बंद कीजिये “खबर-रोपण” का ये खतरनाक खेल

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खबरनवीसी की दुनिया अब एक ऐसे दौर में दाखिल हो गयी है जो चिंता में डाल रही है। आधी अधूरी, अधकचरी , अर्ध सत्य और अराजक सूचनाओं को बेशर्मी से पाठक और दर्शक संसार के सामने परोस कर भी किसी को शर्म नहीं आ रही।सामान्य और निष्पक्ष पाठक के लिए समाचार में से झूठ और सच को समझ पाना कठिन हो गया है। जब झूठ पकड़ में आता है तब पाठक ठगा हुआ महसूस करता है। समाचार माध्यमों से उसका भरोसा भी उठता ही है।

आइये समझते हैं अपने हित की सूचनाओं को प्लांट करने या खबर-रोपण का खतरनाक खेल।इसके लिए हालिया दौर की तीन बड़ी सूचनाओं या खबरों को बतौर नज़ीर ले लेते हैं।

एक- पठानकोट हमले के बाद एक दिन खूब बड़ी खबर चली कि मोस्ट वांटेड मौलाना मसूद अज़हर पाकिस्तान में गिरफ्तार। दिन भर चैनलों पर दनदनाती चली और अगले दिन सारे अखबारों में आठ कॉलम बैनर पर पसरी मिली।
हक़ीक़त- मसूद अज़हर गिरफ्तार नहीं हुआ।सरकार ने दो दिन के मौन के बाद माना कि उसके पास कोई सूचना नहीं है।

दो- नयनतारा सहगल और “दर्जन भर अन्य” साहित्यकार और विद्वान् अपने अपने अवार्ड वापस लेने को तैयार हो गए हैं जो उन्होंने लौटाए थे। खबर को चैनलों से लेकर अख़बारों में पहले पन्ने पर जगह मिली।
हक़ीक़त- अगले ही दिन नयनतारा सहगल ने खंडन कर दिया जिसे कहीं भीतर के 12 नंबर पेज पर चार लाइन में निपटा दिया गया। “दर्जन भर अन्य” लेखकों के नाम न किसी ने बताये न किसी ने जानने की कोशिश की।

तीन- नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फाइलों के खुलासे वाले दिन एक बहुत बड़े अखबार ने जवाहरलाल नेहरू का “कथित पत्र ” बैनर में छाप दिया और दिन भर एक दो चैनल उस पर चिल्ल पों करते रहे।
हक़ीक़त- नेताजी की जितनी फाइलें सार्वजनिक हुईं हैं उनमें देश दुनिया के खोजी पत्रकारों और शोधकर्ताओं ने बांस डाल कर देख लिया लेकिन ऐसी कोई चिट्ठी अब तक तो नहीं मिली।

सिर्फ इन तीन नमूनों से समझा जा सकता है कि खबर प्लांट करने का खेल खतरे का निशान पार कर चुका है। साफ़ है कि ये और ऐसी ही तमाम ख़बरें बाकायदा प्लांट की गयीं। यह पाठक और दर्शक के साथ धोखा है।झूठी, आधी अधूरी और गलत सूचनाओं दे कर हम समाज की जानकारी को विकृत ही कर रहे हैं।

किसी नए नवेले उत्साहीलाल पत्रकार का किसी “सूत्र” के हाथों टूल बन जाना अक्सर होता रहा है लेकिन इतने ज़िम्मेदार अख़बारों और चैनलों का इस तरह किसी पक्ष के लिए औज़ार बन जाना चिंता की बात है।वैसे यह समझना बहुत आसान है कि आखिर यह खतरनाक खेल कौन खेल रहा है..!

हद यह है कि एक दफा भी अपनी गलत खबर के लिए कोई खेद किसी के चेहरे या पन्ने पर नहीं दीखता।

यह खेल रुकना ही चाहिए वरना समाचार माध्यमों के प्रति समाज का बचा खुचा भरोसा भी दरक जायेगा।

मीडिया के मसीहाओं, सुन रहे हैं न आप …..!

लेखक डॉ राकेश पाठक डेटलाइन इंडिया न्यूज पोर्टल के प्रधान सम्पादक हैं.



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