कहते हैं कि मीडिया देश का चौथा स्तंभ है लेकिन आज जो स्थिति मीडिया को लेकर देखी जा रही है, उसमें कहा जा सकता है कि देश के जनाजे का चौथा कंधा मीडिया बन गया है। मीडिया में आम लोगों की खबरें कम और खास लोगों की खबरें ज्यादा छपने लगी हैं। नये-नये अखबार निकल रहे हैं मगर बाजार में नहीं आ रहे हैं। कुछ अखबार तो सिर्फ प्रचार को छापकर करोड़ों कमा रहे हैं और अपने कर्मचारियों का शोषण कर रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले बंगाल में सारदा घोटाले ने भी मीडिया की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे में भी आज बहुत से अखबारों के प्रकाशन के बारे में सुनने को मिल रहा है लेकिन लोगों तक वे नहीं पहुंचते हैं। क्यों?
मीडिया के नाम पर समाचार पत्र का प्रकाशन या न्यूज चैनल बेहिसाब काई का एक जरिया बन गया है। आज कुछ समाचार पत्र यही कर रहे हैं। मैं भड़ास को धन्यवाद दूंगा कि उसने मीडिया का चेहरा बेनकाब किया है। अब बात प्रिंट की करें या टीवी चैनलों की, हर जगह एक ही बात देखने को मिल रही है। टीवी चैनल जवानी की ताकत बढ़ने की दवा ज्यादा बेच रहे हैं। हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट का प्रचार कर रहे हैं। अखबारों में तो ज्यादातर अखबार सेक्स रैकेट के खिलाफ खबरें छापते हैं और दूसरी ओर उसी का प्रचार कर रहे हैं। दोस्ती करो या महिलाओं को संतुष्ट करके रुपये कमाओ का प्रचार करके इस तरह का धंधा चलाया जा रहा है। नशीली चीजों का प्रचार किया जा रहा है।
हालांकि अखबार और विज्ञापन के आपसी संपर्क के बारे में यही कहा जाता रहा है कि अखबार चलाने के लिए विज्ञापन प्रकाशन जरूरी है लेकिन विज्ञापन प्रकाशन के लिए अखबार निकालना पत्रकारिता पर कलंक है। आज यही हो रहा है। कुछ पत्रकार तो आज अमीरों या ऐसे ही कुछ लोगों की बड़ाई छापकर कमाई कर रहे हैं तो इस आज के जमाने में कुछ रियायत दिया जा सकता है लेकिन जो बातें समाज को गंभीरता से प्रभावित उसे गलत रास्ते पर ले जाये वह तो गलत ही होगा। हालांकि इस क्षेत्र में कुछ दोष पत्रकारों का भी है मगर यहां उनकी कुछ मजबूरियां भी हैं। ये सारी बातें किस पत्रकारिता ही मिसाल हैं?
इस क्षेत्र में समस्या यह देखी जा रही है कि अगर कोई इन बातों का विरोध करता है तो समाचार पत्र के मालिक उनका शत्रु हो जाते हैं और उन्हें नौकरी से हटा देते हैं, तनख्वाह तक हड़प लेते हैं। आज कोलकाता में ऐसे ही कुछ अखबारों का उदय हुआ है तो कुछ अखबार पहले से इस धंधे में रमे हुए हैं। यह पत्रकारिता और हमारे देश के कर्णधारों का दुर्भाग्य है कि ऐसे अखबारों का सरकार इनका बाल भी बांका नहीं कर पाती है। कोलकाता में ऐसे कुछ ऐसे हिन्दी अखबार पहले से प्रकाशित हो रहे हैं तो कइयों का जन्म अभी एक-दो सालों के भीतर हुआ है। यहां काम करने वालों का शोषण हो रहा है। कई अखबारों में तो तीन-चार महीने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं मिली है और अखबार के मालिक मलाई चाट रहे हैं। दरअसल आज कुछ लोग अपने काले धन को सफेद करने के लिए समाचार पत्रों के प्रकाशन पर उतर आये हैं और समाज, सरकार और देश को बेवकूफ बना रहे हैं।
आज देश के ऐसे हालात हैं कि देश के इस चौथे स्तंभ पर सरकार ध्यान दे और ऐसे अखबारों का लाइसेंस जब्त कर इनके खिलाफ कार्रवाई करे। यहां के कर्मचारियों की भलाई पर ध्यान दे। अगर ऐसा नहीं किया जाता है कि कल ये अखबार देश को कोढ़ बनकर सड़ा देगा, समाज को सड़ा देगा और देश रसातल में चला जायेगा।
राजा चौधरी का विश्लेषण.
LOON KARAN CHHAJER
December 2, 2014 at 12:09 pm
REALLY YOUR NEWS STORY IS GIVING RITE MASSAGE BUT THERE ARE SO MANY NEWS PAPERS RUNNING ON ETHICS.
REGARDS
L.K.CHHAJER
EDITORE
THAR EXPRESS, BIKANER