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हिंदी कविता में पश्चिम का आतंक कम हुआ है : प्रो. केदारनाथ सिंह

कविता आम लोगों के होठों पर नहीं आ पा रही है, यह चिंता का विषय है : डॉ. जितेन्द्र श्रीवास्तव

बारासात : हिंदी कविता में पश्चिम का आतंक कम हो रहा है। ग्लोबल के विरुद्ध लोकल की आवाज तेज हुई है। वंचित, पीड़ित और हाशिए पर पड़े लोग प्रतिवाद कर रहे है। हिंदी पट्टी से ही नहीं, हिंदीतर प्रदेश के सुदूर गाँव से भी हिंदी कविता आ रही है और धूम मचा रही है। मुझे हैराबाद विश्वविधालय का दलित छात्र रोहित वेमुला के पत्र की वह पंक्ति ‘आई एम् वेकेंट…’ भी झंकृत करती है। इससे बड़ी कविता और क्या हो सकती है।

<p><span style="font-size: 18pt;">कविता आम लोगों के होठों पर नहीं आ पा रही है, यह चिंता का विषय है : डॉ. जितेन्द्र श्रीवास्तव</span></p> <p>बारासात : हिंदी कविता में पश्चिम का आतंक कम हो रहा है। ग्लोबल के विरुद्ध लोकल की आवाज तेज हुई है। वंचित, पीड़ित और हाशिए पर पड़े लोग प्रतिवाद कर रहे है। हिंदी पट्टी से ही नहीं, हिंदीतर प्रदेश के सुदूर गाँव से भी हिंदी कविता आ रही है और धूम मचा रही है। मुझे हैराबाद विश्वविधालय का दलित छात्र रोहित वेमुला के पत्र की वह पंक्ति 'आई एम् वेकेंट...' भी झंकृत करती है। इससे बड़ी कविता और क्या हो सकती है।</p>

कविता आम लोगों के होठों पर नहीं आ पा रही है, यह चिंता का विषय है : डॉ. जितेन्द्र श्रीवास्तव

बारासात : हिंदी कविता में पश्चिम का आतंक कम हो रहा है। ग्लोबल के विरुद्ध लोकल की आवाज तेज हुई है। वंचित, पीड़ित और हाशिए पर पड़े लोग प्रतिवाद कर रहे है। हिंदी पट्टी से ही नहीं, हिंदीतर प्रदेश के सुदूर गाँव से भी हिंदी कविता आ रही है और धूम मचा रही है। मुझे हैराबाद विश्वविधालय का दलित छात्र रोहित वेमुला के पत्र की वह पंक्ति ‘आई एम् वेकेंट…’ भी झंकृत करती है। इससे बड़ी कविता और क्या हो सकती है।

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यह कहना है ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत और हिंदी के शिखर कवि प्रो. केदारनाथ सिंह का।

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग की ओर से दो दिवसीय राष्ट्रीय – संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। संगोष्ठी का विषय था-‘ समकालीन कविता:चनौती और संभावनाएँ।  गौरतलब है कि यह सेमिनार विश्वविधालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित थी। बता दें कि प्रो. केदारनाथ सिंह इस संगोष्ठी में बतोर उद्घाटनकर्ता के रूप में उपस्थित थें। कार्यक्रम का उद्घाटन बारासात विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वासव चोधरी ने किया। दो दिवसीय संगोष्ठी में देश के विभिन्न कोनों से साहित्यकार आयें थे।

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संगोष्ठी में बीज-वक्तव्य देते हुए युवा कवि व आलोचक डॉ. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा की नब्बे के दसक में राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अनेक उतार- चढ़ाव देखने को मिलें। वर्तमान में कवियों की संख्या में ६० हजार से ऊपर है। सोशल मीडिया को जोड़ें तो और भी बढ़ जायेंगे लेकिन अनुभव की प्रमाणिकता ८-१० कवियों में है। कविता आम लोगों के होठों पर नहीं आ पा रही है, यह चिंता का विषय है।

चर्चित कवि अनिल कुमार मिश्रा ने कहा की औधोगिक उत्पाद कविता की जगह कभी नहीं ले सकती। सेमिनार में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रो. चन्द्रकला पाण्डेय, काजी नजरुल विश्वविद्यालय, आसनसोल के प्रो. विजय भारती, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग की डॉ. मेरी हांसदा, कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रो. अमरनाथ शर्मा, उत्तर बंग विश्वविद्यालय की डॉ. मनीषा झा, कॉटन यूनिवर्सिटी गोवाहाटी के डॉ. जीतेन्द्र गुप्ता, निर्मला तोडी आदि देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों व कॉलेज के प्राध्यापक, साहित्यकार आदि ने विषय पर अपनी बात रखीं। काव्य–संध्या का भी आयोजन किया गया था। बारासात विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण होता ने बताया कि प्रो . केदारनाथ सिंह का आगमन इस विस विश्वविद्यालय की बड़ी उपलब्धि है। सेमिनार में डॉ. सुलोचना दास, डॉ. अल्पना नायक, रीतादास आदि ने शोध –पत्र पढ़ा। कार्यक्रम को सफल बनाने में छात्र –छात्राओं ने अपना पूरा सहयोग दिया। धन्यवाद ज्ञापन विभाग के डॉ. विनोद गुप्ता ने दिया.

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इस आयोजन की तस्वीरें देखने के लिए नीचे क्लिक करें…

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