दैनिक भास्कर कोटा के दर्जनों कर्मियों ने मजीठिया वेज बोर्ड के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. इसकी जानकारी जब प्रबंधन को लगी तो इन कर्मियों के उत्पीड़न का दौर शुरू हो गया. कभी किसी को काम पर आने से रोका गया तो किसी को काम करते वक्त डिमोरलाइज करके अलग-थलग कर दिया गया. किसी को टर्मिनेशन नोटिस थमाया गया तो किसी को नेतागिरी करने पर भुगत लेने की धमकी दी गई. तरह-तरह की प्रताड़ना से तंग आकर भास्कर कोटा के कर्मियों ने एकजुट होकर लेबर आफिस जाने का फैसला लिया.
इन कर्मियों ने प्रबंधन की शिकायत लेबर आफिस से की. लेबर डिपार्टमेंट की तरफ से भास्कर प्रबंधन को नोटिस जारी कर समझौता वार्ता के लिए बुलाया गया. पर कोटा दैनिक भास्कर के कर्मियों की एकजुटता देखकर भास्कर प्रबंधन डर से भयभीत होकर समझौता वार्ता के लिए लेबर आफिस नहीं पहुंचा. मजीठिया वेज बोर्ड के मामले को लेकर दिनांक 27.2.2015 को कोटा लेबर इंस्पेक्टर के समक्ष सुनवाई की जानी थी. इसका समय लेबर इंस्पेक्टर द्वारा दैनिक भास्कर प्रबंधन को नोटिस भेजकर सूचित किया गया.
दैनिक भास्कर मैनेजमेंट ने रामगोपाल सिंह चौहान को बली का बकरा बनाकर श्रम निरीक्षक के यहां भेजा. रामगोपाल सिंह चैहान (एडमिन विभाग) लेबर कार्यालय तो आए लेकिन कर्मचारियों की एकजुटता और उनका उत्साह देखकर बिना लेबर इंस्पेक्टर से मिले वापस लौट गए. लेकिन सभी कर्मचारी श्रम निरीक्षक के समक्ष बैठे रहे. दैनिक भास्कर प्रबंधन का कोई जिम्मेदार अधिकारी श्रम निरीक्षक के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ. इससे जाहिर होता है कि कोटा दैनिक भास्कर प्रबंधन लगातार कानून की अवहेलना कर रहा है.
श्रम निरीक्षक ने कोटा दैनिक भास्कर कार्यालय से सम्पर्क करने का प्रयास किया तो कोटा एच.आर. अनुराधा अवस्थी ने कहा कि उनको इस तरह की किसी सूचना के बारे में पता नहीं है. अनुराधा ने कहा कि अगर आपको कोई आवश्यक जानकारी लेनी है तो आप हमारे स्टेट जयपुर दैनिक भास्कर कार्यालय में ही बात करें. अनुराधा अवस्थी का कथन था कि कोटा दैनिक भास्कर से किसी भी कर्मचारी को निकाला नहीं गया है और किसी को कोई टर्मिनेशन लेटर नहीं दिया है. न ही मौखिक रूप से आफिस आने से मना किया है.
उधर, कर्मियों का कहना है कि दैनिक भास्कर कोटा के हर नोटिस और हर टर्मिनेशन लेटर पर दैनिक भास्कर कोटा के एच. आर. अनुराधा अवस्थी के ही साइन हैं. यहां कितना झूठ बोला जा रहा है, ये इन बातों से साबित हो रहा है. कुल मिलाकर दर्जनों कर्मियों की एकजुटता के आगे भास्कर प्रबंधन झूठ बोलने को मजबूर हो गया है और अपना पाप छिपाने के लिए तरह-तरह के बहाने खोज बोल रहा है.
Comments on “दैनिक भास्कर कोटा के कर्मियों की एकजुटता देख झूठ बोलने को मजबूर हुआ भास्कर प्रबंधन”
Management ki to ab band bajni hi bajni hai. Par lagta hai inhone poori baraat nikalne ki taiyari kar rakhi hai. Jai Ho. Lage raho dosto…
साथियों लगे रहो…, भास्कर मैनेजमेंट में बैठे लोग भी भगवान नहीं है। ये भी इनसान हैं, या यूं कहना चाहिए कि ये इनसान के रूप में हैवान हैं। यह हैवानियत ज्यादा दिन नहीं चलेगी। जब इस न्याय पालिका ने देश की प्रधानमंत्री, सुब्रत राय सहारा जैसे कों काल कोठरी में डाल दिया है तो ये अखबारों के मालिक किस खेत की मूली हैं। अब तक ये सिर्फ इसलिए शोषण कर पाए क्योंकि किसी भी पत्रकार और अखबार में काम करने वाले अन्य कर्मचारी ने अपनाी वजूद नहीं पहचाना, वह सिर्फ मीडिया के ग्लैमर के पीछे अंधेरी कोठरी में खुद को कैद किए रहा। अब ऐसा नहीं चलेगा। अब पत्रकार जाग गया है। उसका हक क्या है, यह भी जान गया है…, इसलिए न्याय मिलने में थो़ड़ी देर भले ही हो सकती है लेकिन यह मिलेगा जरूर। और यह भी कोई प्रताड़ना है, प्रताड़ना क्या होती है, यह आजादी के सिपाहियों से पूछो जिन्हें न जाने क्या-क्या सहना पड़ा। प्रबंधन को जल्दी झुकाने के लिए अब सभी भास्कराइट्स, सभी जागरण के कर्मचारियों और अन्य अखबारों के कर्मचारियों को आपस में जुड़ जाना चाहिए। एक जगह किसी कर्मचारी को प्रताड़ित किया जाए तो उसका प्रतिकार हर अखबार और हर यूनिट पर हो। कई यूनिटों में एक साथ कर्मचारी हड़ताल पर उतरें तो यही प्रबंधन कर्मचारियों के आगे गिड़गिड़ाना शुरू कर देगा। मंदी के दौर में यही मैनेजमेंट सहयोग के लिए हमारे तलुए तक चाटने को तैयार था, और अब जब हमारे हक की बात आई तो आंखे तरेर रहा है। फोड़ दो इन आंखों को। खासकर उन जयचंदों (यूनिट हेड, संपादकों और हायर लेवल पर बैठे दलाल टाइप के पदाधिकारियों को) की, जिनके बलबूते ये प्रबंधन कर्मचारियों को किसी भी रूप में प्रताड़ित करने की हिमाकत कर पा रहा है। इन्हें शायद यह पता नहीं कि अगर कर्मचारी (नौकर) नहीं रहेंगे तो ये मालिक मालिक नहीं रहेंगे।
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में