हैं प्रधानमंत्री जी!

यह देश का दुर्भाग्य ही है कि काले धन के लिए सड़क से लेकर संसद तक बवाल काटने वाले राजनीतिक दलों के खाते में पड़े काले धन का कुछ बिगड़ता नहीं दिख रहा है। सरकार हर जगह बिना हिसाब-किताब वाले धन पर जुर्माना लगाने की बात कर रही है पर राजनीतिक दलों के खाते में 500 और 1, 000 रुपये के पुराने नोटों में जमा राशि पर आयकर नहीं लगाएगी।  इसका मतलब है कि आप किसी भी नाम से राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेसन करा लीजिये और फिर इसके खाते में चाहे कितना काला धन दाल दीजिए। कोई पूछने वाला नहीं है। देश में हजारों राजनीतिक दल हैं। कितने दल चुनाव लड़ते हैं, बस नाम मात्र के।  अधिकतर दल तो काले धन का सफेद करने तक सीमित हैं। ऐसा नहीं कि चुनाव लड़ने वाले दलों के खाते में काला धन नहीं हैं। आज की तारीख में तो राजनीतिक दलों के खाते में अधिकतर धन तो काला ही है। चाहे किसी कारपोरेट घराने ने दिया हो या फिर किसी प्रॉपर्टी डीलर ने या फिर किसी अधिकारी ने। यही हाल देश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले पड़े एनजीओ का है।

<p>यह देश का दुर्भाग्य ही है कि काले धन के लिए सड़क से लेकर संसद तक बवाल काटने वाले राजनीतिक दलों के खाते में पड़े काले धन का कुछ बिगड़ता नहीं दिख रहा है। सरकार हर जगह बिना हिसाब-किताब वाले धन पर जुर्माना लगाने की बात कर रही है पर राजनीतिक दलों के खाते में 500 और 1, 000 रुपये के पुराने नोटों में जमा राशि पर आयकर नहीं लगाएगी।  इसका मतलब है कि आप किसी भी नाम से राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेसन करा लीजिये और फिर इसके खाते में चाहे कितना काला धन दाल दीजिए। कोई पूछने वाला नहीं है। देश में हजारों राजनीतिक दल हैं। कितने दल चुनाव लड़ते हैं, बस नाम मात्र के।  अधिकतर दल तो काले धन का सफेद करने तक सीमित हैं। ऐसा नहीं कि चुनाव लड़ने वाले दलों के खाते में काला धन नहीं हैं। आज की तारीख में तो राजनीतिक दलों के खाते में अधिकतर धन तो काला ही है। चाहे किसी कारपोरेट घराने ने दिया हो या फिर किसी प्रॉपर्टी डीलर ने या फिर किसी अधिकारी ने। यही हाल देश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले पड़े एनजीओ का है।</p>

यह देश का दुर्भाग्य ही है कि काले धन के लिए सड़क से लेकर संसद तक बवाल काटने वाले राजनीतिक दलों के खाते में पड़े काले धन का कुछ बिगड़ता नहीं दिख रहा है। सरकार हर जगह बिना हिसाब-किताब वाले धन पर जुर्माना लगाने की बात कर रही है पर राजनीतिक दलों के खाते में 500 और 1, 000 रुपये के पुराने नोटों में जमा राशि पर आयकर नहीं लगाएगी।  इसका मतलब है कि आप किसी भी नाम से राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेसन करा लीजिये और फिर इसके खाते में चाहे कितना काला धन दाल दीजिए। कोई पूछने वाला नहीं है। देश में हजारों राजनीतिक दल हैं। कितने दल चुनाव लड़ते हैं, बस नाम मात्र के।  अधिकतर दल तो काले धन का सफेद करने तक सीमित हैं। ऐसा नहीं कि चुनाव लड़ने वाले दलों के खाते में काला धन नहीं हैं। आज की तारीख में तो राजनीतिक दलों के खाते में अधिकतर धन तो काला ही है। चाहे किसी कारपोरेट घराने ने दिया हो या फिर किसी प्रॉपर्टी डीलर ने या फिर किसी अधिकारी ने। यही हाल देश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले पड़े एनजीओ का है।

