पिछले पंद्रह-सोलह साल से हिंदी दैनिक जनमोर्चा की रीढ़ कहे जाते रहे समाचार संपादक सुनील संवेदी ने वरिष्ठों और समर्पित कर्मचारियों को दरकिनार किए जाने के मैनेजमेंट की प्रवृत्ति से आहत होकर आखिरकार जनमोर्चा बरेली को अलविदा कह दिया। वह प्रबुद्ध संपादक कमलजीत सिंह की कुछ माह पहले मृत्यु के बाद प्रबंध संपादक से संपादक बने कमलजीत सिंह के गैर पत्रकार भाई गुरविंदर सिंह की अखबार को किराने की दुकान बना देने वाली नीति में खुद को मिसफिट महसूस कर रहे थे।
सुनील संवेदी के चले जाने से जनमोर्चा देश में अकेला ‘डेस्क विहीन’ अखबार हो गया है। अब जनमोर्चा बरेली के पास न सिटी प्रभारी है, न डाक प्रमुख और न ही जनरल डेस्क का प्रभारी। अखबार में अब सिर्फ कुछ पेजीनेटर, कंपोजीटर और दो-तीन आधे-अधूरे पत्रकार बचे हैं।
संपादक कमलजीत की मृत्यु के बाद गुरविंदर सिंह की प्रवीण शंखधार मार्का साजिश से आहत होकर सिटी प्रभारी विकास सक्सेना जनमोर्चा को बाय-बाय कर गए थे। इसी प्रवीण शंखधार को कमलजीत सिंह ने निकाल दिया था, लेकिन गुरविंदर सिंह ने शंखधार को विकास सक्सेना के मुकाबले खड़ा कर दिया। विकास सक्सेना को भी कमलजीत सिंह ने अखबार ज्वाइन कराया था।
इससे पहले डाक प्रभारी फहीम करार को जनमोर्चा से रुखसत कर दिया गया था। उससे भी पहले वयोवृद्ध पत्रकार दिनेश पवन भी मैनेजमेंट की दुकानदारी से खिसियाकर जनमोर्चा छोड़ गए थे। बेहद समर्पित लेआउट डिजाइनर पुनीत कुमार भी गुरविदंर सिंह की गैर पत्रकारीय बुद्धि की भेंट चढ़ा था। आईटी नीरज गुप्ता का वेतन आधा करके नौकरी छोड़ने को मजबूर कर दिया गया था। ये सभी प्रभार अंततः सुनील संवेदी के कंधों पर आते रहे। इस समय भी सुनील सिटी, डाक और जनरल डेस्क के साथ-साथ पेजीनेशन का भी प्रभार संभाले थे।
मुख्य संपादक देश के वयोवृद्ध प्रसिद्ध पत्रकार शीतला सिंह जी के मिशनरी अखबार जनमोर्चा का बरेली एडीशन एक समय छह पेज से होकर चार पृष्ठ का रह गया था, सभी साथी जनमोर्चा छोड़ रहे थे। उस बुरे वक्त में भी सुनील जनमोर्चा के साथ जुड़े रहे और एक साथ कई जिम्मेदारियां निभाकर उसे दोबारा खड़ा करने की कोशिशों में जुटे रहे, लेकिन कमलजीत सिंह की मृत्यु के बाद अ-संपादक व मालिक गुरविंदर सिंह से उचित प्रतिसाद न मिलता देख जनमोर्चा को नमस्ते कहने में ही भलाई समझी।
neeraj gupta
February 17, 2015 at 7:29 am
हे भगवान गुरुबिन्दर सिंह को अच्छा दिमाग दो kee………………………….
puneet
February 18, 2015 at 9:27 am
जो होता है वो भाग्य में लिखा होता हैं।
सुनील संवेदी
February 18, 2015 at 9:32 am
अगर जनेमोर्चा में सब कुछ बुरा होता तो मै 16 साल कैसे काट पाता इसलिए मेरे कंधो का इस्तेमाल मत करो सुनील संवेदी।