पुष्प रंजन-
“मैनिपुलेटेड मीडिया”, यह शब्द आया कहाँ से? ये शब्द दमदार है. जोड़-तोड़, हेराफेरी, मनगढंत पटकथा के बिना पर दुष्प्रचार करनेवाले सूचना तंत्र के बारे में पूरा प्रतिबिम्ब खड़ा कर देता है. “गोदी मीडिया” में वो बात नहीं, जो “मैनिपुलेटेड मीडिया” में है. किसी को बदनाम करने, दुष्प्रचार, धूर्तता और फर्ज़ीवाड़े से चलने वाले समस्त मीडिया-मंडी को उकेरता हुआ शब्द, जो व्यापक है-सम्पूर्ण है.
गोदी से लगता है, गोया गोद में बैठे हुए हैं. इस बनावटी शब्द को अभिभावक जैसी सरपरस्ती पाने की दृष्टि से देखिये, अथवा गुदाभंजन के नुक्ते-नज़र से. भदेसपन लिये, एक विशेष वैचारिक कूज़े में सिमटा हुआ सिमसिमाह (मर्दानगीविहीन) शब्द है ‘गोदी मीडिया’, जिसपर आह-वाह होता रहा.
अब सीधी बात मैनिपुलेटेड मीडिया की. यह शब्द आया कहाँ से? रॉबर्ट मुलर 2001 से 2013 तक अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी एफबीआई के डायरेक्टर रहे थे. क़ानून की पढाई की थी, चुनांचे अवकाश के बाद रॉबर्ट मुलर ने वकालत शुरू की, और रिपब्लिकन पार्टी भी ज्वाइन कर लिया. 2016 के चुनाव को रूसियों ने प्रभावित किया था, या नहीं, यह ज़ेरे बहस थी. उसकी जांच के वास्ते ट्रंप प्रशासन ने रॉबर्ट मुलर को “स्पेशल काउंसल” नियुक्त किया.
हालाँकि, 22 मार्च 2019 को जो फ़ाइनल रिपोर्ट आयी, लीपापोती वाली थी, जिसमे रॉबर्ट मुलर ने निष्कर्ष दिया कि रशियन्स, ट्रंप और उनकी कैम्पेन टीम ने 2016 के चुनाव को प्रभावित करने के वास्ते कोई घालमेल नहीं किया था. रॉबर्ट मुलर के अनुसार, “इस कल्पित कथा को गढ़ने के पीछे “मैनिपुलेटेड मीडिया ” का खेल रहा है.”
“मैनिपुलेटेड मीडिया ” जैसे शब्द से आग लगना स्वाभाविक था . उन दिनों अमेरिकी टीवी और अख़बारों में यह शब्द बवाल काटे हुए था. और बहस इसपर भी कि स्वयं रॉबर्ट मुलर व्हाइट हॉउस द्वारा “मैनिपुलेट” किये गए थे. मगर, इस शब्दभेदी वाण से अमेरिकी मीडिया लम्बे समय तक आहत रहा, यह भी एक सच है.