दिलीप मंडल-
हिंदूवादी लिंचिंग मॉब के सामने National Dastak के पत्रकार अनमोल का शौर्य। जबरन जय श्रीराम कहलवाने की ज़िद, हिंसक भीड़ और अदम्य मानवीय साहस की मिसाल। जय भीम अनमोल।
स्थान – दिल्ली, संसद भवन के पास, जंतर मंतर!
वीडियो लिंक एक- https://twitter.com/anmolpritamnd/status/1424446578899623938?s=21
वीडियो लिंक 2 – https://www.facebook.com/100002520002974/posts/4260176454076313/?d=n
मीनू जैन-
तालिबान सिर्फ अफगानिस्तान में नहीं रहते . . . .
कल जंतर – मंतर पर घोर आपत्तिजनक साम्प्रदायिक नारे लगाए गए.
‘ नेशनल दस्तक ‘ के पत्रकार अनमोल प्रीतम को उन्मादी भीड़ ने घेर लिया और जय – श्रीराम का नारा लगाने के लिए मज़बूर करने की कोशिश की गई.
मगर वह युवा पत्रकार अपने स्टैंड से नहीं डिगा .
उन्मादी भीड़ से घिरे होने के बावजूद पत्रकारिता के उच्चतम मानदण्ड स्थापित करने वाले उस युवा पत्रकार के हौंसले को लाखों सलाम !
दिल्ली के मुख्यमंत्री ख़ामोश हैं .
देश के गृहमंत्री खामोश हैं .
वीडियो लिंक- https://www.facebook.com/100010900598342/posts/1486357338404272/?d=n
यूसुफ़ किरमानी-
दिल्ली में कुछ अराजक तत्वों ने नारे लगाए – जब मुल्ले काटे जाएँगे, राम-राम चिल्लाएँगे…
इसके बाद तो ग़ैर मुस्लिम लोग इस पर इतना कहसुन रहे हैं कि उफ़्फ़ मत पूछिए…नया नारा नहीं है। मामला गंभीर इसलिए है कि संसद और पुलिस थाने के पास ऐसा तालिबानी नारा गूंजा।
मैं हैरान हूँ कि इसका सबसे ज़्यादा विरोध हिन्दुओं की तरफ़ से हो रहा है। सेकुलर लोग भी सक्रिय हैं।
…और मुसलमान चुप है। उसे घंटा इन नारों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। आपने किसी मौलवी का बयान इस मुद्दे पर नहीं देखा होगा।
अगर सत्ता पक्ष यही चाहता है कि मुसलमान को काट डालने से यूपी चुनाव जीता जा सकता है तो बुरा क्या है? दंगों के आदी हो चुके मुसलमान एक दंगा और झेल लेंगे। कम से कम नालायक विपक्ष और कुछ मूर्ख जनता की जनता की वजह से किसी का फ़ायदा हो तो होने दीजिए।
इस मौक़े पर मुहर्रम का विशेष उल्लेख ज़रूरी है।
आपने देखा होगा कि मुहर्रम में तमाम मुस्लिम युवक छुरियों यानी ज़ंजीरों का मातम करते हैं। एक तरह से ये अपने शरीर को काटना ही हुआ।
छुरियों का मातम करने वालों के शरीर से खून बहकर सड़कों पर जाता है। मैं इसके सख़्त ख़िलाफ़ हूँ। यह खून अगर किसी बीमार को मिल जाए तो इमाम हुसैन का मातम ज़्यादा सार्थक हो जाएगा। ख़ैर ये मुद्दा अलग है।
यहाँ इसे बताने का आशय यह है कि जो कौम और उसके जवान खुद को ही काट डालने पर आमादा हों तो वो भला गोडसेवंशियों की ऐसी गीदड़भभकियों से कहाँ डरने वाले। वे छुरियों का मातम करते हुए सिर्फ़ या हुसैन या अली मदद नहीं कहते, बल्कि आग के अंगारों पर भी मातम करते हैं।
इसीलिए दिल्ली का वीडियो वायरल होने के बावजूद मुसलमान कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। हिन्दू मित्र इसलिए चिंतित हैं कि कोरोना, आक्सीजन की कमी, गंगा में बहती लाशों से वे अभी कहाँ उबर पाये हैं। इतनी मरियल हालत में वे कहाँ कहाँ चाकू लेकर मुसलमानों को काटने निकलेंगे?
