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सुख-दुख

जिस फोटोजर्नलिस्ट ने बीएचयू को जिंदगी भर कवर किया, उसे अंतिम समय वहीं बेड नहीं मिला

नहीं रहे मंसूर चच्चा… हम सबके बीच नही रहे काशी के वरिष्ठ छायाकार मंसूर आलम जी। उन्होंने कइयों को फोटोग्राफी सिखाई, फीचर फोटो पर रिपोर्टरों को स्पेशल स्टोरी लिखने के बारे में बताया। हमेशा हंसता चेहरा। उम्र की कोई बंदिश नहीं। जहां मिले खुल कर मिले। खुल कर हंसा और हसाया। जिंदगी में किसी से कुछ बोला नहीं। संकोची टाइप के प्राणी थे। प्रोग्राम में पहुंचे। धीरे से काम किया। निकल लिए। अगला तब जान पाता था जब हिंदुस्तान में अगले दिन फोटो छपती थी।

स्वर्गीय मंसूर आलम

नहीं रहे मंसूर चच्चा… हम सबके बीच नही रहे काशी के वरिष्ठ छायाकार मंसूर आलम जी। उन्होंने कइयों को फोटोग्राफी सिखाई, फीचर फोटो पर रिपोर्टरों को स्पेशल स्टोरी लिखने के बारे में बताया। हमेशा हंसता चेहरा। उम्र की कोई बंदिश नहीं। जहां मिले खुल कर मिले। खुल कर हंसा और हसाया। जिंदगी में किसी से कुछ बोला नहीं। संकोची टाइप के प्राणी थे। प्रोग्राम में पहुंचे। धीरे से काम किया। निकल लिए। अगला तब जान पाता था जब हिंदुस्तान में अगले दिन फोटो छपती थी।

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स्वर्गीय मंसूर आलम

मेरी अंतिम फुर्सत में मुलाकात संकटमोचन संगीत समारोह में हुई थी। वहां भी वही मस्ती। एक ही बार बोला था- ‘का चच्चा हम पत्रकारन के फोटो अख़बार में न छपे क कवनो नियम हव का’। वे बात को हंसते हुए टाल गये थे। चूँकि हम जानते थे सुगर है तो चाय बिना चीनी के पिलाते। और, हां पान जरूरी था। खैर, रात बीती। सुबह अख़बार देखा तो मेरी भी फोटो छपी थी। तो, ऐसे थे अपने मंसूर जी। मतलब कुल मिलाकर काम के मामले में इतनी बारीकी कि कोई पकड़ न पाए। बनारस के कई रिटायर्ड पत्रकार भी मंसूर जी की जय-जय करते हैं।

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आज मंसूर जी नहीं हैं हम सबके बीच। लेकिन जिस व्यक्ति ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की कई दशक तक सेवा की, अंत समय में उसे वहीं सर सुंदरलाल अस्पताल में बेड नहीं मिला। काफी कष्टप्रद है यह सब। यह बात मेरे दिल में चुभ गई है। लेकिन बीएचयू के तलवा चाट पत्रकारों को यह पीड़ा नहीं देगा। मैंने पूरे प्रकरण पर अपने ब्लाग पर लिखा है, जो इस प्रकार है-

काशी के वरिष्ठ फोटोग्राफर को नही मिला बीएचयू आईसीयू में बेड… पीएम के संसदीय क्षेत्र का हाल, मृत्युशैय्या पर लेटे मंसूर आलम ने की है वर्षों महामना के बगिया की सेवा, यदि विधायक और मंत्री का वीसी को जाता फोन मिल जाता बेड…

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वाराणसी। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में सब कुछ ठीक चले इसके लिए हफ्ते में कैबिनेट मंत्रियों का काफिला बनारस को रुख करता है। स्वास्थ्य सेवाएं ठीक हो इसके लिए कैबिनेट स्वास्थ्य मंत्री से लगायत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल की खास नजर बीएचयू पर रहती है। बीएचयू का सर सुंदरलाल अस्पताल पूर्वांचल सहित कई राज्यों के मरीजों का भार उठाता है लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर आईएमएस डायरेक्टर से लेकर एमएस डॉ. ओ.पी. उपाध्याय तक के दावें पूरी तरह खोखले है। पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के हिंदुस्तान यूनिट के वरिष्ठ पत्रकार मंसूर आलम इन दिनों दोनों किडनी फेल होने से मृत्युशैय्या पर लेटे है। जिनका इलाज बीएचयू अस्पताल में प्रो. एमए अंसारी के अंडर हो रहा था।

सूचना के मुताबिक प्रो.अंसारी रविवार को आईसीयू में बेड खाली न होने की बात कहकर हाथ खड़ा कर लिए और मरीज मंसूर आलम को बाहर ले जाने की सलाह दे डाली। यह वही मंसूर आलम है जिनसे बनारस के बड़े-बड़े छायाकारों ने कैमरे का बटन दबाना सीखा, जिन्होंने रिपोर्टरों को फोटो पर स्टोरी लिखना बताया हो उस व्यक्ति को बीएचयू के आईसीयू में बेड मात्र इस लिए नही मिल पाता क्योंकि उसकी पैरबी किसी भाजपा नेता ने वीसी से नही की। कोई विधायक, मंत्री या केबिनेट मंत्री ने वीसी को फोन नही घुमाया, यदि घुमा दिया होता तो न जाने उसी आईसीयू में बेड कैसे खाली होते यह किसी को मालूम तक नही होता।

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लेकिन वीसी प्रो. गिरीशचंद्र त्रिपाठी को शायद यह अंदाजा न होगा कि आज जो मृत्युशैय्या पर मंसूर आलम लेटा है उसने 40 वर्षों से ऊपर का समय मालवीय जी के सेवा में बिताया है, उसमे कभी यह बहाना न बनाया कि तेज धूप है, बारिश है या ठण्ड है, इन्होंने गाड़ी में तेल न होने का भी बहाना नही बनाया होगा, करीब 20 से ऊपर कुलपतियों की फोटो खींचने वाले फोटोग्राफर को कुलपति भी मदद के लिए हाथ नही बढ़ाये। फोटोग्राफर मंसूर के परिजन एपेक्स अस्पताल में लेकर भर्ती है, लगातार पत्रकार समाज लगा है कि बीएचयू में बेड मिले और जल्द स्वस्थ्य होकर मंसूर जी हम सबके बीच हो।

हिंदुस्तान अख़बार के संपादक से लेकर सिटी इंचार्ज, बीएचयू बीट के रिपोर्टर सभी लगे हुए है कि सर सुंदरलाल अस्पताल के आईसीयू में बेड मिल जाए लेकिन मेरा दावा है कि नही मिलेगा, क्योंकि मालवीय जी की बगिया केवल वीआईपी के लिए सुरक्षित हो गई है। यहाँ उन्ही का इलाज होगा जो बीजेपी या संघ से रिश्ता रखता होगा अन्यथा कोई कारण न था कि चिकित्सक तड़पते मरीज को दूसरे अस्पताल में भर्ती करने के लिए सलाह देता। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उसी आईसीयू में मंसूर के तड़पते वक़्त ही एक बीजेपी नेता के रिश्तेदार को भर्ती कराया गया लेकिन मंसूर आलम को जगह नही मिली।

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लेखक अवनींद्र सिंह अमन वाराणसी के युवा पत्रकार हैं.

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