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सियासत

इन कारणों से लंकेश को करता हूं प्रणाम मैं…

वाराणसी। कहते है भगवान का प्रताप और उनका गुणगान भक्तो पर ही निर्भर है। आध्यात्मिक कथाएं असुरों के विनाश और भक्तो के कल्याण पर ही प्रचलित है। जब कभी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बात चलती है या फिर विषधारी के भक्तों की बात आती है तो लंकेश यानि रावण का नाम बर्बस ही याद आता है। कहा जाता है कि रावण इतना ज्ञानी था कि उसे खुद के जीवन-मौत के बारे में भी जानकारी थी। उसके समक्ष किसी विद्वान की हिम्मत न होती थी कि वह तर्क करे।

वाराणसी। कहते है भगवान का प्रताप और उनका गुणगान भक्तो पर ही निर्भर है। आध्यात्मिक कथाएं असुरों के विनाश और भक्तो के कल्याण पर ही प्रचलित है। जब कभी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बात चलती है या फिर विषधारी के भक्तों की बात आती है तो लंकेश यानि रावण का नाम बर्बस ही याद आता है। कहा जाता है कि रावण इतना ज्ञानी था कि उसे खुद के जीवन-मौत के बारे में भी जानकारी थी। उसके समक्ष किसी विद्वान की हिम्मत न होती थी कि वह तर्क करे।

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भोले की भक्ति से रावण इतना प्रतापी हो गया था कि पृथ्वी का हर काम करने में महारथ हासिल थी। उसने भक्ति से अवघड़दानी को इतना रिझा लिया था कि वह जहाँ चाहता भोले को बुला लेता। आखिर भोले भी कैसे नहीं जाते। वो तो खुद कहते हैं “भगत के वश में है भगवान” तो मजबूरन रावण के पास जाना पड़ता था।

देखा जाए तो पूरा रामचरितमानस राम सीता रावण के इर्द-गिर्द ही घूमती है। प्रतापी रावण को यह मालूम था कि सीता के हरण का अंजाम क्या होगा। जिस सोने की लंका की तरफ बड़े-बड़े बलवानों को नज़र उठाने का साहस न था उस सोने की वाटिका को बंदर उजाड़ देंगे, उसे भली भांति ज्ञात था।

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आज के समय मे जब बाप बेटी से, बहन भाई से, बहू ससूर से सुरक्षित नहीं है तो रावण को प्रणाम करने की इच्छा होती है। धरती पुत्री परी जैसी सीता को भले की रावण छल से हरण कर के ले गया, अशोक वाटिका में एक पेड़ के नीचे रहने को भले मजबूर किया मगर करीब 12 महीनों तक मां सीता लंका में रहीं मगर उनसे किसी ने बदसलूकी तक नहीं की। आज के वक्त में जहां प्रेमिका-प्रेमी से 15 दिन भी सुरक्षित नहीं है उस वक्त भी हरण की हुई सीता लंकेश रावण के चंगुल में 365 दिन तक सुरक्षित रहीं। इन कारणों से रावण के पौरुष को प्रणाम करता हूँ।

महिलाओं का सम्मान करना हमें कोई क्या सिखाएगा। सनातन धर्म शुरू से महिलाओं को अपने माथे पर बिठा कर उनकी इज़्ज़त करता है। दुर्गा, काली, लक्ष्मी के रूप में शक्ति आराधना सिखाता है और महिला सशक्तिकरण का पाठ पढ़ाता है। सच में आज के युवा अध्यात्म से दूर हैं इसलिए महिलाएं असुरक्षित हैं। समाज में कुछ पाखंडी बाबाओं ने धर्म की मार्केटिंग कर संत समाज को बदनाम किया है। वह कभी भी सनातन धर्म के मूल (आत्मा) को जनता के बीच नहीं लाते और अपनी झोली भरने के लिए तमाम तरह के ढोंग कर भोली जनता को अपनी चंगुल में फसा लेते हैं। जनता सच्चे और बनावटी बाबाओं में फर्क नहीं कर पाती और आशाराम, रामपाल और राम रहीम जैसे लोग राम को बदनाम करते हैं, औरतों से मुंह काला कर संत समाज के लिए ब्लैक स्पॉट साबित होते हैं।

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अवनिन्द्र कुमार सिंह

पत्रकार

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वाराणसी

संपर्क : [email protected]

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