मुसलमानों की आबादी वैसे भी 18 करोड़ है। लेकिन 80 फ़ीसदी जो लोग डूबती अर्थव्यवस्था से कोमा में हैं वे अगर चाकू लेकर मुसलमानों को काटने निकले तो खुद अपना गला काट डालेंगे।
इसीलिए मुसलमान इस शानदार मॉनसून में मस्त है। मौसम का मज़ा ले रहा है। अगर आप मेरे दोस्त या प्रेमी/प्रेमिका हैं तो आप भी टेंशन फ़्री रहें। गोडसे वंशी कुछ न बिगाड़ पाएंगे।
नीरो बन जाइए, बंसी बजाइए…
सरफ़राज़ नज़ीर-
दिल्ली जंतर मंतर पर हुई घटना कोई नई बात नहीं है, 1947 के बाद से ही ये नारे देश के तकरीबन हर हिस्से में अमूमन लगते रहते हैं। ये नारे लगते इसलिए हैं कि सड़ा हुआ समाज जानता है कि सड़ा हुआ सिस्टम इस पर मौन रहेगा बल्कि उसे मजबूरी में कोई कार्रवाई करनी भी पड़ी तो मामला ठंडा होने पर उस मुकदमें को ठिकाने लगाने का तोड़ भी यही सिस्टम उपलब्ध कराएगा।
इस बार का मामला इसलिए थोड़ा अलग है कि ये नारे देश की राजधानी दिल्ली में लोकतंत्र और अदलिया की दो टांगो के बीच लगाए गए, सबका साथ सबका विकास वाला लोकतंत्र जहाँ बेनकाब हुआ वहीं केरल में बकरीद पर छूट देने पर सो मोटो वाला सुप्रीम कोर्ट सरेंडर कर गया।
अच्छा। बाकी मुसलमानों के हितैषी बने तमाम दलों के आफिस सुना है दिल्ली में भी हैं? ज़रा पता करो तो इन दफ्तरों में ताला तो नहीं लगा है?
श्याम मीरा सिंह-
इस दंगाई भीड़ द्वारा लगाए गए नारों के मामले में दिल्ली पुलिस ने “Unknown” के विरुद्ध FIR दर्ज कर ली है. दिल्ली पुलिस को नहीं पता कि ये लोग RSS-भाजपा से जुड़े हुए हैं. दिल्ली पुलिस को नहीं पता कि ये भीड़ BJP के पूर्व प्रवक्ता अश्वनी उपाध्याय के आह्वान पर वहाँ इकट्ठा हुई है.
अचानक से दिल्ली पुलिस को रतौंधी रोग हो गया है. उसे इनके चेहरे ब्लर दिखाई दे रहे होंगे. लेकिन चूँकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. न्याय तो होना चाहिए. न्याय के ढोंग को बनाये रखने के लिए कुछ कुरबानियाँ तो देनी ही पड़ती हैं.
इसलिए दिल्ली पुलिस को मेरा सुझाव है कि पुलिस चाहे तो इस मामले में किसी अब्दुल को UAPA की धाराओं में लपेट सकती है. नहीं तो नक्सली कनेक्शन जोड़ते हुए मेरा ही नाम FIR में दर्ज कर ले. न्याय होना चाहिए. ऐसे ही तो न्याय मिलने का इतिहास रहा है हमारे यहाँ. न्याय होने का ढोंग जब तक बना रहेगा, तब तक हम ये तो कह तो सकेंगे कि हम एक लोकतांत्रिक देश हैं.