इन कारणों से लंकेश को करता हूं प्रणाम मैं…

वाराणसी। कहते है भगवान का प्रताप और उनका गुणगान भक्तो पर ही निर्भर है। आध्यात्मिक कथाएं असुरों के विनाश और भक्तो के कल्याण पर ही प्रचलित है। जब कभी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बात चलती है या फिर विषधारी के भक्तों की बात आती है तो लंकेश यानि रावण का नाम बर्बस ही याद आता है। कहा जाता है कि रावण इतना ज्ञानी था कि उसे खुद के जीवन-मौत के बारे में भी जानकारी थी। उसके समक्ष किसी विद्वान की हिम्मत न होती थी कि वह तर्क करे।

जानिए, भड़ास के एडिटर यशवंत क्यों करते हैं रावण को नमन!

Yashwant Singh : रावण की आज पुण्यतिथि है. इस मौके पर मैं रावण को सादर नमन करता हूं. रावण को मैं असली योद्धा मानता हूं. आपने झुकने या टूटने की जगह अंतिम दम तक लड़ाई लड़ना पसंद किया और लड़ते हुए प्राण त्यागने को अपना गौरव समझा. कायरों की इस दुनिया में जिनकी थोड़ी-थोड़ी, छोटी-छोटी बातों से फट जाती है, उन्हें रावण से सबक लेना चाहिए कि हर हालत में, चाहें भले ही हार सुनिश्चित हो, मौत तय हो, आपको अपने साहस के साथ डटे रहना चाहिए…

…क्योंकि रावण अपना चरित्र जानता है!

कथा का तानाबाना तुलसीबाबा ने कुछ ऐसा बुना की रावण रावण बन गया। मानस मध्ययुग की रचना है। हर युग के देशकाल का प्रभाव तत्कालीन समय की रचनाओं में सहज ही परीलक्षित होता है। रावण का पतन का मूल सीता हरण है। पर सीताहरण की मूल वजह क्या है? गंभीरता से विचार करें। कई लेखक, विचारक रावण का पक्ष का उठाते रहे हैं। बुरी पृवत्तियों वाले ढेरों रावण आज भी जिंदा हैं। कागज के रावण फूंकने से इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। पर जिस पौराणिक पात्र वाले रावण की बात की जा रही है, उसे ईमानदार नजरिये से देखे। विचार करें। यदि कोई किसी के बहन का नाक काट दे तो भाई क्या करेगा।