अमिताभ ठाकुर-
कलराज जी की जय हो… इस न्यूज़ आर्टिकल के अनुसार महामहिम मा० कलराज मिश्र जी ने अपनी जीवनी “निमित्त मात्र हूँ मैं” को बेचने का एक नायाब तरीका खोजा.
उन्होंने राजस्थान के सारे कुलपति को मीटिंग में बुलाया जिन्हें जाते समय जीवनी की 19 कॉपी व रुपए 68383 का बिल थमा दिया गया.
क्या अंदाज़ है!
देखें न्यूज़-
प्रियदर्शन-
किताब ऐसे भी बेची जाती है! इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर है। राजस्थान के राज्यपाल और बीजेपी के वयोवृद्ध नेता कलराज मिश्र की किताब ‘निमित्त मात्र हूं मैं’ का लोकार्पण हुआ। लोकार्पण में राजनीति के तथाकथित बाक़ी गणमान्य लोगों के अलावा राज्य के सत्ताईस विश्वविद्यालयों के कुलपति भी थे। अख़बार के मुताबिक़ कार्यक्रम समाप्ति के बाद जब वे लौट रहे थे तो उन्होंने पाया कि उनकी गाड़ियों में किताब की बीस-बीस प्रतियों का पैकेट रखा हुआ है। उनके ड्राइवरों ने उन्हें ६७,००० रुपए से कुछ ऊपर का बिल थमाया जो पैकेट के साथ आया था।
यह ‘नए भारत के निर्माण’ की संघी परियोजना से जुड़ा आयोजन था। निमित्त मात्र की यह जीवनी ‘कॉफ़ी टेबल बुक’ है जिसकी क़ीमत चार हज़ार रुपए है। यानी ख़ुद को संघ का कार्यकर्ता बताने वाला यह ‘निमित्त मात्र’ आम जनों से दूर अपनी जीवनी को भी भव्य ड्राइंग रूम्स में फ़ुरसत में बैठे लोगों के लिए उलटने-पुलटने की चीज़ भर बनाना चाहता है। या उसकी दिलचस्पी अपने नाम एक चमकती-दमकती किताब में और इससे होने वाले आर्थिक लाभ में होगी।
बिना पढ़े किताबों की समीक्षा नहीं करनी चाहिए इसलिए नहीं कर रहा। लेकिन बिना पढ़े यह बता सकता हूं कि इस किताब में क्या होगा- या ऐसी किताबों में क्या हो सकता है।
यह नया भारत है जो यह तथाकथित विचारधारा बना रही है। यह हंसी की नहीं, चिंता की बात है- इसलिए और ज़्यादा कि अपने आसपास के कई लेखक मित्र भी ऐसी नुमाइशी अपसंस्कृति में भरोसा रखते पाए जाते हैं।