Anil Kumar Singh : कँवल भारती की औकात बताने के बाद आज उत्तर प्रदेश सरकार ने हिंदी संस्थान के पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. चूंकि मायावती की सरकार ने इन पुरस्कारों को बंद कर दिया था इसलिए पूरी कोशिश की गई है कि इस लिस्ट से दलितों का पत्ता पूरी तरह साफ रहे. भाजपा के शासन में पंडित दीनदयाल उपाध्ध्याय के नाम पर पुरस्कार शुरू किया गया था, उसे चालू रखा गया है क्योंकि उससे सपा के समाजवाद को मजबूती मिलने की संभावना है २०१४ में. दो-तीन यादव भी हैं क्योंकि इस समय की मान्यता है कि असली समाजवादी वही हो सकते हैं. खोज-खाज कर एक दो मुस्लिम भी लाये गए हैं क्योंकि उनके बिना समाज वाद २०१४ का ख्वाब भी नहीं देख सकता.
दाल में नमक की तरह दो-चार नामों को छोड़ कर सबके सब मीडियाकर और परजीवी चारणों की परंपरा के पोषक. मायावती ने उचित ही जनता की गाढ़ी कमाई ले उड़ने वाले इन गीदड़ों को पुरस्कृत करना बंद कर दिया था. मजे की बात है इस लिस्ट में ८० प्रतिशत से ऊपर पोंगापंथी और सांप्रदायिक मानसिकता के लोग हैं. आदरणीय लक्ष्मी कान्त वर्मा जी को जब मुलायम सिंह यादव ने हिंदी संस्थान का अध्यक्ष बनाया था तो उन्होंने मेरे कविता संग्रह को छपने के लिए हिंदी संस्थान की तरफ से आर्थिक मदद की पेशकश की थी जिसे मैंने विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया था. दादा दुखी जरूर हुए किन्तु मुझे उनका कोपभाजन नहीं बनना पड़ा था. यह इसलिए बता रहा हूँ कि भाई लोग यह आरोप न लगाने लगें कि इन्हें नहीं मिला तो चिल्ला रहे हैं. चिल्ला इसलिए रहा हूँ कि यह उस जनता के पैसे का दुरुपयोग है जिसे दो जून की रोटी के लिए हड्डी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है.
साहित्यकार अनिल कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.
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