देश में गजब का खेल चल रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष देश की जनता से तो काले धन का हिसाब मांग रहे हैं पर अपना और अपने दल के काले धन का कोई हिसाब-किताब देने को तैयार नहीं। जनप्रतिनिधियों का भी यही हाल है। ये लोग संसद या विधानसभाओं में अपने क्षेत्र की समस्याएं कम और अपनी पार्टी और अपनी ज्यादा उठाते हैं। इन्हें अपने वेतन की चिंता है। अपनी निधि की चिंता है पर जनता और जनता के काम की कोई चिंता नहीं। किसान-मजदूर की आय इतनी कम क्यों ? यह जानने की कोई कोशिस नहीं करता। बस अपने ऐशोआराम में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। इन्हें देश से बाहर और देश के अंदर जमा काले धन की चिंता है पर खुद पार्टी के खाते से कितने बड़े स्तर पर काले धन से सफेद कर रहे हैं। इस पर इनका कोई ध्यान नहीं। आरोप-प्रत्यारोप में पूरा शीतकालीन सत्र बीत गया पर किसी दल के किसी सांसद ने राजनीतिक दलों के पास होने वाले काले धन का मुद्दा संसद में नहीं उठाया।

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प्रधानमंत्री देश में कैसलेस ट्रांजेक्शन की बात कर रहे हैं पर अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में कैसलेस ट्रांजेक्शन की व्यवस्था करने को तैयार नहीं। सर्वविदित है कि सबसे अधिक काला धन राजनीतिक दलों व एनजीओ में खपाया जाता है। नोटबंदी के नाम पर काला धन खत्म करने की बात की जा रही है पर राजनीतिक दलों के खातों में पड़े बेसुम्मार धन की कोई बात नहीं कर रहा है। केंद्र सरकार एक ओर नोटबंदी योजना से काले धन पर अंकुश लगाने की बात कर रही है तो दूसरी ओर खुद काले धन को सफेद करने में लगी है। गरीब आदमी को लाइन में लगकर भी उसका पैसा नहीं मिल पा रहा है और काला धन रखने वाले लोग बैंकों से नये नोटों की गड्डियां ले जा रहे हैं।

इस योजना के नाम पर केंद्र सरकार गरीब आदमी की भावनाओं से खेल रही है। आठ नवम्बर को नोटबंदी की योजना लागू करते समय प्रधानमंत्री ने 500-1000 के नोटों को रद्दी करार दे दिया तथा कहा था कि 2.5 लाख रुपए से ऊपर खाते में जमा धन का हिसाब न देने पर उस पर 200 फीसद जुर्माना लगेगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने जुर्माना तो नहीं लगाया उल्टे काले धन का 50 फीसद सफेद कर पूंजीपतियों को लौटाने की बात करने लगे। नये नोटों का 70-80 फीसद तो काले का सफेद करने में लग जा रहा है। आम आदमी को लाइन में लगकर भी पैसा नहीं मिल रहा है। देश के अधिकतर एटीएम में पैसा ही नहीं है। इस योजना का सबसे अधिक असर आम आदमी पर पड़ रहा है।

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बैंक बड़े स्तर पर काले का सफेद करने में लगे हैं। आम आदमी के लिए 2000 रुपए का कैस नहीं है पर काला धन रखने वाले के लिए करोड़ों रुपए हैं। यह नोटबंदी कैसी देशहित की योजना है, जिससे बस आम आदमी ही परेशान हो रहा है।  सच्चाई तो यह है कि काला धन रखने वाले जो लोग जेल जाने से डर रहे थे उनको पैसा तो मिल ही गया साथ ही उनका डर भी निकल गया। गरीब आदमी को लाइन में लगकर भी पैसा नहीं मिल रहा है और भाजपा नेताओं के पास लाखों में नये नोट मिल रहे हैं।

यह देश का दुर्भाग्य है कि पैसों से संबंधित जो भी योजना आती है, उसका फायदा या व्यापारी उठाते हैं या फिर बैंक । 2008 में यूपीए सरकार द्वारा लाई गई किसान ऋण माफी योजना में बड़े स्तर पर घोटाला हुआ था। कैग की रिपोर्ट के अनुसार काफी छोटे व्यापारियों ने अपने को किसान की श्रेणी में दिखाकर अपना कर्ज माफ करा लिया था। उस समय ये बातें कही जा रही थी कि गड़बड़ी करने वाले बैंक अधिकारियों व व्यापारियों पर कार्रवाई होगी पर क्या हुआ, ढाक के तीन पात। यूपीए सरकार के बाद अब एनडीए सरकार चल रही है। किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। कृषि ऋण माफी योजना के नाम पर ईमानदार किसान तो बस ठगा ही गया। हां कुछ डिफाल्टर किसानों को इसका फायदा जरूर हुआ था। इस योजना से भी आम आदमी ही ठगा जाएगा, बैंक अधिकारी व काला धन रखने वालों को कुछ बिगड़ने वाला नहीं है।

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चरण सिंह राजपूत
वरिष्ठ पत्रकार
[email protected]

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