पंकज श्रीवास्तव-
आपदा को अवसर में तब्दील करने में माहिर मोदी सरकार ने किसान आंदोलन को ठीक उसी तर्ज पर निपटा दिया। जैसे शाहीनबाग आंदोलन को निपटाया था। शाहीनबाग आंदोलन के नीति निर्धारकों ने तब जो गलती की थी, वही गलती इस बार किसान आंदोलन के नीति निर्धारकों ने कर दी।
शाहीनबाग आंदोलनकारियों के जेहन में ये बात बसी थी कि देशी मीडिया को मोदी सरकार ने खरीद लिया है। कुछ बड़ा दिखाने यानि विदेशी मीडिया में तवज्जो पाने के चक्कर में उन्होंने अपने आंदोलन को व्यापकता और उग्रता तब दिया जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत का दौरा कर रहें थे। विदेशी मीडिया यहाँ की पल-पल की खबर ले रही थी। आंदोलनकारियों की सोच रही होगी, सरकार प्रतिकार स्वरुप कदम उठायेगी और पूरे विश्व में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की बात फैल जायेगी। तब अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे सरकार झुकेगी और कानून वापस ले लेगी लेकिन घाघ मोदी सरकार ने इन्हें उपद्रव का पूरा मौका दिया ताकि इनका कारनामा दूर तल्क जाये।
हुआ वही। विदेशी मीडिया ने जो देखा वही लिखा बाद में हिंसा कंट्रोल के नाम पर सरकार ने जमकर सुताई और मलहम लगायी की ठीक उसी अंदाजा में किसान आंदोलन की हवा निकाली गयी। चलिए विदेशी मीडिया ने इस पर क्या लिखा एक-एक कर जान लेते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजधानी दिल्ली में एक ओर जहां सेना की भव्य परेड देख रहे थे, वहां से कुछ ही मील की दूरी पर शहर के अलग-अलग हिस्सों में अफ़रा-तफ़री की तस्वीरें नज़र आ रही थी।
ऑस्ट्रेलिया के ‘सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड’ लिख रहा कि हज़ारों किसान उस ऐतिहासिक लाल क़िले पर जा पहुंचे, जिसकी प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी साल में एक बार देश को संबोधित करते हैं। अलजज़ीरा ने लिखा है- “भारत के हज़ारों किसानों ने नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए राजधानी में मुग़ल काल की इमारत लाल क़िले के परिसर पर एक तरह से धावा बोल दिया, हिंसक विरोध प्रदर्शनों में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई।
चलिए अब पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार ‘डॉन’ की ख़बर पर भी नजर डाल लेंते हैं। वो लिखता है ” ऐतिहासिक स्मारक लाल क़िले की एक मीनार पर कुछ प्रदर्शनकारियों ने खालिस्तान का झंडा लगा दिया।” अब उस कनाडा की बात जहाँ से आंदोलनकारियों के लिए फंड आने की बात भी वायरल हो रही है। वहाँ से प्रकाशित अख़बार ‘द स्टार’ ने लिखा है – “मोदी को चुनौती देते हुए भारत के लाल किले में घुसे नाराज़ किसान”।