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पंजाब

आईटी एक्ट समेत कई धाराओं में फंसाए गए तीन पत्रकारों को कोर्ट ने बाइज्जत बरी किया, पढ़ें आर्डर

अंबाला के सीजेएम अंबरदीप सिंह ने चार्ज स्टेज पर ही केस को किया डिस्चार्ज… अब पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में…

अंबाला : पुलिस वाले अपनी करतूत छिपाने के लिए अक्सर पत्रकारों को बलि का बकरा बना देते हैं. पत्रकारों पर झूठे आरोप में कई धाराएं लगा देते हैं. मीडिया वाले व अन्य लोग पत्रकारों पर आरोपों के बारे में खूब चर्चा करते हैं. देखते ही देखते पत्रकारों की छवि खलनायक सरीखी बना दी जाती है. लेकिन यही पत्रकार जब कोर्ट से बेदाग बरी होते हैं तो इसकी चर्चा कम ही होती है.

अंबाला के तीन पत्रकार 20 माह की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकर बेदाग बरी हो गए. अंबाला छावनी के तीन पत्रकारों के खिलाफ पुलिस ने आईटी एक्ट के तहत झूठे मामले में मुकदमा दर्ज किया था. सीजेएम अंबरदीप सिंह की अदालत ने केस को चार्ज की स्टेज पर ही 27 फरवरी 2020, दिन वीरवार को डिस्चार्ज कर दिया. अदालत के इस फैसले का सोशल मीडिया के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ताओं व राजनीतिक दलों द्वारा स्वागत किया गया.

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उल्लेखनीय है कि अंबाला शहर के रामनगर निवासी कमलप्रीत सिंह सभरवाल ने गिरिधर गुप्ता एवं पत्रकार गौरव गर्ग, नितिन कुमार व आरती दलाल के खिलाफ 18 जून 2018 को अंबाला शहर की पुलिस चौकी नंबर 4 में लिखित शिकायत की थी. इसके बाद पुलिस ने बिना कोई छानबीन किए 19 जून 2018 को उक्त चारों के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 67, आईपीसी की धारा 504 के तहत मुकदमा दर्ज किया था.

इस मामले में खास बात यह है कि पुलिस 19 जून 2018 से लेकर 27 फरवरी 2020 तक मामले में संलिप्त गिरिधर गुप्ता को ढूंढ कर अदालत में पेश नहीं कर पाई. पुलिस ने पत्रकार गौरव गर्ग, नितिन कुमार, आरती दलाल के मोबाइल अपने कब्जे में ले लिए थे. पुलिस की ओर से पेश किए गए चालान में उक्त तीनों के मोबाइल फोन को लेकर कोई रिपोर्ट नहीं लगाई.

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इसके बाद तीनों ने अदालत में सरेंडर किया जहां उन्हें जमानत मिल गई थी. सीजेएम अंबरदीप सिंह की अदालत ने इस सारे मामले की बारीकी से पड़ताल की. अदालत ने पाया कि गौरव गर्ग, नितिन कुमार व आरती दलाल जो कि पेशे से पत्रकार हैं, उन पर ऐसा कोई केस बनता ही नहीं है, इस केस में कुछ भी नहीं है.

इसके बाद अदालत ने केस को चार्ज की स्टेज पर ही डिस्मिस कर दिया. इसके बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है.

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सवाल उठता है कि पुलिस 19 जून 2018 से लेकर 27 फरवरी 2020 तक मामले के मुख्य आरोपी गिरिधर गुप्ता को आखिर क्यों नहीं खोज पाई. आखिर कौन है यह गिरिधर गुप्ता? पुलिस ने गिरिधर गुप्ता के बारे में क्यों नहीं खोजबीन की. गिरिधर गुप्ता कौन है, कहां गायब है. इस घटना पर कई राजनीति दलों ने अपनी प्रतिक्रिया भी दी थी व सीधे सीधे पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए थे.

हालांकि मामले की शुरुआत में ही पुलिस यह बात दबी जुबान में कह रही थी कि राजनीतिक दबाव के चलते उक्त तीनों पत्रकारों पर यह मामला दर्ज किया गया है, असलियत में यह मामला बनता ही नहीं है. पत्रकार का काम समाचार को लिखना होता है. ऐसा ही उक्त तीनों पत्रकारों ने किया. कमलप्रीत सिंह सबरवाल के खिलाफ उनके एक मजूदर ने सीएम विंडो पर शिकायत दर्ज कराई थी. इस खबर को पत्रकारों ने ह्वाट्सअप के माध्यम से चलाया था. बाद में कमलप्रीत सिंह सबरवाल व उस मजूदर का समझौता हो जाता है. उसके बाद कमलप्रीतसिंह सबरवाल ने तीनों पत्रकारों के खिलाफ पुलिस में फर्जी शिकायत दी थी.

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